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Dussehra Special News: भारत में शारदीय नवरात्रों के बाद विजयादशमी, जिसे दशहरा (Dussehra) भी कहा जाता है, हर साल आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस साल यह त्योहार 2 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा. इस दिन लोग रावण के पुतले बना उसे फुंकते है. यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था. इसलिए पूरे देश में रावण दहन की परंपरा निभाई जाती है. लेकिन भारत के उत्तर प्रदेश में एक ऐसा शहर भी है, जहां रावण की पूजा- अर्चना की जाती है. यह परंपरा करीब 150 साल पुरानी से भी ज्यादा है.
क्या है दशानन मंदिर का इतिहास?
कानपुर के शिवाला इलाके में स्थित यह मंदिर दशानन मंदिर के नाम से जाना जाता है. साल 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इसकी स्थापना की थी. वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति, विद्या और ज्ञान का प्रतीक मानते थे. इसलिए उन्होंने रावण की प्रतिमा स्थापित कर इस अनोखे मंदिर का निर्माण कराया. मंदिर की एक खास बात यह है कि इसके कपाट पूरे साल बंद रहते हैं और केवल दशहरे के दिन ही खोले जाते हैं. इस दिन सुबह से ही भक्तों की लंबी कतार लग जाती है, जो बारी-बारी से रावण की प्रतिमा के दर्शन और पूजा-अर्चना करते हैं.
दिन में होती है रावण की पूजा और आरती
विजयादशमी के दिन यहां विशेष श्रृंगार और पूजन का आयोजन होता है. भक्त तेल के दीपक जलाकर और तरोई के फूल चढ़ाकर रावण की आरती करते हैं. मान्यता है कि रावण भगवान शिव के प्रिय भक्त थे और उन्हें अद्भुत विद्या और शक्तियां प्राप्त थीं. इस पूजा से बुद्धि और शक्ति की प्राप्ति होती है. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि हम रावण की पूजा उनकी विद्वता के कारण करते हैं. वे असाधारण पंडित और महाज्ञानी थे. साथ ही दशहरे की शाम हम उनके अहंकार का पुतला दहन करते हैं, ताकि समाज से अभिमान और अहंकार का अंत हो. रावण का जन्म अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में हुआ था, इसलिए मंदिर में उनका जन्मदिन भी मनाया जाता है और शाम को पुतला दहन किया जाता है.