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द्रौपदी के पति होकर भी क्यों अर्जुन को उन्ही के कमरे में घुसने के लिए मिला था 1 साल का देश निकाला की सजा? एक और कहानी को जान लें आज आप!

Mahabharat Gatha: महाभारत काल में क्यों जब द्रौपदी के कमरे में घुस बैठे थे अर्जुन तब उन्हें मिली थी 1 साल की देश निकाला की सजा

BY: Prachi Jain • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), Mahabharat Gatha: महाभारत के युद्ध और उससे पहले की घटनाओं में अर्जुन का जीवन कई उतार-चढ़ावों से भरा रहा। लेकिन एक घटना ऐसी भी हुई, जब उन्हें अपने ही राज्य से एक वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया गया। यह घटना पांडवों और द्रौपदी के आपसी संबंधों से जुड़ी थी और इसके पीछे एक कठोर नियम था, जिसका उल्लंघन करने पर अर्जुन को दंड भुगतना पड़ा।

द्रौपदी और पांडवों का विवाह संबंध

द्रौपदी का विवाह पाँचों पांडवों से हुआ था, लेकिन प्रत्येक पांडव को एक निर्धारित अवधि के लिए द्रौपदी के साथ रहने का अधिकार प्राप्त था। यह अवधि एक-एक वर्ष की होती थी और उस दौरान किसी अन्य पांडव को द्रौपदी के निवास में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। यदि कोई पांडव इस नियम का उल्लंघन करता, तो उसे एक वर्ष के लिए राज्य से बाहर रहने की सजा भुगतनी पड़ती।

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अर्जुन की भूल और कठोर दंड

एक बार जब द्रौपदी और युधिष्ठिर का एक वर्ष का समय चल रहा था, उसी दौरान अर्जुन ने गलती से अपना तीर-धनुष द्रौपदी के कक्ष में छोड़ दिया। कुछ समय बाद जब अर्जुन को तत्काल अपने धनुष की आवश्यकता पड़ी, तो वे क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए बिना अनुमति द्रौपदी के कक्ष में चले गए। उस समय द्रौपदी और युधिष्ठिर साथ में थे। इस प्रकार, अर्जुन ने अनजाने में उस नियम का उल्लंघन कर दिया, जो उनके और उनके भाइयों के बीच पहले से निर्धारित था।

युधिष्ठिर ने भी इस नियम को तोड़ने के लिए अर्जुन को दोषी ठहराया और उन्हें तयशुदा दंड के अनुसार एक वर्ष के लिए देश निकाला दिया गया। अर्जुन ने इसे सहर्ष स्वीकार किया और एक वर्ष के लिए अपने राज्य से बाहर चले गए।

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अर्जुन का वनवास और नई शुरुआत

अर्जुन ने इस वनवास का उपयोग आत्मविकास के लिए किया। उन्होंने इस दौरान कई स्थानों की यात्रा की और दिव्य ज्ञान तथा अस्त्र-शस्त्र की नई विधाओं को सीखा। इस वनवास के दौरान ही उन्होंने कई नए अनुभव प्राप्त किए, जो आगे चलकर महाभारत के युद्ध में उनके लिए उपयोगी साबित हुए।

यह घटना हमें यह सिखाती है कि नियमों का पालन हर स्थिति में आवश्यक होता है, चाहे वे कितने ही कठिन क्यों न हों। अर्जुन, जो महायोद्धा थे, उन्होंने भी अपने धर्म और प्रतिज्ञा का पालन करते हुए दंड स्वीकार किया। यह हमें अनुशासन, त्याग और धर्मपरायणता का मूल्य सिखाता है।

अर्जुन की यह घटना महाभारत की उन कहानियों में से एक है, जो न्याय, अनुशासन और कर्तव्यपरायणता का सर्वोच्च उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।

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