मनोज जोशी:
भारतीय बैडमिंटन टीम ने आज वह कर दिखाया जो 1948-49 से लेकर आज तक के थॉमस कप (Thomas Cup) के इतिहास में कोई भारतीय टीम नहीं कर पाई थी। भारतवासी बैंकॉक को कभी नहीं भूल पाएंगे जहां भारत ने 14 बार की चैम्पियन और छह बार की रनर्स अप इंडोनेशिया को 3-0 से धो डाला।
बैंकॉक में एक तरफ ढोल नगाड़ों का शोर और फिर राष्ट्रगान की ध्वनि ने पूरे वातावरण पर चार चांद लगा दिए। उस समय ऐसा लग रहा था कि यह लम्हा बस यहीं थम जाए। इंडोनेशिया रिकॉर्ड, रैंकिंग और अनुभव सबमें भारत से ऊपर था। यहां तक कि इस आयोजन में वह एक भी मुक़ाबला हारा नहीं था, इसीलिए उसे फेवरेट माना जा रहा था।
मगर भारत ने दिखा दिया कि अगर जीत की भूख हो और जीत का जज़्बा हो तो हर बड़ी बाधा को पार किया जा सकता है। ठीक उसी तरह जैसे भारत ने लंदन, रियो और फिर टोक्यो में बैडमिंटन में पदक जीतकर किया और इस बार वर्ल्ड चैम्पियनशिप में किदाम्बी श्रीकांत का सिल्वर और लक्ष्य सेन का ब्रॉन्ज़ मेडल मेडल जीतकर बड़ी उपलब्धि जुटाना रहा हो।
मगर ओलिम्पिक और वर्ल्ड चैम्पियनशिप की इस उपलब्धि में एक चीज़ गायब थी और वो थी गोल्ड मेडल की चमक। यही बात भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ियों को अंदर से खल रही थी। मगर जिस तरह भारतीय खिलाड़ी तीनों मुक़ाबलों में चैम्पियन इंडोनेशिया पर दहाड़े, उससे यह बात साबित हो गई कि आने वाला कल हमारा है।
आज थॉमस कप में 74 साल के सूखे को खत्म किया है, पेरिस ओलिम्पिक में अब गोल्ड मेडल के सूखे को खत्म करने की बारी है। जो लक्ष्य सेन पिछले मुक़ाबलों में अपना मैच नहीं जीत पा रहे थे, मौके पर उन्होंने टोक्यो ओलिम्पिक के ब्रॉन्ज़ मेडलिस्ट एंथनी गिटिंग को हराकर सबको चौंका दिया।
पहला गेम हारने के बाद लक्ष्य सेन की गिटिंग को नेट से दूर खिलाने की रणनीति कारगर साबित हुई। सात्विक साईराज रेंकी रेड्डी और चिराग शेट्टी की जोड़ी ने वो खेल दिखाया जो उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स के मिक्स्ड टीम इवेंट में दिखाया था। दूसरे गेम में तो इस जोड़ी को मैच पॉइंट बचाने की नौबत आ गई और
उसने चार मैच पॉइंट बचाकर यह गेम जीता और फिर मैच जीतकर भारत की बढ़त को 2-0 कर दिया। निर्णायक मुक़ाबले में किदाम्बी श्रीकात ने अपने से चार रैंक ऊपर खिलाड़ी जोनाथन क्रिस्टी को हराकर भारत के लिए स्वर्णिम लम्हा जुटाया। क्रिस्टी चार साल पहले एशियाई खेलों के गोल्ड मेडलिस्ट थे।
किदाम्बी के खिलाफ उनका रिकॉर्ड 5-4 का था मगर श्रीकांत ने अपने शानदार फोरहैंड क्रॉसकोर्ट और अटैकिंग खेल से क्रिस्टी को अपने सामने टिकने ही नहीं दिया। हालांकि बीच-बीच में एकाग्रता खोने से उन्होंने एक साथ कई अंक गंवाये भी लेकिन उन्हें खुद पर भरोसा था और इसी भरोसे पर वह खरे उतरे।
क्या कोई कभी सोच सकता था कि भारत क्वॉर्टर फाइनल और सेमीफाइनल में पूर्व चैम्पियन मलयेशिया और डेनमार्क को हरा देगा और लीग में जर्मनी और कनाडा को 5-0 के अंतर से हराएगा। क्या विश्व बैडमिंटन पर राज करने वाली इंडोनेशियाई टीम को 3-0 से हराने की कोई उम्मीद कर सकता था।
अब भारत को चाहिए कि गोपीचंद एकेडमी और प्रकाश पादूकोण एकेडमी को और प्रमोट करे और भारत के उत्तर और पूर्वी हिस्से में दो वर्ल्ड क्लास एकेडमियों को बनाए जिसमें दुनिया के आला दर्जे के कोचों को रखे क्योंकि इस खेल ने लगातार अच्छे खेल से साबित कर दिया है कि इसमें भारत का भविष्य है। भारत इस खेल में ओलिम्पिक गोल्ड भी जीत सकता है।
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