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India News (इंडिया न्यूज़), Chandramani Shukla, Ghosi by-election: उत्तर प्रदेश के घोसी में हो रहे उपचुनाव को जहां भाजपा और समाजवादी पार्टी के लिए साख का सवाल कहा जा रहा है तो वहीं इसको लेकर दोनों तरफ से जमकर पसीना भी बहाया जा रहा है। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A के ऐलान के बाद यह पहला उपचुनाव हो रहा है। राजनीतिक लोग इसे I.N.D.I.A और NDA के बीच के मुकाबले के तौर पर देख रहे हैं। वही जहां एनडीए की तरफ से यहां इस चुनाव में तमाम मंत्रियों समेत सहयोगी पार्टियों के नेता डेरा जमाए हुए हैं तो समाजवादी पार्टी की ओर से अखिलेश यादव के साथ उनके दोनों चाचा प्रो. रामगोपाल यादव और शिवपाल सिंह यादव ने मोर्चा संभाल रखा है यानी समाजवादी पार्टी फिर से एक बार मैनपुरी के उपचुनाव की तरह ही रणनीति अपना कर मैदान में उतरी है।
लोकसभा चुनाव से पहले घोसी विधानसभा के उपचुनाव की जीत समाजवादी पार्टी और भाजपा दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। यहां से मिली जीत का सीधा असर लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा। जिस दल को यहां पर जीत मिलती है उसके कार्यकर्ताओं में उत्साह निश्चित तौर से बढ़ेगा। इसी को देखते हुए उपचुनाव में प्रचार से परहेज करने वाले अखिलेश यादव खुद मैदान में उतर गए हैं। वहीं इस चुनाव में समाजवादी पार्टी की तरफ से ऐसा देखा जा रहा है कि सैफई परिवार पूरी तरह से एकजुट नजर आ रहा है। इस उपचुनाव में फिर से मुलायम सिंह के समय में जिस तरह से प्रो. रामगोपाल यादव पर्दे के पीछे रहकर रणनीति तैयार करते थे और शिवपाल यादव संगठन में काम करते थे। उसी तरह से यहां भी रणनीति नजर आ रही है।
इसके पहले मैनपुरी के उपचुनाव में ऐसा देखा गया था कि सैफई परिवार एकजुट नजर आया था। जिसका परिणाम भी उनके लिए सकारात्मक रहा था। वहां पर डिंपल यादव की भारी भरकम जीत हुई थी। इसी को ध्यान में रखते हुए अब घोसी में भी इसी तरह की रणनीति पर काम हो रहा है। जहां पर अखिलेश यादव के दोनों चाचा प्रो. रामगोपाल यादव और शिवपाल सिंह यादव लगातार जमे हुए हैं। वहीं अखिलेश यादव मंच संभाल कर भीड़ जुटा कर अपने प्रत्याशी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं यानी समाजवादी पार्टी की ओर से इस उपचुनाव में आक्रामक रुख नजर आ रहा है।
जब जब समाजवादी पार्टी अपने मैनपुरी के सफल फार्मूले को एक बार फिर से आजमा रही है तब उसके लिए घोसी का उपचुनाव और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि अगर यहां से पार्टी को जीत मिलेगी तो निश्चित तौर से अगले साल होने वाला लोकसभा चुनाव भी इसी रणनीति पर लड़ा जाएगा। वहीं इस जीत के बाद में प्रोफेसर रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव की जुगलबंदी भी मजबूत होगी क्योंकि समाजवादी पार्टी का जो राजनीतिक ग्राफ गिरा है उसकी सबसे बड़ी वजह राजनीतिक जानकार इन दोनों की लड़ाई को ही बताते हैं। अब जब इन दोनों की तरफ से लगातार मिलकर पार्टी को जीत के द्वारा तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है तब देखने वाला होगा की इस रणनीति का मुकाबला भाजपा कैसे करती है।
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