बचपन का सपना बना विश्व रिकॉर्ड
लॉरेंस वॉटकिंस का सपना बचपन से ही गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में जगह बनाने का था. लेकिन न तो वो सबसे लंबे थे, न सबसे बलशाली और न ही किसी खेल में रिकॉर्ड तोड़ सकते थे। ऐसे में उन्होंने एक अनोखा रास्ता चुना दुनिया का सबसे लंबा नाम रखने का.
1990 में शुरू हुआ नाम जोड़ने का सफर
साल 1990 में, जब वॉटकिंस 24 साल के थे, तब वे ऑकलैंड सिटी की एक लाइब्रेरी में काम करते थे। वहीं से इस अनोखी कहानी की शुरुआत हुई. उन्होंने बच्चों के नामों की किताबों, माओरी डिक्शनरी और अपने साथियों की मदद से सैकड़ों अनोखे नाम इकट्ठा करने शुरू किए. इनमें यूरोपीय, माओरी, सामोअन, जापानी और चीनी नाम शामिल थे.
कानूनी लड़ाई और रिकॉर्ड की जीत
लॉरेंस ने अपने नाम में इन सभी नामों को जोड़ने के लिए लगभग 400 डॉलर खर्च किए और रजिस्ट्रेशन की अर्जी डाली. ऑकलैंड रजिस्ट्रार ने इसे मंजूरी दे दी, लेकिन वेलिंगटन के रजिस्ट्रार जनरल ने अर्जी खारिज कर दी. वॉटकिंस ने हार नहीं मानी. मामला हाई कोर्ट तक पहुंचा और अंत में फैसला उनके हक में आया. इसी के साथ उन्होंने दुनिया का सबसे लंबा नाम रखने का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया.
शादी में नाम पढ़ने में लगे 20 मिनट
वॉटकिंस का नाम इतना लंबा है कि उनकी शादी के दौरान विवाह अधिकारी को पूरा नाम पढ़ने में 20 मिनट से ज्यादा का समय लग गया. मेहमानों के लिए यह किसी रोमांचक अनुभव से कम नहीं था. यही वह पल था जिसने उनके रिकॉर्ड को और भी मशहूर बना दिया.
कानून में हुआ बदलाव
उनका रिकॉर्ड इतना अनोखा था कि न्यूजीलैंड सरकार को इस पर नया कानून बनाना पड़ा. सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि अब कोई भी व्यक्ति इतना लंबा नाम नहीं रख सकेगा. यानी अब उनका रिकॉर्ड तोड़ा नहीं जा सकता.
नई पहचान के साथ ऑस्ट्रेलिया में जिंदगी
1998 में वॉटकिंस ऑस्ट्रेलिया शिफ्ट हो गए. आज वे अपनी पहचान अपने लंबे नाम से ही बनाते हैं. उनका नाम न केवल रिकॉर्ड बुक में दर्ज है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण भी है कि जुनून और दृढ़ता से कोई भी सपना सच किया जा सकता है. लॉरेंस वॉटकिंस की कहानी केवल एक रिकॉर्ड की नहीं, बल्कि उस इंसान की है जिसने अपनी सोच को हकीकत में बदलकर इतिहास रच दिया.