संबंधित खबरें
‘कुछ लोग खुश है तो…’, महाराष्ट्र में विभागों के बंटवारें के बाद अजित पवार ने कह दी ये बड़ी बात, आखिर किस नेता पर है इनका इशारा?
कांग्रेस को झटका देने की तैयारी में हैं उमर अब्दुल्ला? पिछले कुछ समय से मिल रहे संकेत, पूरा मामला जान अपना सिर नोंचने लगेंगे राहुल गांधी
खतरा! अगर आपको भी आया है E-Pan Card डाउनलोड करने वाला ईमेल? तो गलती से ना करें क्लिक वरना…
मिल गया जयपुर गैस टैंकर हादसे का हैवान? जांच में हुआ चौंकाने वाला खुलासा, पुलिस रह गई हैरान
भारत बनाने जा रहा ऐसा हथियार, धूल फांकता नजर आएगा चीन-पाकिस्तान, PM Modi के इस मास्टर स्ट्रोक से थर-थर कांपने लगे Yunus
‘जर्सी नंबर 99 की कमी खलेगी…’, अश्विन के सन्यास से चौंक गए PM Modi, कह दी ये बड़ी बात, क्रिकेट प्रशसंक भी रह गए हैरान
India News ( इंडिया न्यूज़ ),Lok Sabha Election: 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने संगठन में बड़ा फेरबदल किया है। सचिन पायलट, कुमारी शैलजा, रमेश चेन्निथला, रणदीप सिंह सुरजेवाला, मोहन प्रकाश, देवेंद्र यादव जैसे नेताओं की ज़िम्मेदारी बदली गई है। चेहरे बदले पर ‘बदलाव’ नहीं है। बदलाव वक़्त का तक़ाज़ा है। दीवार पर लिखी इबारत कांग्रेस के बड़े लोग पढ़ नहीं पा रहे हैं।
देश की सबसे पुरानी पार्टी तेलंगाना, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में सिमट कर रह गई है। कांग्रेस को ‘गांधी’ नाम की ब्रांडिंग से निकलना होगा, तभी बदलाव की बयार बहेगी। कांग्रेस को ‘गांधी की’, ‘गांधी के द्वारा’ और ‘गांधी के लिए’ वाले टैग से निकलने की ज़रूरत है। मल्लिकार्जुन खड़गे ‘अध्यक्ष’ बना तो दिए गए, लेकिन ‘अध्यक्ष’ नज़र नहीं आते। राजनीति में नज़र आना ज़रूरी है, नज़र आएंगे तभी कुछ कर पाएंगे।
राजनीतिक पार्टियां काडर से बनती हैं, राजनीतिक विरासत से नहीं। जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी तक का सफ़र ज़मीनी कार्यकर्ताओं ने तय किया। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, आरजेडी, डीएमके जैसी पार्टिंयां नाम और विरासत की छवि से निकल नहीं पातीं, या यूं कहें कि निकलना ही नहीं चाहतीं। नाम से ना निकल पाना ग़ुलामी मानसिकता का सबूत है।
पार्टी का मतलब राजशाही सत्ताशीर्ष नहीं होता। पार्टी का मतलब है संघर्ष से सींची फ़सल का स्वाद उस किसान को चखाना जिसने पार्टी को बनाया है। कांग्रेस को ‘गांधी’ के नाम पर फ़सल काटना तो आता है, पर उस फ़सल का श्रेय देने की हिम्मत किसी में भी नहीं।
कांग्रेस में असल बदलाव ना हुए तो वो दिन दूर नहीं जब इतिहास की किताब में कांग्रेस का आरंभ और अंत दोनों पढ़ाया जाएगा। बदलाव इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि कांग्रेस ने पिछली सरकारों की नाकामी का चोला ओढ़ा हुआ है। बेहतर करना है तो दाग़ वाला चोला उतारना होगा। गांधी से निकलने में वक़्त तो लगेगा, पर फल मीठा होगा।
भारतीय जनता पार्टी को सशक्त, सबल होने में दो दशक लग गए। अटल की बीजेपी, आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कुशाभाऊ ठाकरे, बंगारू लक्ष्मण, जनाकृष्णमूर्ति, वेंकैया नायडू, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, अमित शाह, जेपी नड्डा की है। बीजेपी जितनी नरेंद्र मोदी की है उतनी ही ज़मीन पर काम करने वाले आख़िरी कार्यकर्ता की।
भारतीय जनता पार्टी ने राज्यों में चौंकाने वाले नामों को मुख्यमंत्री बना कर साबित किया कि काम का फल ज़रूर मिलेगा। कांग्रेस में गांधी को प्राइज़ मिलता है, पर पार्टी को सरप्राइज़ कभी नहीं मिलता। नाम नहीं बदलते। ‘जड़’ को ‘चेतन’ होना ज़रूरी है। ‘चेतन’ ही ‘नवीन’ बनता है, नए फ़ैसले लेता है। राहुल गांधी की ‘लॉन्चिंग’ और ‘रीलॉन्चिंग’ फ़ेल होती रही है, कांग्रेस को ये समझने की ज़रूरत है। आडवाणी, जोशी जैसे दिग्गज नेता बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में हैं। कांग्रेस में क्या मजाल कि सोनिया गांधी को मार्गदर्शक मंडल में डालने की कोई बात भी कर सके।
देश की सबसे पुरानी पार्टी सबसे बुरे दौर से गुज़र रही है। कांग्रेस को समझना होगा कि केंद्र में पिछले 10 साल से शासन तक नहीं किया है। जनता की याद्दाश्त भी कांग्रेस को लेकर कमज़ोर पड़ती जा रही है। इस याद्दाश्त को ज़िंदा रखने के लिए बदलाव ज़रूरी है। मैं ये नहीं कह रहा कि कांग्रेस शासनकाल में अच्छे काम नहीं हुए, बिल्कुल हुए। लेकिन इतिहास को ढोने वाले इतिहास बन जाते हैं। भविष्य की पार्टी बनने के लिए आमूलचूल परिवर्तन ज़रूरी है।
वक़्त लगेगा, हो सकता है महीनों, सालों या फिर दशक का वक़्त लगे। लेकिन पुराने पत्ते झड़ेंगे तो नए फूल खिलने का मौक़ा मिलेगा। ये नए युग का भारत है, इसकी प्राथमिकताएं भी अलग हैं। अब एयर कंडीशन्ड रूम से निकले लकदक और चकाचक क्रीज़ वाले नेता पसंद नहीं किए जाते। जनता पसीना बहाने वाले नेता को अपने पास पसंद करती है। जनता को जनता की समझ रखने वाले नेता पसंद हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सड़क पर आते हैं, लोगों के बीच जाते हैं, लोगों के बीच रह जाते हैं। दिल में बसना है तो पसीना बहाना होगा। पसीना टीवी कैमरा पर बहा तो ‘क्लास’ को पसंद आएगा, खेत-खलिहान-गली-मोहल्ले में बहा तो ‘मास’ का दिल जीत जाएगा। कांग्रेस को फल चाहिए तो ‘गांधी ब्रांडिंग’ से निकलने का हल भी ढूंढना ही होगा। आप ‘गांधी’ से निकलेंगे तब शायद कहीं पहुंच पाएंगे। दिल्ली तक आना है तो दीवार पर लिखी इबारत को एक बार नहीं बल्कि बार बार पढ़िए।
ये भी पढ़े:
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.