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India News (इंडिया न्यूज), Facts About Mahabharat: महाभारत के युद्ध में घटोत्कच का योगदान और उसकी वीरगति का प्रसंग एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो कई दृष्टिकोण से कौरव और पांडव दोनों के लिए निर्णायक साबित हुआ। इस कहानी को कुछ विस्तार से समझा जा सकता है:
भीष्म पितामह की मृत्यु के बाद महाभारत में युद्ध की नैतिकता और नियम टूटने लगे थे। द्रोणाचार्य, कर्ण और अश्वत्थामा जैसे योद्धा पूरी शक्ति से पांडव सेना को समाप्त करने का प्रयास कर रहे थे। पांडवों के पक्ष में भगवान श्रीकृष्ण ने परिस्थितियों के अनुसार रणनीति बदली और भीम को अपने पुत्र घटोत्कच को युद्ध में भेजने का आदेश दिया।
Facts About Mahabharat: रात होते ही 100 हाथियों जैसी बढ़ जाती थी महाभारत के इस योद्धा की ताकत
घटोत्कच, भीम और राक्षसी हिडिंबा का पुत्र था। वह आधे मनुष्य और आधे राक्षस के रूप में जन्मा था और राक्षसों की तरह रात के समय उसकी शक्तियां कई गुना बढ़ जाती थीं। इसलिए युद्ध के 14वें दिन, रात्रि के समय उसे युद्ध के मैदान में भेजा गया। रात्रि के अंधकार में घटोत्कच ने अपनी विशाल शक्ति और मायावी युद्ध कौशल से कौरव सेना को तहस-नहस करना शुरू कर दिया। उसकी शक्ति इतनी बढ़ गई थी कि कौरव सेना में हाहाकार मच गया।
घटोत्कच ने अपने मायावी कौशल और ताकत के बल पर कौरवों के रथ, हाथी, और घोड़ों को नष्ट कर दिया। उसकी शक्ति के आगे दुर्योधन और उसकी सेना असहाय हो गए। दुर्योधन को लगने लगा कि यदि घटोत्कच को नहीं रोका गया, तो उनकी पूरी सेना का विनाश हो जाएगा।
कर्ण के पास इंद्रदेव से प्राप्त एक दिव्य अस्त्र वासवी शक्ति थी, जिसे उन्होंने अर्जुन का वध करने के लिए सुरक्षित रखा था। लेकिन घटोत्कच को रोकने के लिए दुर्योधन के आग्रह पर कर्ण ने यह अस्त्र घटोत्कच पर चला दिया। वासवी शक्ति से घायल होकर घटोत्कच वीरगति को प्राप्त हुआ। लेकिन उसने मरने से पहले भी अपने विशाल शरीर को कौरव सेना पर गिराकर भारी विनाश किया।
घटोत्कच की वीरगति न केवल उसकी महानता को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि युद्ध में रणनीति और बलिदान कितने महत्वपूर्ण होते हैं। उसकी मृत्यु ने महाभारत युद्ध को निर्णायक मोड़ दिया और पांडवों को विजय के मार्ग पर अग्रसर किया।
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