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एक शव के शरीर का ये हिस्सा क्यों होता है इतना आकर्षक कि अघोरी साधू बना लेते है इसे अपना भोजन? तंत्र साधना भी नहीं होती पूर्ण!

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : January 17, 2025, 4:00 pm IST
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एक शव के शरीर का ये हिस्सा क्यों होता है इतना आकर्षक कि अघोरी साधू बना लेते है इसे अपना भोजन? तंत्र साधना भी नहीं होती पूर्ण!

Aghori Sadhu Bhojan: एक शव के शरीर का ये हिस्सा क्यों होता है इतना आकर्षक कि अघोरी साधू बना लेते है इसे अपना भोजन

India News (इंडिया न्यूज), Aghori Sadhu Bhojan: अघोरी साधू अपने विचित्र और रहस्यमयी साधना के लिए जाने जाते हैं, जिसमें शवों के अंगों का उपयोग भी शामिल होता है। खासकर, रीढ़ की हड्डी का मांस, जिसे वे कभी-कभी अपने साधना के हिस्से के रूप में खाते हैं, उनके तंत्र और साधना में एक विशेष महत्व रखता है। हालांकि, यह विषय बहुत विवादित और संवेदनशील है, लेकिन इसके पीछे कुछ धार्मिक और तंत्रिकीय विश्वास छिपे होते हैं।

रीढ़ की हड्डी का महत्व

अघोरियों के लिए तंत्र विद्या और आत्मज्ञान प्राप्ति में शरीर के विभिन्न अंगों का विशेष महत्व होता है। खासकर, रीढ़ की हड्डी को शरीर के ऊर्जा केंद्र के रूप में देखा जाता है। हिन्दू धर्म और तंत्र विद्या के अनुसार, रीढ़ की हड्डी के आसपास शारीरिक और मानसिक ऊर्जा के प्रमुख केंद्र स्थित होते हैं। इसे “कुंडलिनी” की शक्ति का स्रोत भी माना जाता है, जो शरीर में ऊर्जा को प्रवाहित करने में मदद करती है।

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अघोरी इसे एक विशेष प्रतीकात्मक और तंत्रिकीय दृष्टिकोण से उपयोग करते हैं, जिसमें यह विश्वास होता है कि रीढ़ की हड्डी के मांस का सेवन करने से उनके भीतर की ऊर्जा जागृत होती है और उन्हें तंत्र विद्या में सिद्धि मिलती है। यह भी माना जाता है कि यह मांस उनके मानसिक और शारीरिक पावर को बढ़ाने में मदद करता है।

तंत्र और ऊर्जा के सिद्धांत

तंत्र विद्या में विशेष रूप से मांसाहारी और रक्त से संबंधित चीजों का सेवन ऊर्जा को बढ़ाने और आत्मिक शक्ति को जागृत करने के लिए किया जाता है। अघोरी इस प्रक्रिया के माध्यम से सांसारिक बंधनों से परे जाकर एक ऊंचे आध्यात्मिक स्तर तक पहुंचने की कोशिश करते हैं। रीढ़ की हड्डी का मांस इस संदर्भ में एक शक्ति-स्त्रोत के रूप में देखा जाता है, जो उनके साधना की गहराई को और प्रभावी बनाता है।

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अघोरी साधुओं द्वारा रीढ़ की हड्डी का मांस खाना एक अत्यंत रहस्यमय और संवेदनशील विषय है, जो उनके तंत्रिकीय और आध्यात्मिक विश्वासों पर आधारित है। यह केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि एक गहरी धार्मिक और तंत्रिकीय साधना का हिस्सा होता है, जो उन्हें अपनी साधना में उच्चतम सिद्धि और मानसिक शक्ति की प्राप्ति में मदद करता है। हालांकि, यह सामान्य समाज के लिए एक असामान्य और भयावह कार्य हो सकता है, लेकिन अघोरियों के लिए यह उनके विश्वासों और साधना का हिस्सा है।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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