स्वच्छ भारत मिशन की ज्यादातर आलोचना इस बात पर हुई है कि यह सीवरेज की समस्या से निपटने में विफल रहा है, या जैसा कि द वायर ने इसे समान रूप से स्वच्छ भारत बनाने का एक असफल प्रयास कहा है, लेकिन यह मिशन के उद्देश्य की महत्वपूर्ण बात को नज़रअंदाज़ करता है. सभी योजनाओं की तरह, जिनके कार्यान्वयन में कभी-कभी शुरुआती समस्याएँ आती हैं, लोगों में इसके उपयोग और लाभों के बारे में जागरूकता पैदा करना और खुले में शौच के प्रति उनके दृष्टिकोण को बदलना, राष्ट्रव्यापी शौचालय निर्माण कार्यक्रम शुरू करने का विचार ही एक सकारात्मक कदम है. बेहतरीन सुविधाओं से सुसज्जित शौचालयों वाले घरों में बैठना एक सौभाग्य की बात है और इस मिशन और इसकी विफलताओं पर टिप्पणी करना अभिजात्यवाद और शहरी तथा ग्रामीण भारत की वास्तविक समस्याओं को समझने में सामूहिक विफलता की बू आती है.
सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक ऐसे अभियान की कल्पना की जो एक बुनियादी मानवाधिकार और आवश्यकता है, जिसे हममें से कई लोग हल्के में लेते हैं. विडंबना यह है कि इस अभियान की आलोचना करने वाले इस तथ्य को स्वीकार करने में विफल रहे हैं कि स्वच्छता महात्मा गांधी का सपना था, जिसे स्वतंत्र भारत में कांग्रेस पार्टी सहित बाद की सरकारों ने पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया. यह केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही थे जिन्होंने इस मुद्दे को उठाया और इस बात पर ज़ोर दिया कि स्वच्छता एक बुनियादी मानवाधिकार है और इसलिए इससे समझौता नहीं किया जा सकता.
स्वतंत्र भारत में किसी भी नेता ने यह नहीं सोचा था कि पूरे देश में शौचालय निर्माण अभियान चलाया जाना चाहिए, और अगर चलाया भी गया तो सरकारी स्तर पर कभी नहीं. इस अभियान को महत्वपूर्ण बनाने वाली बात स्वच्छता का निरंतर उल्लेख है, जिसे प्रधानमंत्री ने विभिन्न मंचों से दिए गए अपने भाषणों में दोहराया है. 1947 में, पंचवर्षीय योजनाओं को आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में सराहा गया था, जबकि यह तथ्य था कि पंचवर्षीय योजनाएँ हर पहलू से कमज़ोर थीं और कार्यान्वयन संबंधी समस्याओं के कारण हर पाँच साल में अपने लक्ष्य हासिल करने में विफल रहीं.
इन योजनाओं के कारण कई आर्थिक विफलताएँ और पीढ़ियों से चली आ रही सामाजिक लागतें झेलनी पड़ीं, लेकिन इन विफलताओं पर चर्चा का अभाव रहा है. तो क्या हम स्वच्छ भारत मिशन को भी इसी नज़रिए से देख सकते हैं? नहीं। स्वच्छता और उसके बाद शौचालयों के निर्माण और उपयोग के लिए हज़ारों सालों से चली आ रही “प्रदूषण” की अवधारणा को खत्म करना होगा. यह एक बहुत बड़ा काम है, जिसमें सरकार ने हमें खुले में शौच और स्वच्छता के सवाल को एक ऐसे मुद्दे के रूप में लाने की अनुमति दी है जिस पर राष्ट्रीय चर्चा की आवश्यकता है, न कि केवल एक मामूली चर्चा की.
स्वच्छता और निजी शौचालय को हल्के में नहीं लेना चाहिए क्योंकि यह एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता है। खुले में शौच से सबसे ज़्यादा महिलाएं और बच्चे पीड़ित हैं क्योंकि उन्हें ग्रामीण और शहरी इलाकों में रोज़ाना अपमान सहना पड़ता है क्योंकि सार्वजनिक खुले स्थानों पर शौच करने के कारण उन्हें वह निजता नहीं मिलती जिसके वे हक़दार हैं. कुछ लोगों का तर्क है कि शौचालयों के निर्माण के बावजूद, ज़्यादातर लोग उनका इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. ऐसे दावों के पीछे के आधार को समझना और उनकी पुष्टि कैसे की जा सकती है, यह समझना ज़रूरी है.
दूसरे, वे इस तथ्य को समझने में विफल रहते हैं कि स्वच्छ भारत मिशन केवल शौचालयों का निर्माण और उन्हें लाभार्थियों को सौंपना नहीं है, बल्कि इसके लिए एक व्यापक जन जागरूकता अभियान की आवश्यकता है, जिसे सरकार जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के माध्यम से चला रही है. प्रधानमंत्री लगातार इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं कि खुले में शौच करना खतरनाक है और इससे लोग बीमारियों के शिकार हो सकते हैं.
यह अभियान और इसकी सफलता एक दिन का काम नहीं है; इसके लिए हम जैसे नागरिक समाज के सदस्यों के निरंतर प्रयासों और प्रोत्साहन की आवश्यकता है. यह अभियान जाति-आधारित पूर्वाग्रहों से लड़ने का एक प्रयास है, जो खुले में शौच और आम जनता की शौचालयों तक पहुँच का एक अन्य कारण रहा है. स्कूलों में कई शौचालय बनाए गए हैं, और कई मामलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय बनाए गए हैं. अनेक सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों के बावजूद, इन कारकों को ध्यान में रखे बिना, स्वच्छता के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता पर लगातार सवाल उठाना, समस्या का वास्तविक दृष्टिकोण नहीं दर्शाता है.
स्वच्छता कोई राजनीतिक समस्या नहीं है और इसलिए इसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए. इसे एक वास्तविक सामाजिक समस्या के रूप में देखा जाना चाहिए और खुले में शौच को समाप्त करने का एकमात्र तरीका सामाजिक स्तर पर जागरूकता पैदा करना और समस्या का समाधान करना है, न कि बिना सोचे-समझे आलोचना करना जो समस्या का समाधान नहीं करती. इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि केंद्र और राज्य सरकारों ने स्वच्छ भारत मिशन को गंभीरता से लिया है, और यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत प्रतिबद्धता का ही परिणाम है कि इसकी सफलता समाज के सामूहिक प्रयासों पर निर्भर करती है. शौचालय निर्माण कार्य के लाभार्थियों को सम्मान और गरिमा प्रदान की गई है, जो अपने आप में एक छोटी उपलब्धि नहीं है.
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