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एक चिंताजनक संकेत : फीकी पड़ी सूरज की चमक जिसे देख वैज्ञानिकों की उड़ी नींद

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि भारत में सूरज की रोशनी में गिरावट लगातार दर्ज की जा रही है  बीते तीन दशक में धूप के घंटों में 10 से 13 घंटों की कमी आई है. भारत में इसको लेकर तीन बड़े संस्थानों के वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया है.

Written By: Team Indianews
Last Updated: October 9, 2025 11:34:24 IST

Solar Dimming: हाल ही में आई वैज्ञानिक रिपोर्ट्स ने एक गंभीर चिंता जताई है जिसमे ये पता चला है की भारत के भूभाग में सूरज की चमक यानी सूर्य की किरणों की तीव्रता में लगातार कमी आ रही है. भारत में धूप के घंटे घटते जा रहे हैं और सूरज जैसे मानो हमसे रूठ गया हो ऐसा वैज्ञानिको का कहना है; यह केवल पर्यावरण असंतुलन का संकेत नहीं  है यह भविष्य के लिए एक बड़ा खतरा भी बन सकता है. अधिकतर हिस्सों में पिछले तीन दशकों से धूप के घंटे लगातार घट रहे हैं. इसका प्रमुख कारण मोटे बादल और बढ़ता एरोसोल प्रदूषण है. तो आइए जानते हैं पूरी खबर 

सूरज की रोशनी में कमी का कारण आखिर क्या है ? 

धरती पर सूर्य की रोशनी पहुंचने में बाधा तब आती है जब वायुमंडल में अत्यधिक मात्रा में धूल, धुआं,  या अन्य छोटे- छोटे कड़ो की संख्या ज्यादा हो जाती है. इसे वैज्ञानिक भाषा में ग्लोबल डिमिंग (Global Dimming) कहा जाता है. भारत में एक तो इतनी सारी गाड़ियां है जिनसे बहुत सारा धुंआ  निकलता है और अन्य बहूत से प्रकार के कारखाने है जिनसे बहुत सारा प्रदूषण निकलता है और वातावरण को बहुत ही ज्यादा प्रदुषित करते हैं. वातावरण में बढ़ते एरोसोल्स (aerosols) जो सूक्ष्म कण होते हैं, सूरज की किरणों को या तो वापस अंतरिक्ष में परावर्तित कर देते हैं या उन्हें अवशोषित कर लेते हैं यही कारण है कि भारत के कई हिस्सों में धूप की मात्रा पहले की तुलना में काफी कम हो गई है.

कितना असर पड़ा? 

बीते तीन दशक में धूप के घंटों में 10 से 13 घंटों की कमी आई है.अध्ययन में  ये पता चला है की 1988 से 2018 तक नौ क्षेत्रों के 20 मौसम स्टेशनों से धूप घंटों के डेटा का विश्लेषण किया गया. निष्कर्ष में ये पता चला है की सभी क्षेत्रों में सालाना धूप घंटे घटी हैं सिवाय पूर्वोत्तर भारत के जहां मौसमी स्तर पर मामूली स्थिरता देखी गई. 

वैज्ञानिक क्यों हैं चिंतित?

इस बदलाव का मतलब है कि हमारे पर्यावरण में गंभीर असंतुलन पैदा हो रहा है अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह भविष्य में खाद्य संकट, जल संकट और जलवायु अस्थिरता का कारण बन सकता है. और यह संकेत शुभ नहीं है 

समाधान क्या ?

वाहनों और उद्योगों से निकलने वाले धुएं पर नियंत्रण जरूरी है.
पेड़-पौधों की संख्या बढ़ानी होगी ताकि वातावरण संतुलित रह सके.
हरित ऊर्जा स्रोतों को अपनाने के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा भी करनी होगी. 
वायु प्रदूषण को कम करना होगा.

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