Wakf Amendment Act 2025: सर्वोच्च न्यायालय सोमवार को वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतरिम आदेश सुनाएगा. भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ फैसला सुनाएगी. CJI बीआर गवाई की अध्यक्षता वाली बेंच यह तय करेगी कि याचिकाकर्ताओं द्वारा आपत्तियां जताए गए कुछ प्रावधानों को स्थगित किया जाए या नहीं। साथ ही, बेंच मामले की मेरिट पर सुनवाई पूरी होने तक इन प्रावधानों के लागू होने पर निर्णय करेगी.
याचिकाकर्ताओं का क्या कहना है?
याचिकाकर्ताओं ने अधिनियम के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक माना हैं और इसके तुरंत प्रभाव को रोके जाने की मांग की है. कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, जो वक्फ (संशोधन) विधेयक पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के सदस्य भी थे, ने सबसे पहले याचिका दायर की थी. उन्होंने दलील दी कि यह कानून वक्फ संपत्तियों और उनके प्रबंधन पर “मनमाने प्रतिबंध” लगाता है, जिससे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता कमजोर होती है. उनका कहना था कि वक्फ संशोधन कानून संविधान के अनुच्छेद 300ए के तहत संरक्षित संपत्ति अधिकारों को भी कमजोर करता है.
17 अप्रैल को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने सरकार को यह आश्वासन देने के लिए कहा था कि वह इन संशोधनों के आधार पर देशभर में वक्फ संपत्तियों के स्वरूप या उनकी स्थिति में कोई बदलाव करने का प्रयास नहीं करेगी.
कोर्ट में क्या दलीलें दी गई थीं
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी थी यदि कानून के लागू होने से अपूरणीय क्षति होने की आशंका है, तो अदालत जनहित में उस पर रोक लगा सकती है. उन्होंने कहा था कि यह संशोधन सीधे तौर पर अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 25) का उल्लंघन करते हैं. केंद्र सरकार की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वक्फ संशोधनों की संवैधानिकता का बचाव करते हुए कहा कि वक्फ इस्लाम का मूलभूत हिस्सा नहीं है.
सरकार ने याचिकाकर्ताओं के तर्कों का जवाब देते हुए कहा कि अनुच्छेद 25 और 26 (अल्पसंख्यकों को अपने धार्मिक कार्यों के प्रबंधन का अधिकार) राज्य को धर्म से जुड़ी सांसारिक गतिविधियों, जैसे धार्मिक संपत्तियों का वित्तीय प्रबंधन और प्रशासन, को पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए विनियमित करने की अनुमति देते हैं.
मेहता ने यह भी दलील दी कि उपयोग के आधार पर बने वक्फों को केवल पूर्ववर्ती वक्फ अधिनियमों के जरिए वैधानिक मान्यता दी गई थी. उन्होंने कहा कि “जो कुछ विधायी नीति से बनाया गया है, उसे सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए विधायी कार्रवाई से बदला या हटाया भी जा सकता है.”
केंद्र ने 8 अप्रैल को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की अधिसूचना जारी की, जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल को मंजूरी दी थी. लोकसभा और राज्यसभा ने क्रमशः 3 और 4 अप्रैल को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 पारित किया था.
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