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Poet Ramdarash Mishra Death: हिंदी साहित्य जगत के लिए 31 अक्टूबर 2025 का दिन एक गहरी क्षति लेकर आया. सुप्रसिद्ध कवि, कहानीकार, उपन्यासकार और आलोचक रामदरश मिश्र का 101 वर्ष की आयु में निधन हो गया. साहित्य की लगभग हर विधा में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने वाले मिश्र जी के निधन से पूरे हिंदी जगत में शोक की लहर है. उन्होंने न केवल कविता को, बल्कि गांव, समाज और मानवीय संवेदनाओं को अपनी लेखनी से ऐसा रूप दिया कि उनका नाम आज भी हिंदी साहित्य के स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है.
आरंभिक जीवन और साहित्यिक यात्रा की शुरुआत
रामदरश मिश्र का जन्म 15 अगस्त 1924 को गोरखपुर जिले के डुमरी गांव में हुआ था. ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े मिश्र जी के भीतर बचपन से ही संवेदनाओं की गहराई थी. गांव की मिट्टी, खेतों की गंध और आम जनजीवन की सरलता ने उनके काव्य-संसार की नींव रखी. उन्होंने कविता लिखना 1940 के दशक में ही शुरू कर दिया था. उनकी पहली प्रकाशित कविता ‘चांद’ थी, जो जनवरी 1941 में ‘सरयू पारीण’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई. इसी समय उन्होंने कवित्त और सवैया शैली में “चक्रव्यूह” नामक एक खंडकाव्य भी लिखा. उस समय उनकी रचनाओं में गांव की सादगी और किशोर भावनाओं का सहज चित्रण देखने को मिलता था.
1951 में मिश्र की पहली कविता हुई प्रकाशित
साहित्यिक वातावरण से दूर रहकर भी मिश्र जी की लेखनी में सहजता और प्रामाणिकता थी. लेकिन जब वे बनारस पहुंचे, तो वहां का साहित्यिक माहौल उनके जीवन का निर्णायक मोड़ साबित हुआ. बनारस के साहित्यिक हलचलों में उन्होंने खुद को नई कविता आंदोलन से जोड़ा. यहां उनकी मुलाकात शंभुनाथ सिंह, नामवर सिंह, त्रिलोचन, बच्चन सिंह और शिवप्रसाद सिंह जैसे दिग्गजों से हुई. उनका पहला काव्य-संग्रह ‘पथ के गीत’ 1951 में प्रकाशित हुआ, जिसने उन्हें साहित्यिक पहचान दिलाई. इसके बाद उनकी कविताओं में संवेदना और विचार दोनों का सुंदर संगम दिखने लगा.
साहित्य में रामदरश मिश्र का योगदान
रामदरश मिश्र केवल कवि ही नहीं, बल्कि एक सशक्त कहानीकार और ग़ज़लकार भी थे। उन्होंने कविता, उपन्यास, कहानी, संस्मरण, आलोचना और ग़ज़ल जैसी सभी विधाओं में उल्लेखनीय योगदान दिया।
उनकी कुछ प्रसिद्ध काव्य कृतियां हैं जिनमें ‘पक गई है धूप’, ‘बैरंग बेनाम चिट्ठियां’, ‘आग की भीख’, ‘जाने पहचाने लोग’ शामिल है. उन्होंने हिंदी ग़ज़ल को भी नई ऊंचाई दी और उसे कविता की गरिमा के बराबर स्थान दिलाया. उनकी कविताओं में जीवन के छोटे-छोटे सत्य, मानवीय संघर्ष और सामाजिक यथार्थ का अद्भुत मेल देखने को मिलता है.
उनकी कुछ प्रसिद्ध काव्य कृतियां हैं जिनमें ‘पक गई है धूप’, ‘बैरंग बेनाम चिट्ठियां’, ‘आग की भीख’, ‘जाने पहचाने लोग’ शामिल है. उन्होंने हिंदी ग़ज़ल को भी नई ऊंचाई दी और उसे कविता की गरिमा के बराबर स्थान दिलाया. उनकी कविताओं में जीवन के छोटे-छोटे सत्य, मानवीय संघर्ष और सामाजिक यथार्थ का अद्भुत मेल देखने को मिलता है.
रामदरश मिश्र हमेशा साहित्य के परिवर्तित दौर के साथ चलते रहे. जब नई कविता का आंदोलन शुरू हुआ, तो वे उसकी अग्रिम पंक्ति में खड़े दिखाई दिए. बाद में जब “विचार कविता” और “लंबी कविता” के दौर आए, तो उन्होंने उस प्रवृत्ति को भी अपने लेखन में स्थान दिया. कहानी लेखन में वे “समांतर कहानी” और “सचेतन कहानी” जैसी विधाओं से भी जुड़े, पर उन्होंने कभी आंदोलन या संगठन के सहारे प्रसिद्धि पाने की कोशिश नहीं की. उनकी रचनाएं उनके विचार और दृष्टिकोण की साक्षी रहीं.
गांव-जीवन और मानवीय संवेदना का कवि
मिश्र जी की कविताएं गांव के जीवन, उसकी सरलता और संघर्ष की प्रतिध्वनि हैं. उन्होंने कभी अपने गांव से जुड़ाव नहीं तोड़ा. यही वजह है कि उनके साहित्य में ग्रामीण संस्कृति, प्रकृति और सामाजिक जीवन का जीवंत चित्रण देखने को मिलता है. वे आधुनिकता के साथ-साथ परंपरा के भी सच्चे संवाहक थे. उनके शब्दों में हमेशा मनुष्य, समाज और संवेदना के प्रति गहरी आस्था झलकती थी.
दिल्ली में होगा अंतिम संस्कार
रामदरश मिश्र के निधन से साहित्य जगत में गहरा शून्य पैदा हुआ है. वरिष्ठ कवियों, आलोचकों और साहित्य प्रेमियों ने उनके निधन को हिंदी साहित्य के एक युग का अंत बताया है. उनका आज दिल्ली के मंगलापुरी श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया जाएगा.