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Chhath Puja 2025: आखिर क्यों Kharna के दिन छठी मैया को चढ़ाया जाता है रोटी और गुड़ के खीर का प्रसाद? जानें परंपरा के पीछे छुपा रहस्य

Chhath Puja Kharna 2025: आज छठ महापर्व का दूसरा दिन यानी खरना है, इस दिन छठी मैया को प्रसाद  के तौर पर गुड़ी की खीर और रोटी चढ़ाई जाती है, लेकिन क्या आपको इसका कारण पता है?

Written By: shristi S
Last Updated: October 26, 2025 09:58:19 IST

Jaggery Kheer Roti Ritual on Kharna: छठ पूजा (Chhath Puja) का दूसरा दिन खरना (Kharna)  व्रती महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक माना जाता है. यह दिन न केवल आध्यात्मिक शुद्धता का प्रतीक है, बल्कि छठ महापर्व के असली आरंभ का संकेत भी देता है. खरना को लोकभाषा में “लोहंडा” भी कहा जाता है यानी वह दिन जब व्रती दिनभर निराहार रहकर शाम को छठी मैया को अर्पित प्रसाद ग्रहण करती हैं. इस अवसर पर घर-घर से मिट्टी के चूल्हों की सुगंध, आम की लकड़ियों का धुआँ और गुड़ की खीर की मीठी महक वातावरण को पवित्र कर देती है.

क्या है खरना का अर्थ और महत्व?

“खरना” शब्द का अर्थ होता है शुद्धता और आत्मसंयम. इस दिन व्रती महिलाएं अपने मन, वचन और कर्म से पूरी तरह शुद्ध रहने का संकल्प लेती हैं. सुबह से लेकर शाम तक वे जल तक ग्रहण नहीं करतीं. जब सूर्य अस्त होने लगता है, तब वे स्नान कर नई साड़ी धारण करती हैं, मिट्टी के नए चूल्हे पर प्रसाद तैयार करती हैं और छठी मैया को भोग लगाती हैं. खरना के बाद ही 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ होता है. इसीलिए इसे छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन कहा गया है.

क्यों चढ़ाई जाती है गुड़ की खीर और रोटी?

खरना की विशेषता है गुड़ की खीर और गेहूं की रोटी. यह भोग न केवल छठी मैया को अर्पित किया जाता है बल्कि पूरे परिवार में प्रसाद के रूप में बांटा भी जाता है. इसके पीछे गहरी धार्मिक मान्यता जुड़ी है कि गुड़ सूर्य का प्रतीक माना जाता है. गुड़ में अग्नि तत्व होता है, जो जीवन में ऊर्जा और प्रकाश का द्योतक है. दूध और चावल चंद्रमा के प्रतीक हैं, जो शीतलता, संतुलन और मन की शुद्धता का प्रतीक माने जाते हैं. इसीलिए जब गुड़, दूध और चावल एक साथ मिलकर “गुड़ की खीर” बनते हैं, तो यह सूर्य और चंद्रमा के संतुलन का प्रतीक मानी जाती है. मान्यता है कि छठी मैया को यह प्रसाद अत्यंत प्रिय है.

पौष्टिकता और आध्यात्मिकता का संगम

गुड़ की खीर और रोटी सिर्फ परंपरा का हिस्सा नहीं, बल्कि पोषण का स्रोत भी है. इसमें आयरन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट और ग्लूकोज भरपूर मात्रा में होते हैं, जो व्रती महिलाओं को अगले 36 घंटे तक निर्जला उपवास निभाने की ऊर्जा प्रदान करते हैं.यही कारण है कि खरना के दिन यह प्रसाद विशेष रूप से बनाया जाता है. शाम के समय जब प्रसाद तैयार होता है, तो आस-पड़ोस की महिलाएं, बच्चे और परिवारजन एक साथ बैठकर उसे ग्रहण करते हैं. इस प्रसाद के वितरण से पारस्परिक प्रेम और सौहार्द का संदेश मिलता है.

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