Written By: Ajeet Singh
PUBLISHED BY: Ashish kumar Rai • LAST UPDATED : December 18, 2024, 10:42 pm ISTसंबंधित खबरें
Mahakumbh 2025: श्रद्धालुओं व पर्यटकों को 300 बेड वाली डीलक्स डॉर्मेटरी में मिलेंगी उच्च स्तरीय सुविधाएं,जल्द शुरू होगा कार्य
दक्ष पुलिस ही करेगी 45 करोड़ श्रद्धालुओं की सुरक्षा, महाकुंभ में ड्यूटी के लिए रिटेन 'टेस्ट' दे रहे पुलिसकर्मी
प्राकृतिक खेती से गंगा को प्रदूषणमुक्त बना रही योगी सरकार, 27 जनपदों में रसायनमुक्त खेती को दिया जा रहा बढ़ावा
बॉलीवुड के आर्ट डायरेक्टर ने तैयार किया महाकुंभ का पॉवर सेंटर, मेले के चप्पे-चप्पे पर नजर रखेंगे टॉप 20 अफसर
शिक्षा को लेकर योगी सरकार की बड़ी पहल, 'विद्या कुंभ' के नाम से खोले स्कूल
अटल शताब्दी समारोह मनाएगी योगी सरकार, उत्तर प्रदेश के साथ कई राज्यों के मध्य होगा एमओयू
India News (इंडिया न्यूज)Prayagraj Tirth Purohit: तीर्थराज प्रयागराज का नाम आते ही हमारी स्मृति में त्रिवेणी संगम और महाकुम्भ का नाम आता है। लेकिन प्रयागराज के संगम तट और महाकुम्भ की पंरपरा से अविच्छिन्न रूप से जुड़े हुये हैं यहां के तीर्थपुरोहित। प्रयागराज के तीर्थपुरोहित जिन्हें प्रयागवाल या स्थानीय बोली में पंडा भी कहा जाता है। मोक्षदायक तीर्थराज प्रयाग में मृत्यु से मुक्ति का मार्ग, यहां के तीर्थपुरोहित प्रयागवाल ही दिखाते हैं। सनातन परंपरा और पौराणिक मान्यता के अनुसार मृत्यु के बाद पितरों की मुक्ति संगम क्षेत्र में अस्थि पूजन और पिण्ड दान के बाद ही होती है। सनातन परंपरा प्रयागराज के संगम तट पर पूजन-अर्चन का अधिकार यहां के तीर्थपुरोहित प्रयागवालों को ही प्रदान करती है। प्राचीन काल से संगम तट पर पूजन करवाने और माघ तथा महाकुम्भ मेले में श्रद्धालुओं को कल्पवास करवाने का कार्य प्रयागवाल तीर्थपुरोहित ही करते आ रहे हैं।
प्रयागराज में त्रिवेणी संगम के तट पर स्नान-दान और महाकुम्भ के आयोजन का इतिहास बहुत प्राचीन है। प्रयागराज को सनातन परंपरा में सभी तीर्थों में श्रेष्ठ तीर्थराज कहा गया है। प्रयागराज को पौराणिक मान्यता अनुसार मोक्षदायनी सप्तपुरियों का राजा माना गया है। प्रयागराज में अस्थिदान और पिण्डदान पूजन का विशेष महात्म हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है। मृतक पूर्वजों के बिना अस्थि पूजन और पिण्डदान के पितरों को मुक्ति नहीं मिलती। प्रजापत्य व्यवस्था के अनुरूप प्रयागराज के संगम क्षेत्र में अस्थि पूजन और पिण्डदान करवाने का अधिकार प्रयागवाल तीर्थपुरोहितों का ही है।
तीर्थपुरोहितों की परंपरा के बारे में बताते हुए संगम क्षेत्र के तीर्थपुरोहित राजेश्वर गुरु बताते हैं कि वर्षों से चली आ रही परंपरा और आपसी सहमति के आधार पर तीर्थ पुरोहितों के घाट और क्षेत्रवार यजमान भी बंटे हुए हैं। अपने क्षेत्र के यजमानों के पितरों का अस्थि पूजन, पिण्ड दान उनके तीर्थपुरोहित ही करवाते हैं। पहले प्रयाग फिर काशी और अंतिम तौर पर गया में पिण्डदान का पूजन होता है। उन्होंने बताया कि प्रभु श्रीराम ने भी लंका से लौटकर अपने पिता महाराज दशरथ का पिण्डदान गया में किया था। यहां यजमान वर्षभर विशेषतौर पर पितृ पक्ष में अपने पितरों की मुक्ति के लिए तर्पण और पूजन करने आते हैं।
तीर्थपुरोहित राजेश्वर गुरु बताते हैं कि सभी तीर्थपुरोहित अपने यजमानों का वंशवार लेखा-जोखा अपनी बही में लिख कर रखते हैं। तीर्थपुरोहितों की इन बही खातों में हमारी कई पीढ़ी के पूर्वजों का विवरण दर्ज होता है। उन्होंने बताया कि पहचान की सुविधा के लिए तीर्थपुरोहित अलग-अलग झण्डा और निशान पीढ़ी दर पीढ़ी से अपनाते चले आ रहे हैं। उनके यजमान इन झण्डों और निशानों से ही उन्हें पहचानते हैं। कोई दो तुमड़ी वाले पंडा हैं तो कोई टेढ़ी नीम वाले, कोई कटार वाले पंड़ा हैं तो कोई सेहरी वाले पंड़ा। तीर्थपुरोहितों के ये झण्डें संगम आने वाले श्रद्धालुओं को दूर से ही दिखने लगते हैं।
प्रयागराज के तीर्थपुरोहित प्रयागवाल गंगा पूजन, स्नान-दान, गऊदान, वेणीदान, पिण्डदान, अस्थि पूजन, मुण्डन तथा कल्पवास आदि सभी तरह के पूजा-पाठ करवाते हैं। उन्होंने बताया कि वर्षों से चली आ रही सनातन पंरपरा के अनुरूप संगम क्षेत्र में माघ मेले, कुम्भ और महाकुम्भ में श्रद्धालुओं को कल्पवास करवाने का कार्य तीर्थपुरोहित प्रयागवाल ही करते आ रहे हैं। संगम क्षेत्र में टेंट आदि की व्यवस्था करके अपने यजमानों के कल्पवास के व्रत और संकल्प को पूरा करवाते हैं।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.