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Kushmanda Devi : इस दिन होगी मां कूष्मांडा देवी की आराधना, जानिए इनका पूजन करने से भक्तों को मिलता है कैसा आशीर्वाद, कौन है वाहन

Navratri 2025: महाशक्ति की उपासना का पर्व है नवरात्र. इन नौ दिनों में मां भगवती के विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है. नवरात्र के चौथे दिन मां चौथे रूप कूष्मांडा देवी की पूजा की जाती है. आइए जानतें हैं विस्तार से .

Written By: Pandit Shashishekhar Tripathi
Last Updated: September 19, 2025 15:06:42 IST

Navratri 2025: महाशक्ति की उपासना का पर्व है नवरात्र. इन नौ दिनों में मां भगवती के विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है. नवरात्र के चौथे दिन मां चौथे रूप कूष्मांडा देवी की पूजा की जाती है. माता कूष्मांडा को आदिशक्ति, आदि स्वरूपा और आठ भुजाओं के कारण अष्टभुजा भी कहा जाता है. ब्रह्मांड की उत्पत्ति भी इन्हीं के कारण है. माता कूष्मांडा ने अपनी मंद मंद मुस्कान से अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न किया. इन्हें कुम्हड़ा अर्थात कूष्मांड की बलि बहुत प्रिय है जिसके कारण इन्हें कूष्मांडा नाम से पुकारा जाता है.

इस तरह हुई देवी कूष्मांडा की उत्पत्ति

पौराणिक कथाओं के अनुसार सृष्टि रचना के पहले हर तरफ घनघोर अंधेरा था, तब देवी ने हल्के से हंसा और उनकी हंसी से ही एक अंड पैदा हुआ जिससे ब्रह्मांड का निर्माण हुआ. ब्रह्मांड की उत्पत्ति के कारण ही वे आदिशक्ति बनीं जिनकी आठ भुजाएं हैं. इन हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, चक्र और गदा के साथ ही आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को प्रदान करने वाली जप माला भी है. शेर की सवारी करने वाली माता को कुम्हड़े की बलि अतिप्रिय है. कुम्हड़ा को संस्कृत में कूष्मांडा कहा जाता जो एक प्रकार का फल होता है और इससे पेठा बनाया जाता है. सूर्य लोक में निवास करने के कारण इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य के आलोक से चमकती रहती है. इनकी आराधना करने वाले भक्त रोग और शोक के भय से दूर ही रहते हैं. साथ ही उन्हें आयु, यश और बल भी मिलता है. सच्चे मन से इनकी पूजा करने वाले को बड़ी ही आसानी से उच्च पद प्राप्त होता है इसलिए जो नौकरीपेशा लोग प्रमोशन चाहते हैं उन्हें अवश्य ही इनकी पूजा करनी चाहिए. आराधना करने वाले को देवी व्याधियों से मुक्ति प्रदान कर सुख समृद्धि प्रदान करती हैं.

देवी के नाम का अर्थ समझिए

मां कूष्माडा को समझने के लिए इस शब्द को समझना होगा. ‘कू’ का अर्थ छोटा होता है, ‘ष्’ से ऊर्जा और ‘अंडा’ शब्द ब्रह्मांडीय गोले का प्रतीक है. सभी जानते हैं कि संपूर्ण ब्रह्मांड में ऊर्जा का संचार छोटे से बड़े की ओर होता है. जिस तरह एक छोटा सा बीज बोया जाता है, अंकुरित होने पर पहले पौधा फिर वृक्ष बनता है और फूल व फल आदि निकलते हैं तथा बाद में उसी फल से नए बीजों का जन्म होता है. इसी तरह चेतना अथवा ऊर्जा में भी सूक्ष्म से सूक्ष्मतम और विशाल से विशालतम होने का गुण है, जिसकी व्याख्या मां कूष्मांडा करती हैं. इस तरह स्पष्ट है कि देवी मां हमारे शरीर में प्राण शक्ति के रूप में उपस्थित हैं. कुम्हड़े के समान ही भक्त भी अपने जीवन में पर्याप्त और पूर्णता का अनुभव करें, साथ ही संपूर्ण जगत के हर कण में ऊर्जा और प्राणशक्ति का अनुभव करें. हर कण में ऊर्जा और प्राणशक्ति, बुद्धिमत्ता का अनुभव करना ही कूष्मांडा है.

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