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करते हैं 17 श्रृंगार! महिलाओं से भी ज्यादा गुप्त रखते हैं नागा साधु ये राज, क्या हैं इन सन्यासियों का वो बड़ा रहस्य?

By: Preeti Pandey

• LAST UPDATED : December 26, 2024, 11:44 am IST
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करते हैं 17 श्रृंगार! महिलाओं से भी ज्यादा गुप्त रखते हैं नागा साधु ये राज, क्या हैं इन सन्यासियों का वो बड़ा रहस्य?

History of Naga Sadhu: करते हैं 17 श्रंगार!

India News (इंडिया न्यूज), History of Naga Sadhu: बाहर से देखने पर नागा साधुओं का जीवन त्यागमय लगता है। सांसारिक मोह-माया, सांसारिक सुख और सभी भौतिक चीजों से पूरी तरह विरक्त। नागा साधु 17 तरह के श्रृंगार क्यों करते हैं? हमारी परंपरा में 16 श्रृंगार बताए गए हैं, तो फिर नागाओं के जीवन में 17 श्रृंगार का नियम क्या है? यह सवाल जितना रोचक है, नागा साधुओं के जीवन के नियम उतने ही रहस्यमयी हैं।

ये सनातनी ध्वज के प्राचीन रक्षक हैं। नागा का शाब्दिक अर्थ देखें तो इसका मतलब है खाली, जिनके पास कुछ भी नहीं है। निर्वस्त्र, गरीबी, दुनिया और लोक-सम्मान की सांसारिक परिभाषा से दूर, ये नग्न होते हैं… शिव की तरह जटाएं, हाथों में डमरू और त्रिशूल। शरीर पर भस्म लगाए ये निष्कलंक तपस्वी होते हैं।

नागा का दूसरा अर्थ आध्यात्मिक है

नागा का दूसरा अर्थ आध्यात्मिक है, नागा का अर्थ है सनातन धर्म में सिद्धि प्राप्त आत्माओं का समूह, इनके हाथ में चिलम होती है और ये उससे धूम्रपान करते हैं। ये दुनिया से दूर रहते हैं। ऐसे विरक्त तपस्वियों को देखकर आम आदमी हैरान रह जाता है। ऐसा लगता है मानो भगवान शिव के अनुयायियों का समूह आमने-सामने आ गया हो, शिव के भक्त नागाओं का यह समूह आम साधु-संतों जैसा नहीं दिखता, लेकिन जब ये कुंभ या अर्धकुंभ में उमड़ते हैं, तो हर किसी की आंखें कौतुहल से भर जाती हैं। कुंभ में नागा साधु न केवल आकर्षण का केंद्र होते हैं, बल्कि ये इसलिए भी खास होते हैं क्योंकि शाही स्नान में सबसे पहले स्नान करने का अधिकार नागाओं को ही मिलता है।

नागा साधु करते हैं पूरे 17 श्रृंगार

शाही स्नान की अग्रिम पंक्ति में नागाओं का समूह ऐसा दिखता है जैसे ईसा से पहले के युग में राजा लोग उन्हें युद्ध की अग्रिम पंक्ति में रखते थे। शाही स्नान में भी यही परंपरा देखने को मिलती है। गंगा में डुबकी और स्नान तो सभी देखते हैं, लेकिन उसके बाद एकांत में नागाओं का रहस्यमयी श्रृंगार शुरू हो जाता है, जिसे नागा बेहद गुप्त रखते हैं।

जैसे एक महिला अपने श्रृंगार के दौरान गोपनीयता चाहती है, वैसे ही नागा अपने श्रृंगार को लेकर महिलाओं से कहीं ज्यादा गोपनीयता रखते हैं। क्योंकि नागा 16 नहीं बल्कि 17 श्रृंगार करते हैं। जिनके शरीर पर पूरे कपड़े नहीं होते वे 16 श्रृंगार कलाओं से ऊपर कैसे हो सकते हैं? यह जानने की जिज्ञासा हमें नागा साधुओं के बीच ले गई। जानकारों ने बताया कि नागा साधु यह अनोखा श्रृंगार अपने श्रृंगार के लिए नहीं, बल्कि अपने आराध्य शिव के लिए करते हैं।

स्वभाव से आक्रामक होते हैं नागा साधु

नागा साधु स्वभाव से आक्रामक होते हैं। एक बार जब वे किसी काम को करने से मना कर देते हैं, तो उस पर कोई चर्चा नहीं होने दी जाती। खास तौर पर स्नान के बाद श्रृंगार के दौरान। इस अवस्था में नागा साधु आमतौर पर मौन रहते हैं, मानो वे जिसके लिए श्रृंगार करते हैं, उसकी पूजा में लीन हों। श्रृंगार की परंपरा भी यही है, चाहे वह महिलाओं का श्रृंगार हो या नागा साधुओं का।

नागा साधुओं के 17 श्रृंगार

बिंदी की जगह तिलक

सिंदूर की जगह चंदन

मांगटीका- लटों में बंधे बाल

काजल- काजल

नाक की नथ- चिमटा, डमरू या कमंडल

हार- रुद्राक्ष की माला

झुमके- कुंडल

मेहंदी- रोली का लेप

चूड़ियां- कंगन

बाजूबंद- रुद्राक्ष या फूलों की माला

अंगूठी- छल्ला

बालों का श्रृंगार- पंचकेश

कमरबंद- रुद्राक्ष या फूलों की माला

पायल- लोहे या चांदी का कंगन

इत्र- चंदन

कपड़ों की जगह लंगोटी पहनें

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इष्टदेव शिव को प्रसन्न करने का प्रयास

नागा साधु अपने इष्टदेव शिव को प्रसन्न करने के लिए 16 श्रृंगारों पर घंटों मेहनत करते हैं। इसके बाद ही नागा संन्यासियों का तपस्वी रूप सिद्ध होता है। यह नागा संन्यासियों का श्रृंगार है, जो उनके शरीर पर खुलेआम दिखता है, लेकिन वे खुद इसके महत्व के बारे में नहीं बताते। यह चुप्पी कुछ वैसी ही है, जैसे महिलाएं श्रृंगार में सिंदूर को बनाए रखती हैं।

सनातन परंपरा में जिस तरह सिंदूर विवाहित महिलाओं को उनके सुहाग की याद दिलाता है, उसी तरह तप का प्रतीक भस्म नागा संन्यासियों को हर पल याद दिलाता है कि उन्होंने जीवित रहते हुए अपना श्राद्ध और पिंडदान कर लिया है। यानी उन्होंने भगवान द्वारा दिए गए सांसारिक रूप का त्याग कर दिया है। नागाओं की रहस्यमयी दुनिया में इस त्याग की भी परीक्षा होती है। इस कठिन परीक्षा को पास करने के बाद ही नागा के रूप में सिद्ध संन्यासी की उपाधि मिलती है।

नागा संन्यासियों को शिव और अग्नि का भक्त माना जाता है। मुख्य रूप से नागा परंपरा में तपस्वी पुरुष ही होते हैं, लेकिन अब कुछ महिलाएं भी नागा साधु बनने लगी हैं। हालांकि, महिला नागा साधु दिगंबरों की तरह नग्न नहीं रहतीं, बल्कि भगवा वस्त्र पहनती हैं। नागाओं की दुनिया में यह एक नई परंपरा है, लेकिन नागा साधु बनने की शर्तें वही हैं जो प्राचीन काल से चली आ रही हैं।

कैसे बनते हैं नागा साधु?

नागा साधु बनने की पूरी प्रक्रिया 12 साल की होती है। इसमें साधुओं के लिए शुरुआती 6 साल अहम होते हैं। इस दौरान साधुओं को लंगोटी के अलावा कुछ भी पहनने की इजाजत नहीं होती। शुरुआती दौर में ही उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। ब्रह्मचर्य में सफल होने के बाद उन्हें महापुरुष की दीक्षा दी जाती है। इसके बाद यज्ञोपवीत और बिजवान की प्रक्रिया पूरी करनी होती है। बिजवान में साधुओं को अपना श्राद्ध और पिंडदान करना होता है।

12 साल की इस पूरी प्रक्रिया में सफल होने के बाद ही कोई साधु नागा समूह में शामिल होता है। इसके बाद नागाओं को जीवन भर कठिन साधनाओं से गुजरना पड़ता है। उन्हें सर्दी और गर्मी के हिसाब से अपने शरीर को साधना होता है। वे कभी बिस्तर पर नहीं सोते, सोने के लिए जमीन ही उनका एकमात्र ठिकाना है।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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