'अल्पसंख्यकवाद' को मात देता योगी आदित्यनाथ का 'सेक्युलेरिज्म' ब्रांड - India News
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'अल्पसंख्यकवाद' को मात देता योगी आदित्यनाथ का 'सेक्युलेरिज्म' ब्रांड

India News Desk • LAST UPDATED : May 9, 2022, 2:05 pm IST
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'अल्पसंख्यकवाद' को मात देता योगी आदित्यनाथ का 'सेक्युलेरिज्म' ब्रांड

युवराज पोखरना

राष्ट्रीय टेलीविजन और राजनीतिक हलकों में आजकल अज़ान (azaan controversy) और हनुमान चालीसा (hanuman chalisa) पर ‘लाउडस्पीकर’ (Loudspeaker Controversy) विवाद माहौल बनाये हुए है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के राज ठाकरे (raj thackeray) द्वारा मस्जिदों से लटके लाउडस्पीकरों को हटाने के लिए दिए गए अल्टीमेटम से यह विवाद महाराष्ट्र से उभरा था, इसके बाद राणा दम्पत्ति का घटनाक्रम इस विवाद से निकला और अब यह मुद्दा सबसे विवादास्पद और चर्चित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (yogi adityanath) तक पहुंच गया है।

उत्तरप्रदेश में सेक्युलेरिज्म की सच्ची भावना

उत्तरप्रदेश प्रशासन द्वारा जारी आदेशों के बाद पुलिस ने बताया कि सेक्युलेरिज्म की सच्ची भावना को बनाए रखते हुए, प्रदेश भर में मंदिरों, मस्जिदों और गुरुद्वारों सहित विभिन्न धार्मिक स्थलों से 53,000 से अधिक अनधिकृत लाउडस्पीकरों को हटाया गया है। उत्तर प्रदेश में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून और व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने बताया, “अब तक, आज सुबह 7 बजे तक प्रदेश भर में विभिन्न धार्मिक स्थलों से 53,942 लाउडस्पीकर हटाए गए हैं।”

इस कार्रवाई से पहले, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लाउडस्पीकरों की आवाज को परिसर के भीतर तक सीमित करने के लिए आदेशों का पालन सख्ती से करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद 60,295 लाउडस्पीकरों की आवाज को अधिकारियों द्वारा कम कराकर तय मानक स्तर पर लाया गया। संयोग कहिये या भाग्य का खेल इसके बाद कई राज्यों में रामनवमी और हनुमान जन्मोत्सव जैसे हिंदू उत्सवों के दौरान हिंसा, पत्थरबाजी, पैट्रोल बमबाजी आदि उपद्रवी और निंदनीय घटनाक्रम हुए और तब से यह मुद्दा गर्म हो रहा है। योगी को राज ठाकरे से समर्थन मिला, जिसमें राज ने कहा, “महाराष्ट्र में, हमारे पास सत्ता में ‘योगी’ नहीं हैं; हमारे पास जो भी है वह भोगी हैं।”

आइए जानते हैं कि देश के अलग अलग न्यायलयों ने अलग अलग समय और घटनाक्रमों के दौरान किया कहा था

सुप्रीम कोर्ट (2005): जुलाई 2005 में, सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों पर वहां रहने वालों के स्वास्थ्य पर ध्वनि प्रदूषण के गंभीर प्रभावों का हवाला देते हुए  रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक (सार्वजनिक आपात स्थिति के मामलों को छोड़कर) लाउडस्पीकरों और म्यूजिक सिस्टम्स के उपयोग पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था।

बॉम्बे हाई कोर्ट (2016): अगस्त 2016 में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था कि लाउडस्पीकर का उपयोग करना एक आधारभूत अधिकार नहीं है। बॉम्बे हाईकोर्ट के अनुसार, कोई भी रिलिजन या संप्रदाय यह तर्क नहीं दे सकता है कि लाउडस्पीकर या सार्वजनिक संबोधन प्रणाली (पब्लिक एड्रेस सिस्टम) का उपयोग करने की क्षमता भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 द्वारा संरक्षित एक मूल अधिकार है।

उत्तराखंड हाई कोर्ट (2018): “रात 12 बजे के बाद भी लाउडस्पीकर बजते रहते हैं।” कोर्ट के अनुसार, “लाउडस्पीकर का उपयोग प्रशासन से औपचारिक अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता है, यहां तक कि मंदिरों, मस्जिदों और गुरुद्वारों में भी नहीं किया जा सकता है।”

कर्नाटक हाईकोर्ट (2021): जनवरी 2021 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को राज्य भर में धार्मिक स्थलों पर अनधिकृत लाउडस्पीकरों के विरुद्ध कार्रवाई करने का आदेश दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि ध्वनि प्रदूषण नियमों और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों को उद्धृत करते हुए धार्मिक भवनों में एम्पलीफायरों और लाउडस्पीकरों के उपयोग के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए राज्य सरकार द्वारा पुलिस और कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को तत्काल आदेश दिए जायें। कर्नाटक हाईकोर्ट ने तब अनुरोध किया था कि राज्य सरकार उन विधायी प्रावधानों को बताये जो मस्जिदों में लाउडस्पीकरों और पब्लिक एड्रेस सिस्टम की अनुमति देते हैं और साथ ही यह भी बताये कि सरकार द्वारा नवंबर 2021 तक उनके उपयोग को रोकने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं।

हरियाणा और पंजाब हाई कोर्ट: जुलाई 2019 में, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने धार्मिक संगठनों सहित सार्वजनिक क्षेत्रों में लाउडस्पीकरों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया। कोर्ट के अनुसार, पब्लिक एड्रेस सिस्टम का उपयोग केवल पूर्व अनुमति के साथ किया जाना चाहिए और शोर का स्तर तय मानक सीमा से अधिक नहीं होना चाहिए।

इस प्रकार न केवल मस्जिदों से, बल्कि मंदिरों और गुरुद्वारों से भी लाउडस्पीकर हटाकर उत्तर प्रदेश प्रशासन ने सांप्रदायिक सौहार्द और सेक्युलेरिज्म का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है। हालांकि भारत स्वयं को “सेक्युलर देश” के रूप में कैसे पहचानता है या इसकी पुष्टि कैसे करता है, इस पर विस्तार से चर्चा हुई है या होती रहती है लेकिन कदाचित विषय ऐसा नहीं है और योगी आदित्यनाथ सेक्युलेरिज्म के नेहरूवादी ब्रांड के बारे में दशकों से वामपंथियों द्वारा प्रचारित और स्थापित किए गए लोकप्रिय मिथकों को तोड़ने के अभियान पर लगे हुए प्रतीत होते हैं।

वामपंथी शिक्षाविदों, विचारकों और कार्यकर्ताओं ने सेक्युलरिज्म को बड़ी धूर्तता से केवल हिंदुओं और उनकी संस्कृति अथवा परम्पराओं को घृणित और निंदनीय रूप से प्रचारित करने साजिश की है। इस प्रकार उनकी “सेक्युलर साख” और भारत में अल्पसंख्यक समुदायों खासकर मुस्लिमों के साथ उनकी “एकजुटता” का खोखलापन सिद्ध होता है।

शब्द के गहरे अर्थ से परे, ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी सेक्युलरिज्म को कुछ ऐसे परिभाषित करती है “ऐसी आस्था अथवा विश्वास कि रिलिजन को समाज, शिक्षा, सरकार आदि के संगठन को न तो प्रभावित करना चाहिए या इसमें सम्मिलित नहीं होना चाहिए।” सेक्युलरिज्म के स्थापित ब्रांड जो लगातार अल्पसंख्यक तुष्टिकरण पर निर्भर करता है, को चुनौती देकर कदाचित योगी सरकार कुछ ऐसा ही कर रही है।

योगी आदित्यनाथ के उत्तरप्रदेश में न तो विकास दुबे को छोड़ा गया और न ही मुख्तार अंसारी को। वाराणसी के काशी विश्वनाथ धाम, काल भैरव, संकटमोचन मंदिर, दुर्गा मंदिर और तुलसी मानस मंदिर जैसे मंदिरों में आरती के दौरान लाउडस्पीकर का उपयोग नहीं किया जाता है, तो सरकार ने ज्ञानवापी मस्जिद में स्थित लाउडस्पीकरों के स्तर को भी कम कर दिया है।

भगवाधारी मुख्यमंत्री के सत्ता में आने के बाद से से ही उत्तरप्रदेश में अपराधों के बारे में अपनी नीति स्पष्ट रखी है और एक साक्षात्कार में कहा है, “अगर अपराध करेंगे तो ठोके दिए जाएंगे।” अपराधियों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई मुख्यमंत्री की प्रिय परियोजना ‘ऑपरेशन क्लीन’ के तहत की गई है और योगी सरकार का प्रदेश में कानून और व्यवस्था पर एक सुदृढ़ नियंत्रण हो गया है क्योंकि उत्तर प्रदेश में अब अपराध दर राष्ट्रीय औसत से बहुत नीचे है। ध्यातब्य है उत्तर प्रदेश जिसे कभी दंगों का केंद्र माना जाता था उसमें रामनवमी के अवसर पर सांप्रदायिक झड़पों, दंगों या यहां तक कि हिंसा का एक भी मामला सामने नहीं आया था, जबकि इस्लामवादियों द्वारा की गयी पत्थरबाजी, हिंसा और आगजनी की अपराधिक घटनायें पूरे भारत में देखी गई थी।

हालांकि, स्टॉकहोम सिंड्रोम का भारतीय संस्करण एक बार फिर से “लिबरलों” के पेट में कट्टरपंथी मरोड़ पैदा कर रहा है। हिंसा को सही साबित करने के लिए जो तथाकथित कहानी योजनापूर्वक चलाई जा रही है, वह है: “हिंदुओं ने “मुस्लिम इलाकों” से गुजरते हुए “भड़काऊ संगीत” बजाकर और “नारे लगाकर” स्थानीय मुस्लिम समुदायों को उकसाया।”

लिबरलों को ऐसे कुतर्कों के प्रचार में सावधान रहना चाहिए क्योंकि ऐसा प्रचार करके अब वे चरमसीमा तक पहुंच गए हैं और उन्हें पता होना चाहिए कि उनकी प्रासंगिकता के दिन अब समाप्त हो चुके हैं। यदि केवल एक धार्मिक जुलूस में संगीत बजाना हिंसक कुकृत्यों के लिए उचित ठहराया जा रहा है, तो क्या यह केवल हिंदुओं के लिए अपनी धार्मिकता को निजी स्थानों तक सीमित रखने के लिए एक कॉल नहीं है, जबकि मुसलमानों को सड़कों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर भी नमाज पढ़ने की छूट है, यह तो कट्टरपंथी मुसलमानों को अराजकता फ़ैलाने के लिए प्रोत्साहित करता है। इस तरह अल्पसंख्यकवाद, जैसी एक राजनीतिक संरचना अथवा प्रक्रिया के लिए सन 1947 के बाद से ही भारतीय राजनीति में एक आबादी विशेष के एक अल्पसंख्यक वर्ग के लिए निर्णय लेने में कुछ हद तक प्रधानता और अनिवार्यता है।

आपको यह जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि हिंसा के लिए “उकसावे” के रूप में गीत-संगीत वाला यह अभिनय कुछ नया नहीं है। सांप्रदायिक आक्रमण पर एक अध्याय में, बी.आर. अम्बेडकर ने कहा है, “शोषण की इस भावना का एक और उदाहरण गो-हत्या पर मुस्लिम आग्रह मस्जिदों के सामने संगीत के बजाने द्वारा प्रस्तुत किया गया है।

सभी मुस्लिम देशों में मस्जिद के सामने बिना किसी आपत्ति के संगीत बजाया जा सकता है। यहां तक कि अफगानिस्तान जैसे देश जो सेक्युलर देश नहीं है में मस्जिद के सामने संगीत पर कोई आपत्ति नहीं की जाती है। लेकिन भारत में, मुसलमानों के पास इसे रोकने पर जोर देने के लिए इसके अलावा और कोई कारण नहीं कि हिंदू इसके अधिकार का दावा करते हैं।” बी.आर. अम्बेडकर जो हिंदू धर्म की आलोचना के लिए कुख्यात थे, इस्लाम की आलोचना में और भी अधिक मुखर थे।

हालांकि, यह एक विडंबना है कि एक ही व्यक्ति जिसने दो अलग-अलग निबंधों में दो अलग अलग समुदायों की आलोचना की है, उन्हें इतने अलग-अलग तरीके से पढ़ा जाता है। लेकिन निश्चित रूप से भेदभाव के सबसे आकर्षक कॉकटेल और ‘विक्टिम कार्ड’ का प्रदर्शन हम तब देखते है जब रामनवमी के पावन दिवस पर इस्लामवादियों द्वारा की गयी हिंसा और आगजनी की जिम्मेदारी भी हिंदुओं के दरवाजे पर रख दी जाती है।

अपने दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ लेने वाले उत्तरप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक जनसभा में कहा कि कहीं भी तू-तू मैं-मैं (तर्क) नहीं हुआ, दंगों और हंगामे को तप छोड़ ही दीजिये।” उन्होंने कहा, ‘यह यूपी की नई और प्रगतिशील सोच सोच का सबूत है।

यहां, दंगों और अराजकता के लिए कोई जगह नहीं है। यूपी ने रामनवमी के अवसर पर इसका प्रदर्शन किया है। ” वास्तव में, उत्तरप्रदेश में निर्मित कानून और व्यवस्था की स्थिति इस बार में चुनावों में सन्यासी मुख्यमंत्री का तुर्प ला पता या इक्का था। यूपी लगातार व्यवसायों और व्यवसायियों को आकर्षित कर रहा है, सबसे कम अपराध दर का अनुभव कर रहा है, और एक आदर्श राज्य के रूप में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने में सफल हो रहा है। मुलायम सिंह यादव द्वारा बलात्कार के लिए मृत्युदंड का विरोध करने वाले कुख्यात वचन “लडके हैं गलती हो जाती है” से लेकर योगी आदित्यनाथ के “अगर अपराध करेंगे तो ठोके दीये जाएंगे” तक उत्तर प्रदेश ने निश्चित रूप से एक लंबी यात्रा की है!

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं और समसामयिक विषयों पर बेबाकी से लिखते)

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