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India News(इंडिया न्यूज़)Naga Sadhu rituals: नागा साधु अपनी कठोर तपस्या और साधना के लिए जाने जाते हैं। वे भगवान शिव के परम भक्त होते हैं और अक्सर महाकुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों में देखे जाते हैं। इन साधुओं का जीवन सांसारिक सुखों से पूरी तरह दूर होता है, लेकिन एक बात जो अक्सर लोगों के मन में उठती है कि आखिर ये साधु अपने शरीर पर भस्म क्यों लगाते हैं? आइए जानते हैं इसके धार्मिक और ऐतिहासिक कारणों के बारे में।
नागा साधु अपने शरीर पर राख या भस्म लगाते हैं, जिसे वे ‘भभूत’ भी कहते हैं। भस्म का इस्तेमाल धार्मिक प्रतीक के रूप में किया जाता है और इसे पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव के भक्त होने के कारण नागा साधु अपने शरीर पर चिता की राख या धूनी की राख लगाते हैं। यह उन्हें नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है और मानसिक शांति प्रदान करता है।
भस्म बनाने की प्रक्रिया काफी लंबी है। हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला और गाय के गोबर को जलाकर राख तैयार की जाती है। फिर इस राख को छानकर कच्चे दूध में लड्डू बनाए जाते हैं। इसे सात बार आग में गर्म किया जाता है और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है। यह प्रक्रिया भस्म को शुद्ध और पवित्र बनाने के लिए की जाती है। बाद में नागा साधु इस राख को अपने शरीर पर लगाते हैं।
कई लोग पूछते हैं कि जब नागा साधु ठंड के मौसम में बिना कपड़ों के रहते हैं, तो उन्हें ठंड नहीं लगती। इसका एक मुख्य कारण यह है कि भस्म शरीर के तापमान को नियंत्रित रखती है। भस्म शरीर पर इन्सुलेटर का काम करती है, जिससे साधुओं पर सर्दी या गर्मी का असर नहीं होता। इसमें कैल्शियम, पोटैशियम और फॉस्फोरस जैसे खनिज होते हैं, जो शरीर के तापमान को बैलेंस रखने में सहयता करते हैं।
नागा साधु सिर्फ शरीर को गर्म रखने के लिए भस्म नहीं लगाते, बल्कि यह उनकी साधना और तपस्या का एक हिस्सा है। उनका मानना है कि भस्म शरीर को शुद्ध करती है और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ाती है। यह उन्हें मानसिक शांति, स्थिरता और ध्यान की गहरी अवस्था में मदद करती है। इसके अलावा भस्म लगाने से साधु अपने शरीर के सभी भौतिक बंधनों से मुक्त हो जाते हैं और वे पूरी तरह से आत्मा की साधना में लीन हो जाते हैं।
नागा साधु अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं और नग्न रहते हैं तथा अपने शरीर की रक्षा के लिए कपड़े और चिमटा, चिलम, कमंडल जैसे हथियार रखते हैं। इनके पास त्रिशूल, तलवार और भाला होता है, जो आत्मरक्षा और धर्म की रक्षा के प्रतीक माने जाते हैं। इनके लंबे जटाजूट और माथे पर तीन धार वाला तिलक (त्रिपुंड) इनके विशेष स्वरूप को दर्शाता है।
भस्म न केवल इन्हें सर्दी और गर्मी से बचाती है, बल्कि यह उनकी मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का भी एक तरीका है। इस प्रक्रिया के माध्यम से नागा साधु खुद को पूरी तरह से भगवान को समर्पित कर देते हैं और सांसारिक मोह-माया से खुद को मुक्त कर लेते हैं।
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