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क्रेडिट स्कोर अब हर 7 दिन में! RBI की नई योजना, ग्राहकों पर असर आसान या मुश्किल?

CIBIL Score: अब अपना क्रेडिट स्कोर अपडेट करने के लिए ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा. देश के क्रेडिट सिस्टम को और मजबूत करने के लिए रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) ने नई ड्राफ़्ट गाइडलाइंस जारी की है.

Written By: Mohammad Nematullah
Last Updated: November 27, 2025 12:07:28 IST

CIBIL Score: अब अपना क्रेडिट स्कोर अपडेट करने के लिए ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा. देश के क्रेडिट सिस्टम को और मजबूत करने के लिए रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) ने नई ड्राफ़्ट गाइडलाइंस जारी की है. जिसमें सभी क्रेडिट इन्फ़ॉर्मेशन कंपनियों (CICs) को हर सात दिन में अपना क्रेडिट स्कोर अपडेट करना जरूरी कर दिया गया है. अभी स्कोर हर 15 दिन में एक बार अपडेट होता है.

यह नया नियम 1 अप्रैल 2026 से लागू होगा. अभी 15 दिन के अपडेट की वजह से कस्टमर्स को अक्सर समय पर लोन या क्रेडिट कार्ड मिलने में दिक्कत होती है. नई गाइडलाइंस के मुताबिक CICs को हर महीने की 7, 14, 21 और 28 तारीख के साथ-साथ महीने के आखिरी दिन तक डेटा अपडेट करना होगा.

लोन बंद होने की तुरंत जानकारी

बैंकों को लोन या क्रेडिट कार्ड बंद होने की जानकारी उसी दिन CIBIL को देनी होगी. पहले इस प्रोसेस में हफ़्ते या महीने लग जाते थे, और कस्टमर्स को लोन मिलने में दिक्कत होती थी. इसके अलावा बैंक और दूसरे फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन हर महीने की 3 तारीख तक नया डेटा भेजेंगे, जिससे सिस्टम की स्पीड और एक्यूरेसी बढ़ेगी.

कोई अनऑथराइज़्ड क्रेडिट रिपोर्ट नहीं

एक और बड़ा बदलाव यह है कि बैंक और NBFC अब कस्टमर की क्रेडिट रिपोर्ट को उनकी साफ इजाजत के बिना एक्सेस नहीं कर पाएंगे. इससे गैर-जरूरी क्रेडिट चेक की संभावना कम हो जाएगी, और कस्टमर के CIBIL स्कोर को गैर-जरूरी रूप से कम होने से रोका जा सकेगा. इससे क्रेडिट प्रोफ़ाइल पहले से ज़्यादा सुरक्षित हो जाएंगी.

तीसरा गलत रिपोर्टिंग, देरी से डेटा अपडेट और अनऑथराइज़्ड क्रेडिट चेक के लिए सख्त पेनल्टी लगाई गई है. इससे बैंक और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन अपने क्रेडिट डेटा को ज़्यादा सटीक, साफ और अपडेटेड रखने के लिए मजबूर होंगे, और कस्टमर अपने स्कोर में तेज़ी से सुधार देखेंगे.

अप-टू-डेट रिपोर्ट

चौथा बड़ा फ़ायदा यह है कि बैंकों के पास अब ताज़ा और अप-टू-डेट कस्टमर क्रेडिट रिपोर्ट का एक्सेस होगा. इससे वे रिस्क का बेहतर अंदाज़ा लगा पाएंगे और लोन की ब्याज दरें, रकम और समय-सीमा ज़्यादा सही तरीके से तय कर पाएंगे. इससे बैंकिंग सिस्टम में ट्रांसपेरेंसी और एफिशिएंसी बढ़ेगी.

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