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समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ा है प्रयागराज का यह प्रसिद्ध मंदिर, नागपंचमी और सावन माह में दर्शन का है विशेष महत्व

By: Ajeet Singh

• LAST UPDATED : December 11, 2024, 7:02 pm IST
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समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ा है प्रयागराज का यह प्रसिद्ध मंदिर, नागपंचमी और सावन माह में दर्शन का है विशेष महत्व

India News (इंडिया न्यूज),Prayagraj Mahakumbh News: तीर्थराज प्रयागराज के पौराणिक मंदिरों में नागवासुकि मंदिर का विशेष स्थान है। सनातन आस्था में प्राचीन काल से ही नागों या नागों की पूजा की जाती रही है। पुराणों में नागों की अनेक कथाएं हैं, जिनमें से नागवासुकि को नागों का राजा माना जाता है। नागवासुकि भगवान शिव का हार है, समुद्र मंथन की पौराणिक कथा के अनुसार नागवासुकि का प्रयोग समुद्र मंथन के लिए रस्सी के रूप में किया गया था। समुद्र मंथन के बाद भगवान विष्णु के आदेश पर नागवासुकि ने प्रयाग में विश्राम किया था। देवताओं के अनुरोध पर वे यहीं बस गए। मान्यता है कि प्रयागराज में संगम में स्नान करने के बाद नागवासुकि के दर्शन करने से पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। नागवासुकि जी का मंदिर वर्तमान में प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले में गंगा नदी के तट पर स्थित है।

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समुद्र मंथन के बाद वासुकी नाग ने किया था यहाँ विश्राम

नागवासुकि की कथा का वर्णन स्कंद पुराण, पद्म पुराण, भागवत पुराण और महाभारत में भी मिलता है। समुद्र मंथन की कथा में वर्णन है कि जब भगवान विष्णु के आदेश पर देवता और असुर समुद्र मंथन के लिए तैयार हुए तो मंदराचल पर्वत को मथानी और नागवासुकि को रस्सी बनाया गया। लेकिन मंदराचल पर्वत की रगड़ से नागवासुकि का शरीर छिल गया था। तब भगवान विष्णु के आदेश पर उन्होंने प्रयाग में विश्राम किया और त्रिवेणी संगम में स्नान कर घावों से मुक्ति पाई। वाराणसी के राजा दिवोदास ने तपस्या की और भगवान शिव की नगरी काशी जाने का वरदान मांगा। दिवोदास की तपस्या से प्रसन्न होकर जब नागवासुकि प्रयाग छोड़कर जाने लगे तो देवताओं ने उनसे प्रयाग में ही रुकने का अनुरोध किया।

तब नागवासुकि ने कहा कि, यदि मैं प्रयागराज में रहूंगा तो संगम में स्नान के बाद भक्तों को मेरा दर्शन करना अनिवार्य होगा और सावन माह की पंचमी तिथि को तीनों लोकों में मेरी पूजा होनी चाहिए। देवताओं ने उनकी ये मांगें स्वीकार कर लीं। तब ब्रह्माजी के मानस पुत्र नागवासुकि ने एक मंदिर बनवाया और प्रयागराज के उत्तर-पश्चिम में संगम के तट पर नागवासुकि की स्थापना की गई।

नागवासुकी मंदिर में स्थित था भोगावती तीर्थ

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार जब दिव्य नदी गंगा धरती पर अवतरित हुईं तो भगवान शिव की जटाओं से उतरने के बाद भी मां गंगा का वेग बहुत तेज था और वह सीधे पाताल में प्रवेश कर रही थीं। तब नागवासुकि ने अपने फन से भोगवती तीर्थ का निर्माण किया। नागवासुकि मंदिर के पुजारी श्याम लाल त्रिपाठी ने बताया कि प्राचीन काल में मंदिर के पश्चिमी भाग में भोगवती तीर्थ कुंड था, जो अब विलुप्त हो चुका है। मान्यता है कि बाढ़ के समय जब मां गंगा मंदिर की सीढ़ियों को स्पर्श करती हैं तो इस घाट पर गंगा स्नान करने से भोगवती तीर्थ में स्नान का पुण्य मिलता है।

यहीं से शुरू हुआ नागपंचमी पर सर्पों का पूजन

मंदिर के पुजारी ने बताया कि भगवान नाग वासुकी की शर्तों के कारण ही नाग पंचमी उत्सव की शुरुआत हुई। नाग पंचमी के दिन मंदिर में हर साल मेला लगता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान वासुकी के दर्शन करने और चांदी के नाग-नागिन का जोड़ा चढ़ाने मात्र से कालसर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है। इसके अलावा हर माह की पंचमी तिथि को नाग वासुकी की विशेष पूजा का विधान है। इस मंदिर में कालसर्प दोष और रुद्राभिषेक करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी तरह की बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।

सीएम योगी ने कराया मंदिर का जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण

पौराणिक वर्णन के अनुसार प्रयागराज के बारह माधवों में असि माधव का भी मंदिर में स्थान था। सीएम योगी आदित्यनाथ जी के प्रयास से इस वर्ष देवोत्थान एकादशी के दिन असि माधव जी की पुनः नए मंदिर में स्थापना की गई है। उन्होंने बताया कि इससे पहले सांसद मुरली मनोहर जोशी ने भी मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। इस महाकुंभ में नागवासुकि मंदिर और उसके प्रांगण का जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण किया गया है। यूपी सरकार और पर्यटन विभाग के प्रयास से नई पीढ़ी को भी मंदिर के महत्व से परिचित कराया जा रहा है। संगम स्नान, कल्पवास और कुंभ स्नान के बाद नागवासुकि के दर्शन मात्र से ही पूर्ण फल की प्राप्ति होती है और जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं।

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