मनुष्य जीवन का परम उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति है. इन चारों पुरुषार्थों को पाने के लिए हमारे ऋषि-मुनियों ने अनेक तप, व्रत और अनुष्ठानों का विधान बताया है. इन्हीं में से एक अत्यंत पवित्र और कल्याणकारी व्रत है भीष्म पंचक व्रत, जिसकी महिमा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने बताई है. ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को सच्चे मन और श्रद्धा से करता है, उसके पाप नष्ट होते हैं, कष्टों का अंत होता है और जीवन में सुख, समृद्धि तथा अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह व्रत कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक किया जाता है. वर्ष 2025 में यह व्रत 1 नवंबर (देवप्रबोधिनी एकादशी) से प्रारंभ होकर 5 नवंबर (पूर्णिमा) के दिन संपन्न होगा.
व्रत विधि
- एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें और पापों से मुक्ति व चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति का संकल्प लें.
- घर को साफ-सुथरा करें गांव में मिट्टी या गोबर से और शहर में झाड़ू-पोछे से सफाई कर लें.
- आंगन में रंगोली बनाकर उस पर कलश स्थापित करें, तिल अर्पित करें और भगवान वासुदेव की विधिवत पूजा करें.
- पांचों दिनों तक घी का दीपक जलाएं, मौन होकर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ का 108 बार जप करें और तिल, घी व जौ की 108 आहुतियां अर्पित करें.
- व्रत के दौरान क्रोध, वासना और नकारात्मकता से दूर रहकर ब्रह्मचर्य व संयमित आचरण का पालन करना अत्यंत आवश्यक है.
भीष्म पंचक की कथा
- महाभारत युद्ध के उपरांत जब भीष्म पितामह शरशैया पर सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में थे, तब भगवान श्रीकृष्ण पांचों पांडवों के साथ उनके दर्शन हेतु पहुंचे.
- धर्मराज युधिष्ठिर ने पितामह से धर्म, कर्म, नीति और मोक्ष के गूढ़ रहस्य जानने की प्रार्थना की. \
- तब भीष्म ने पांच दिनों तक सतत उपदेश देकर जीवन के मूल धर्म सिद्धांतों का वर्णन किया.
- उनके उपदेशों से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने कहा- “हे पितामह! आपने इन पांच दिनों में धर्ममय ज्ञान देकर समस्त मानव समाज का कल्याण किया है.”
- उसी क्षण भगवान ने इस व्रत को ‘भीष्म पंचक व्रत’ के रूप में स्थापित करते हुए वरदान दिया कि जो व्यक्ति इसे श्रद्धा-भक्ति से करेगा, उसके सभी’
- पाप नष्ट होंगे, जीवन के दुख समाप्त होंगे और अंत में उसे मोक्ष प्राप्त