इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Discussion On Corona Epidemic In Budget 2022: बीते मंगलवार को केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2022 को (nirmala sitharaman, budget 2022) एक घंटा 30 मिनट के भाषण में पेश किया। इस भाषण में उन्होंने 35 सेकंड तक कोरोना महामारी में खराब होती मेंटल हेल्थ को लेकर भी चर्चा की है। केंद्रीय वित्तमंत्री ने कहा कि कोरोना महामारी से हर उम्र के व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा है और पड़ रहा है। मानसिक बीमारी से निपटने के लिए उन्होंने नेशनल टेली मेंटल हेल्थ प्रोग्राम शुरू (national telemental health program) करने का ऐलान किया। आइए समझते हैं क्या है टेली मेंटल हेल्थ प्रोग्राम, इसके फायदे और नुकसान।
रिसर्चर्स के मुताबिक, कोरोना में बढ़ रही चिंता ने लोगों की मेंटल हेल्थ पर बुरा असर डाला है। इन समस्याओं से जूझ रहे लोगों में आत्महत्या करने के ख्याल बढ़ते जा रहे हैं। इस चिंता के कारण पारिवारिक रिश्ते भी बिगड़े हैं, जिसके चलते घरेलू हिंसा और शराब की लत लगने के मामले बढ़े हैं।
(covid19 pandemic mental health) निर्मला सीतारमण ने कहा कि देशभर में 23 मानसिक स्वास्थ्य केंद्र खोले जाएंगे। टेली मेंटल हेल्थ सेंट्रर्स में लोगों को मानसिक बीमारी से जुड़ी परेशानियों पर जागरूक किया जाएगा। इसका नोडल सेंटर नेशनल इंस्टीट्यूट आफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस बेंगलुरु होगा। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी बेंगलुरु इन केन्द्रों को टेक्निकल सपोर्ट देगा।
‘टेली मेंटल हेल्थ’ का मतलब दूरसंचार और विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए लोगों को मानसिक बीमारियां होने पर स्वास्थ्य सुविधा देना है। इसे टेली साइकियाट्री या टेली साइकोलॉजी भी कहा जाता है। कोरोना महामारी के दौरान हुए कई शोधों में वैज्ञानिकों ने पाया है कि मानसिक रोगियों को टेली मेंटल सुविधाओं से काफी मदद मिलती है। लॉकडाउन के समय इसकी जरूरत और बढ़ गई है।
टेली मेंटल हेल्थ सर्विस के दो सबसे बड़े फायदे हैं इसकी पहुंच और लागत। दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले लोग भी आसानी से मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ ले सकेंगे। जो लोग मानसिक स्वास्थ्य पर ज्यादा खर्च नहीं कर सकते, वे भी कम पैसों में डॉक्टर से संपर्क कर सकेंगे। देश में आज भी लोग मेंटल हेल्थ से जुड़ी बातें खुलकर नहीं कर पाते हैं। टेली मेंटल हेल्थ प्रोग्राम के जरिए लोग घर बैठे ही अपनी परेशानी डॉक्टर से साझा कर सकेंगे, जिससे उनकी ये झिझक दूर होगी।
सेंटर में मौजूद हेल्थ एक्सपर्ट से बात करने के लिए मोबाइल फोन और इंटरनेट की जरूरत पड़ेगी। न तो देश में सभी लोगों के पास फोन है और न ही फास्ट इंटरनेट की सुविधा। सब कुछ डिजिटल होने के कारण लोगों को अपने डेटा की प्राइवेसी की चिंता हो सकती है। उन्हें ये डर रहेगा कि जिस प्लेटफॉर्म का वो इस्तेमाल कर रहे हैं, वहां उनकी जानकारी गलत हाथों में न जाए।
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