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India News (इंडिया न्यूज़), Election 2024: “हमारे हाल पे लिखने किताब आए हैं, सलाम कीजिए आली जनाब आए हैं, ये पांच सालों का, देने हिसाब आए हैं”…. 48 साल पहले गुलज़ार साहब ने फ़िल्म ‘आंधी’ के लिए ये गीत लिखा। गीत ने आपातकाल में कई नेताओं पर चोट की। कहते हैं कि ये गीत सुनकर चुनावी मौसम में मेंढक जैसे निकलने वाले नेता बग़लें झांकने लगते थे। 2024 का लोकसभा चुनाव चंद महीनों के फ़ासले पर है, फिर से मुद्दे निकल रहे हैं, फिर से ‘दर्शन’ के दर्शन हो रहे हैं। नया ‘दर्शन’ राहुल गांधी का है, दर्शन के केंद्र में ‘हिंदू’ है और दर्शन के चारों तरफ़ वोट ही वोट है। राहुल का हिंदू पर दर्शन भरा लेख भारतीय जनता पार्टी को नागवार गुज़रा, मीनाक्षी लेखी ने उन्हें चुनावी हिंदू करार दे दिया। राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’ के नाम से लेख लिखा। लेख में राहुल गांधी ने हिंदू की परिभाषा, इतिहास, विचार, कर्म, दर्शन सब कुछ बता डाला है।
सवाल टाइमिंग को लेकर है, होना भी चाहिए। कांग्रेस की पहचान मध्यमार्गी पार्टी की है, लेकिन राहुल का हिंदू राग विचारात्मक विभ्रम का संकेत दे रहा है। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के ठीक पहले राहुल का हिंदू दर्शन कुछ ख़ास नहीं चौंकाता। याद कीजिए चुनाव के वक़्त ‘जनेऊ’ और ‘आचमन’ पिछले कुछ सालों में कांग्रेस के बड़े नेताओं की पहचान है। अभी एक महीना पहले ही तो मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में बागेश्वर धाम वाले धीरेंद्र शास्त्री की कथा का आयोजन कराया था। इतना ही नहीं कमलनाथ ने बाबा धीरेंद्र शास्त्री की आरती उतारते हुए कहा था कि वो हनुमान भक्त हैं और उन्हें हिंदू होने का गर्व है। हिंदू बहुसंख्यकों को लेकर कांग्रेस के दिल में कुलबुलाहट है और उसे अंदाज़ा है कि उदयनिधि जैसे I.N.D.I.A. गठबंधन के नेताओं ने बेड़ागर्क कर दिया है। डैमेज कंट्रोल करने के लिए राहुल गांधी का लेख ज़रूरी था।
लेकिन सियासत में सब कुछ वैसा नहीं होता जैसा देखा, समझा या बताया जाता है। कांग्रेस की छवि पिछले एक दशक में हिंदू विरोधी की बनी, जिसमें पलीता लगाने वाले नेता वक्त वक्त पर बयान देते रहे। अभी हाल का ही बयान याद कीजिए जब अज़ीज़ क़ुरैशी जैसा नेता ने कहा, ‘कांग्रेस नेताओं का गंगा-नर्मदा की जय बोलना शर्मनाक है और ये डूब मरने वाली बात है’। और तो और कांग्रेस के बड़े नेता राशिद अल्वी ने तो चंद्रयान के अवतरण बिंदु के ‘शिवशक्ति’ नाम पर ही ऐतराज़ जता दिया। 50 के दशक में हिंदू कोड बिल पास हुए, तब भी कांग्रेस पर हिंदू विरोधी होने के आरोप लगे। लेकिन आज़ादी के बाद कांग्रेस के सिवा कोई विकल्प नहीं था, लिहाज़ा तब लोकप्रियता में कमी नहीं आई।
2014 में लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री एके एंटनी ने कहा था, “छद्म धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यकों के प्रति झुकाव रखने वाली छवि सुधारनी होगी।” शाह बानो, बाबरी विवाद, मौत का सौदागर बयान, सोनिया की इमाम से मुलाक़ात- कांग्रेस की ऐतिहासिक भूलों में से एक है। आज हालात ये हो गए हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने नैरेटिव सेट कर दिया है कि- कांग्रेस तो हिंदू विरोधी है। कांग्रेस की छटपटाहट समझ आती है। अल्पसंख्यक वोट बैंक तो वैसी ही क्षेत्रीय पार्टियों में छिटके पड़े हैं, इधर हिंदू वोट जा रहा है वो अलग। देश की सबसे पुरानी पार्टी ने भारत पर सबसे ज़्यादा समय तक राज किया, लेकिन आज सिर्फ 7 राज्यों तक उसकी सरकार सिमट कर रह गई है। हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। बिहार, झारखंड और तमिलनाडु में कांग्रेस पार्टी गठबंधन में है। वहीं कर्नाटक में कुछ दिन पहले ही चुनाव जीता है।
हिंदी बेल्ट और उत्तर भारत, ‘धर्म’ और ‘जातिवाद’ की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है, जिसका ‘लिटमस टेस्ट’ वो ही पास कर सकता है जो इसमें फिट बैठ जाए। राहुल गांधी दुविधा में हैं। हिंदू और मुस्लिम वोट बैंक में संतुलन साधने के लिए ‘नफ़रत के बाज़ार में मुहब्बत की दुकान’ जैसे जुमले गढ़ते हैं, लेकिन अगले पल लगता है कि कहीं हिंदू ना बिदक जाएं। एके एंटनी ने तो यहां तक कह दिया था कि, “हमें मोदी के ख़िलाफ़ लड़ाई में हिंदुओं को साथ लेने की ज़रूरत है।” मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोपों से बाहर आने की कोशिश में कांग्रेस और राहुल गांधी कुछ ऐसा कर रहे हैं कि वो ना तीन में रह जाते हैं और ना ही तेरह में। राहुल गांधी भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर राजनीति में धर्म के इस्तेमाल का आरोप लगाते हैं, लेकिन ख़ुद मौक़ा देख कर मंदिर और मठ जाने से बाज़ नहीं आते। नतीजा बीजेपी हमलावर होकर कहती है कि राहुल तो ‘चुनावी हिंदू’ हैं।
कांग्रेस को इतिहास से सबक़ सीखने की ज़रूरत है। इंदिरा गांधी की हत्या हुई, राजीव गांधी देश के नए पीएम बने। कांग्रेस के अंदर ‘धर्मनिरपेक्ष’ वाला टैग हटाने की घुटन होने लगी। राजीव गांधी के वक्त बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाया गया, राम मंदिर के शिलान्यास की इजाज़त मिली और फिर शाह बानो के मामले में स्टैंड बदलने से कांग्रेस को ‘छद्म धर्मनिरपेक्ष’ पार्टी कहा जाने लगा। कांग्रेस को समझ आ गया था कि हिंदुओं के बिना राज नहीं किया जा सकता, तो आनन फ़ानन में दूरदर्शन पर रामायण की शुरुआत हुई, लेकिन तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी। भारतीय जनता पार्टी के उदय के पहले साल, देश की राजनीति पर भगवा रंग चढ़ चुका था। कांग्रेस के कन्फ्यूजन ने उसे बैकसीट पर डाल दिया है। पार्टी को समझना होगा कि पॉलिटिकल पोस्चरिंग बहुत ज़रूरी है।
हिंदू और हिंदुत्व पर आप सॉफ्ट पोस्चरिंग नहीं रख सकते। देश की बड़ी आबादी को बताना होगा कि आप उनके साथ हैं या नहीं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा है कि, “कांग्रेस की हिंदू विरोधी और मुस्लिम परस्त पार्टी की छवि बन गई है। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदू विरोधी और इस्लाम समर्थक लाईन अपनाना ठीक नहीं।” इंदिरा गांधी के वक़्त कांग्रेस में विचारात्मक विभ्रम नहीं था। इंदिरा गांधी संतुलन साध कर चलने में यक़ीन रखती थीं। मठ-मंदिर जा कर साधु संतों के दर्शन करके उनका आशीर्वाद लेती थीं। कांग्रेस का तथाकथित मुस्लिम तुष्टिकरण साल 1986 में राजीव गांधी के समय शाहबानो केस पर आए गुज़ारा भत्ता फैसले को पलटने से शुरू हुआ। 37 साल गुज़र गए, लेकिन कांग्रेस इस छवि से बाहर नहीं आ सकी।
अब राहुल गांधी ने हिंदू दर्शन पर कुछ शब्द उकेरे हैं, हिंदू होने का ‘अर्थ’ बताया है। बीजेपी को ये अर्थ व्यर्थ लगता है, तभी तो अनुराग ठाकुर ने कहा, ”चुनावी हिंदू रूपी कालनेमि ने जब-जब हमारे धैर्य और भावनाओं की लक्ष्मण रेखा लांघी है, उनका भेद खुला है और जनता ने जवाब दिया है। हिंदुत्व हमें सद्भाव सिखाता है, सर्वकल्याण की भावना जगाता है। हिंदू धर्म और हिंदुत्व पर लंबे लेख लिखना आसान है, मगर हिंदुत्व को जीवन में उतारना, आचरण में लाना उसे जीना एक चुनावी हिंदू के बस की बात नहीं।” मेरा मानना है कि राहुल गांधी जैसे नेताओं को समझने की ज़रूरत है कि हिंदू या हिंदुत्व के दर्शनशास्त्र से काम नहीं चलेगा, बदलना है तो कांग्रेस का समाजशास्त्र बदलिए। दर्शनशास्त्र से ज्ञानी मिलेंगे और समाजशास्त्र से सियासत सधेगी।
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