Live
Search
Home > राज्य > बिहार > Bihar Chunav 2025: कांग्रेस से BJP तक, जानें मधुबन विधानसभा सीट का पूरा चुनावी इतिहास

Bihar Chunav 2025: कांग्रेस से BJP तक, जानें मधुबन विधानसभा सीट का पूरा चुनावी इतिहास

Bihar Assembly Election 2025: जैसा कि आप सब जानते है कि बिहार चुनाव नजदीक है, ऐसे में आज हम आपको मधुबन सीट का इतिहास बताएंगे जिसने हर पार्टी को एक न एक बार जीत का मौका जरुर दिया है.

Written By: shristi S
Last Updated: September 26, 2025 14:16:10 IST

Madhuban Assembly Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Chunav 2025) जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे है, वैसे-वैसे बिहार की राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज होती जा रही है. चुनाव को देखते हुए सीट बंटवारे से लेकर उम्मीदवारों तक की चर्चाएं गरमाने लगी है. ऐसे माहौल में हर विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास समझना बेहद अहम हो जाता है. आज हम बात करेगे पूर्वी चंपारण जिले की मधुबन विधानसभा सीट के बारे में, जहां सत्ता और विपक्ष के बीच हमेशा दिलचस्प मुकाबले देखने को मिले है. इस सीट की खासियत यह है कि यहां चुनावी इतिहास कभी भी एकतरफा नहीं रहा. राज्य की दिग्गज पार्टियां जैसे कांग्रेस, भाकपा, जनता दल, RJD, JDU और BJP को यहां जीत हासिल करने का मौका मिला है.

जब 1957 में हुआ था पहला विधानसभा चुनाव

इतिहास में झांकते हुए सबसे पहले बात करते है 1957 में हुए पहले विधानसभा चुनाव के बारे में, पर उस दौर में पूरे बिहार में कांग्रेस की लहर थी, लेकिन मधुबन सीट पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. निर्दलीय उम्मीदवार रूपलाल राय ने कांग्रेस प्रत्याशी ब्रज बिहारी शर्मा को लगभग 7,871 वोटों से शिकस्त देकर इस सीट पर अपनी मजबूत पहचान बनाई.

1962 में हुई कांग्रेस की वापसी

जब अगला चुनाव 1962 में हुआ तब कांग्रेस ने इस सीट पर अपनी हार से सबक लिया और पिछली बार के निर्दलीय उम्मीदवार रूपलाल राय को हराकर कांग्रेस उम्मीदवार मंगल प्रसाद यादव ने 1,723 वोटों से हराकर सीट पर कब्जा कर लिया.

1967 से 1972 तक चला भाकपा का दबदबा

पिछले 2 चुनावो के बाद 1967 से 1972 तक मधुबन पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) का वर्चस्व कायम रहा. 1967 में भाकपा के एम. भारती ने कांग्रेस उम्मीदवार ने मंगल प्रसाद यादव को हराया. 1969 में भाकपा उम्मीदवार महेंद्र भारती ने कांग्रेस के रूपलाल राय को हराकर लगातार दूसरी जीत दर्ज की. 1972 में भाकपा ने टिकट बदलकर राजपति देवी को मैदान में उतारा, जिन्होंने महेंद्र राय को हराकर पार्टी की पकड़ बनाए रखी.

1977 में बीजेपी और कांग्रेस की हुई टक्कर

1977 का चुनाव कांग्रेस और जनता पार्टी की टक्कर का गवाह बना. इस बार 1957 में पहली बार जीते रूपलाल राय ने कांग्रेस के टिकट पर मैदान संभाला और जनता पार्टी के महेंद्र राय को 3,825 वोटों से हराकर शानदार वापसी की.1980 में मधुबन ने एक बार फिर कांग्रेस का साथ दिया. कांग्रेस (इंदिरा) के प्रत्याशी वृज किशोर सिंह ने जनता पार्टी (सेक्युलर) के महेंद्र राय को 28,492 वोटों से हराकर भारी बहुमत से जीत दर्ज की.

1985 से 2000 लेकर सीताराम सिंह का दबदबा

1985 से 2000 तक मधुबन सीट पर एक ही नाम गूंजता रहा सीताराम सिंह. 1985 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की. 1990 में जनता दल से चुनाव लड़ा और भाजपा प्रत्याशी रामजी सिंह को हराया. 1995 में फिर जनता दल से विजयी हुए. 2000 में राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा और चौथी बार लगातार जीत हासिल की. लगातार चार बार जीतकर सीताराम सिंह ने मधुबन सीट पर अपना गढ़ मजबूत कर लिया.
2005 में दो बार चुनाव हुए. फरवरी में हुए चुनाव में RJD उम्मीदवार और सीताराम सिंह के बेटे राणा रणधीर सिंह ने JDU के शिवाजी राय को मामूली अंतर से हराया. लेकिन उसी साल अक्टूबर में हुए पुनः चुनाव में समीकरण पलट गए. JDU के शिवाजी राय ने राणा रणधीर को 19,478 वोटों से हराकर जीत दर्ज की.

2010 में हुई शिवाजी राय की दोबारा जीत

2010 में फिर मुकाबला शिवाजी राय और राणा रणधीर के बीच हुआ. इस बार भी JDU के शिवाजी राय विजयी रहे और राजद के राणा रणधीर को 10,122 वोटों से हराया. 2015 का चुनाव मधुबन के इतिहास में बड़ा बदलाव लेकर आया. राणा रणधीर सिंह इस बार भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे. उन्होंने तत्कालीन विधायक और जदयू नेता शिवाजी राय को 16,222 वोटों से हराकर भाजपा को इस सीट पर पहली जीत दिलाई. यही नहीं, उन्हें राज्य सरकार में सहकारिता मंत्री का पद भी मिला.

2020 में भाजपा का दोबारा कब्जा

2020 के चुनाव में राणा रणधीर सिंह ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में लगातार दूसरी जीत दर्ज की। इस बार उन्होंने राजद उम्मीदवार मदन प्रसाद को 5,878 वोटों से हराया।

MORE NEWS

Are you sure want to unlock this post?
Unlock left : 0
Are you sure want to cancel subscription?