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History of Sardar Patel: भारत के इतिहास में ऐसे कुछ ही महान व्यक्तित्व हुए हैं जिनके नाम के आगे उपाधियां खुद जनता ने जोड़ दीं सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) उन्हीं में से एक हैं. हर साल 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में उनका जन्मदिन मनाया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर वल्लभभाई पटेल को सरदार की उपाधि कैसे मिली? आइए जानते हैं उस प्रेरणादायक कहानी को.
जब जनता ने वल्लभभाई पटेल को बनाया ‘सरदार’
बात साल 1928 की है, जब ब्रिटिश सरकार ने गुजरात के छोटे से कस्बे बारडोली में किसानों पर 30% तक लगान बढ़ा दिया था. यह बढ़ोतरी अनुचित और अन्यायपूर्ण थी। गरीब किसानों के पास पहले से ही अपनी जमीन बचाने के लिए मुश्किल से साधन थे. उस समय वल्लभभाई पटेल ने किसानों की आवाज बनकर उनके हक की लड़ाई लड़ी. उन्होंने आंदोलन को पूरी तरह अहिंसक रखा और ब्रिटिश अधिकारियों से डटकर संवाद किया. किसानों की एकता और पटेल की रणनीति के आगे सरकार को झुकना पड़ा और बढ़ा हुआ लगान वापस लेना पड़ा. इस संघर्ष की सफलता के बाद, बारडोली की महिलाओं ने पटेल की नेतृत्व क्षमता को देखकर उन्हें सरदार की उपाधि दी. यह शब्द नेतृत्व और सम्मान का प्रतीक था और यहीं से वल्लभभाई पटेल ‘सरदार पटेल’ बन गए.
कैसे मिला ‘लौह पुरुष’ का दर्जा?
आजादी के बाद भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी देश की 562 रियासतों को एकजुट करना. यह काम आसान नहीं था. कई राजा-महाराजे अपने-अपने राज्य को स्वतंत्र रखना चाहते थे. लेकिन सरदार पटेल ने अपने अटूट साहस, राजनीतिक दूरदर्शिता और दृढ़ निश्चय से असंभव को संभव कर दिखाया. उन्होंने रियासतों के शासकों को समझाया, समझौते किए, और जहां जरूरत पड़ी, सख्ती भी दिखाई. उनके प्रयासों से ही ज्यादातर रियासतें भारतीय संघ में शामिल हो गईं. इसी कारण उन्हें भारत का लौह पुरुष कहा गया एक ऐसा नेता जिसने अपने लोहे जैसे इरादों से भारत को एक सूत्र में पिरो दिया.
राष्ट्रीय एकता दिवस की शुरूआत
साल 2014 में मोदी सरकार ने हर साल 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस (Rashtriya Ekta Diwas) के रूप में मनाने की घोषणा की. देशभर में इस दिन “रन फॉर यूनिटी”, परेड और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. गुजरात के केवडिया में स्थित स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, जो दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है, सरदार पटेल को समर्पित है.