Extra Marital Affair: शादी एक ऐसा रिश्ता है जो दो दिलों को मिला देता है. इस रिश्ते को काफी पवित्र माना जाता है. लेकिन आज के दौर में इस पवित्र रिश्ते में अलग अलग तरह की अर्चन आने लगी हैं. भारतीय समाज में शादी को बहुत अहम समझा जाता है. ऐसे में पति-पत्नी के बीच विश्वास इसकी सबसे अहम नींव होती है. लेकिन जब यह विश्वास टूट जाता है और रिश्ता विवाहेतर संबंधों की ओर बढ़ जाता है, तो सवाल उठता है: क्या कानून ऐसे मामलों में कोई सज़ा देता है? क्या पति-पत्नी को अदालत से न्याय मिल सकता है या नहीं? चलिए इसका जवाब जान लेते हैं.
पहले माना जाता था अपराध
भारत की सर्वोच्च अदालत ने एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के सवाल पर 2018 में ऐतिहासिक फैसला दिया था, जिसने इस मामले को हमेशा के लिए नया रूप दे दिया. वहीं 2018 में जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. वहीँ इससे पहले एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को अपराध माना जाता था और दोषी को सजा हो सकती थी. लेकिन इस फैसले के बाद अब एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को अपराध नहीं माना जाता है. इसका सीधा सीधा मलतब ये है कि अगर पति या पत्नी का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर है तो उसे लेकर गिरफ्तारी या जेल जैसी कोई कार्रवाई नहीं होती है.
सिविल कानून के मुताबिक
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इसका मतलब यह नहीं है कि एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का कोई कानूनी परिणाम नहीं होता. भारत में, इसे तलाक का एक वैध आधार माना जाता है. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i) के तहत, पति या पत्नी विवाहेतर संबंधों के आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर कर सकते हैं.
भरना पड़ता है मुआवजा
दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में स्पष्ट किया है कि एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर से पीड़ित कोई भी व्यक्ति अदालत में मुआवज़ा मांग सकता है. यानी, अगर किसी एक साथी को दूसरे के संबंध की वजह से मानसिक या सामाजिक नुकसान होता है, तो वो आर्थिक मुआवज़ा मांग सकते हैं. इसके अलावा, अगर पति यह साबित कर भी दे कि पत्नी आर्थिक रूप से कमज़ोर है, तो भी अदालत पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार कर सकती है. इसी तरह, अगर पत्नी यह साबित कर दे कि पति का किसी और के साथ संबंध है, तो यह भी तलाक और गुजारा भत्ता का आधार बन सकता है.