Shilpi Jain Murder Case: शिल्पी जैन मर्डर केस, बिहार के इतिहास में सबसे सनसनीखेज और हाई-प्रोफाइल मामलों में से एक माना जाता है। यह मामला 1999 में सामने आया था और तब से लेकर आज तक विवाद और सवालों में घिरा हुआ है। हाल ही में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी पर इस मामले में शामिल होने के गंभीर आरोप लगाए हैं। प्रशांत किशोर ने सवाल उठाया कि क्या उस समय सम्राट चौधरी आरोपी के तौर पर अनिश्चित थे या नहीं, क्या सीबीआई जांच हुई थी और क्या उनका सैंपल लिया गया था। इसने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है।
मामला कैसे शुरू हुआ
3 जुलाई 1999 की सुबह, शिल्पी जैन अपने कंप्यूटर कोचिंग इंस्टीट्यूट जा रही थीं। शिल्पी उस समय 23 साल की थीं और पटना वीमेंस कॉलेज की होनहार छात्रा थीं। वह ‘मिस पटना’ का खिताब भी जीत चुकी थीं और अपने करियर की तैयारी में जुटी थीं। उनके परिवार का नाम उज्जवल कुमार जैन के रूप में था, जो शहर के बड़े कपड़ा कारोबारी थे।
वहीं, गौतम सिंह, एनआरआई परिवार से थे। उनका परिवार ज्यादातर ब्रिटेन में था और गौतम राजनीति में रुचि रखते थे। दोनों की मुलाकात प्यार में बदल गई। 3 जुलाई की सुबह शिल्पी एक रिक्शे से कोचिंग जा रही थीं, तभी गौतम का एक दोस्त उन्हें कार में बैठने के लिए कहता है। शिल्पी उसे जानती थीं, इसलिए बिना शक के कार में बैठ गईं।
लेकिन कार उन्हें कोचिंग की बजाय अजनबी रास्ते पर ले गई। ड्राइवर ने कहा कि वे ‘वाल्मी गेस्ट हाउस’ जा रहे हैं, जहां गौतम उनका इंतजार कर रहे थे। शिल्पी को शक हुआ, लेकिन वह वहां पहुंच गईं।
भयानक पल और हमले की घटना
जैसे ही गौतम को खबर मिली कि शिल्पी को वाल्मी गेस्ट हाउस ले जाया गया है, वह वहां पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि कुछ लोग शिल्पी पर हमला कर रहे थे। शिल्पी मदद के लिए चिल्ला रही थीं और गौतम को देखकर उनसे लिपट गईं। लेकिन हमलावरों ने गौतम को भी पकड़ लिया और उन्हें पीटकर मौत के घाट उतार दिया।
रात का भयानक खुलासा
पुलिस जांच शुरू होने से पहले ही गांधी मैदान के फ्रेजर रोड स्थित सरकारी क्वार्टर के गैराज में दो लाशें मिलीं। यह गैराज क्वार्टर नंबर 12 था, जो उस समय बाहुबली नेता साधु यादव का था। दोनों लाशें सफेद मारुति जेन कार में मिलीं और अध-नंगी थीं। शिल्पी के शरीर पर केवल गौतम की टी-शर्ट थी, जबकि गौतम बिना कपड़ों के थे। यह दृश्य देखकर पुलिस भी हैरान रह गई।
सबूतों में छेड़छाड़
पुलिस पहुंचने से पहले ही साधु यादव के साथियो का झुंड गैरेज पर जमा हो गया। इससे सबूतों को छेड़ने की आशंका बढ़ गई। पुलिस ने भी लापरवाही दिखाई। कार को सही तरीके से टो नहीं किया गया, बल्कि ड्राइव करके ले जाया गया, जिससे फिंगरप्रिंट और बाकि जरूरी सबूत मिट गए।
पोस्टमॉर्टम और फॉरेंसिक जांच
पोस्टमॉर्टम और फॉरेंसिक जांच में चौंकाने वाले हकीकत सामने आई। शिल्पी के शरीर पर बलात्कार के निशान थे, जबकि गौतम के शरीर पर चोट के निशान थे। यह साफ रूप से हत्या और बलात्कार का मामला था। पुलिस ने जल्दबाजी में इसे आत्महत्या करार दिया, लेकिन शिल्पी के परिवार ने इसे स्वीकार नहीं किया और न्याय की मांग की।
सीबीआई जांच और विवाद
भारी दबाव के बाद, सितंबर 1999 में मामला सीबीआई को सौंपा गया। सीबीआई की जांच में बलात्कार की जांच हुई और साधु यादव से डीएनए सैंपल मांगा गया, लेकिन उन्होंने देने से इनकार कर दिया। चार साल बाद, 2003 में सीबीआई ने मामले को आत्महत्या बताकर बंद कर दिया। यह शिल्पी के परिवार के लिए बड़ा झटका था।
परिवार की कोशिश और राजनीतिक विवाद
शिल्पी के भाई प्रशांत जैन ने केस को फिर से खोलने की कोशिश की, लेकिन 2006 में उनका अपहरण कर लिया गया। बाद में उन्हें सुरक्षित छुड़ा लिया गया। हाल ही में प्रशांत किशोर ने डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी पर आरोप लगाए, जिससे यह मामला फिर से सुर्खियों में आ गया। किशोर ने सवाल उठाए कि क्या सम्राट चौधरी की भूमिका को लेकर अब भी सवाल बने हुए हैं और क्या जांच सही तरीके से हुई थी।
नतीजा
शिल्पी जैन मर्डर केस आज भी बिहार की राजनीति और न्यायिक व्यवस्था में विवादों का विषय है। इस सनसनीखेज मामले ने सवाल खड़े किए कि कैसे शक्तिशाली और राजनीतिक प्रभाव वाले लोग न्याय को प्रभावित कर सकते हैं। परिवार और जनता की मांग है कि ऐसे मामलों में निष्पक्ष और पारदर्शी जांच हो, ताकि पीड़ित परिवार को न्याय मिल सके।
शिल्पी जैन और गौतम की मौत केवल एक निजी दुर्घटना नहीं थी, बल्कि यह बिहार में कानून, राजनीति और सामाजिक न्याय की गंभीर चुनौतियों को उजागर करने वाला मामला भी बन गया।