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Why Halwa Puri Offered Navratri: मां दुर्गा को समर्पित नवरात्रि शक्ति की उपासना का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. 9 दिनों तक मां के 9 स्वरुपों की पूजा के बाद अंतिम दिनो यानी अष्टमी और नवमी वाले दिन कन्या पूजन करते है. इस अवसर पर घर में छोटी कन्याओं को देवी स्वरुप मानकर उनकी पूजा की जाती है. इस दौरान कन्याओं के पैर धोकर तिलक और कलावा बांधा जाता है और उन्हें प्रसाद के तौर पर हलवा, पूरी और काले चने का प्रसाद दिया जाता है. लेकिन अब सवाल यह उठता है कि हर बार यही प्रसाद क्यों बनाया जाता है? इसके पीछे स्वाद के साथ- साथ धार्मिक, सांस्कृतिक और स्वास्थ्य संबंधी वजह छिपी हुई है.
क्या हैं धार्मिक आधार?
भारतीय संस्कृति में भोजन को अन्नदेवता कहा गया है. कन्या पूजन के दौरान जो भोजन परोसा जाता है, उसे देवी अन्नपूर्णा का आशीर्वाद माना जाता है. हलवा-पूरी का भोग इसीलिए चुना गया क्योंकि यह अन्न और पोषण का प्रतीक है. माना जाता है कि कन्याओं को यह प्रसाद अर्पित करने से घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती और परिवार पर देवी अन्नपूर्णा की कृपा बनी रहती है.
सात्विकता और पवित्रता का देता है संदेश
कन्या पूजन में प्रसाद केवल स्वाद के लिए नहीं होता, बल्कि यह सात्विकता का प्रतीक है. पूरी गेहूं के आटे से बनती है, जिसमें कोई प्याज-लहसुन नहीं डाला जाता. हलवा सूजी, घी और शक्कर से तैयार होता है, जो शुद्धता और समृद्धि का द्योतक है. काले चने प्रोटीन से भरपूर होते हैं और शरीर को शक्ति देते हैं. ये तीनों व्यंजन सरल, सात्विक और पवित्र माने जाते हैं, जो कन्या पूजन के मूल भाव से पूरी तरह मेल खाते हैं.
स्वास्थ्य के नजरिए से संतुलित भोजन
धार्मिक महत्व के साथ-साथ यह प्रसाद पोषण की दृष्टि से भी बेहद खास है. काले चने शरीर को प्रोटीन, फाइबर और आयरन प्रदान करते हैं. हलवा ऊर्जा देने वाला भोजन है, जो बच्चों को तुरंत ताकत देता है. पूरी पेट भरने वाला मुख्य आहार है, जो भोजन को संतुलित बनाता है. इस तरह यह प्रसाद न सिर्फ परंपरा को निभाता है, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य के लिए भी उपयुक्त होता है.
क्या है सांस्कृतिक परंपरा में?
प्राचीन काल से ही नियम रहा है कि देवी-देवताओं को वही भोग अर्पित किया जाए, जिसे श्रद्धा और प्रेम से बनाया गया हो. हलवा-पूरी एक ऐसा व्यंजन है जिसे आम घरों में भी आसानी से बनाया जा सकता है और हर कोई इसे प्रेमपूर्वक तैयार करता है. यह “मां के हाथ के खाने” जैसा अनुभव कराता है, जिसमें स्वाद के साथ भावनाओं और आस्था की मिठास जुड़ी होती है.
मां दुर्गा के नौ रूपों का संतुलन
नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है। हलवा-पूरी और चने का प्रसाद भी इन गुणों का प्रतीक माना जाता है—
- घी और शक्कर – समृद्धि और आनंद
- काले चने – शक्ति और दृढ़ता
- पूरी – संतुलन और पूर्णता
इस प्रकार यह प्रसाद नौ दिनों की साधना को एक पूर्णता प्रदान करता है.
कन्याओं को देवी का रूप मानने की परंपरा
भारतीय संस्कृति में छोटी कन्याओं को पवित्रता और मासूमियत का प्रतीक माना गया है. उन्हें देवी का रूप मानकर खिलाना इस विश्वास को दर्शाता है कि ईश्वर का वास सादगी और सरलता में होता है. हलवा-पूरी और चने जैसे घरेलू और सहज व्यंजन इस भाव को और गहराई से प्रकट करते हैं.