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Neem Karoli Baba: ‘फिल्म छोड़ देने का मन था…’ नीम करौली के कैंची धाम पहुंचे मनोज बाजपेयी, बदली किस्मत

Neem Karoli Baba: हाल ही में एक इंटरव्यू में मनोज बाजपेयी ने बताया कि वह एक मुश्किल दौर से गुजर रहे थे. इसी दौरान उन्होंने अपना प्रोफेशन छोड़ने का फैसला किया. फिर, उन्हें नीम करोली बाबा के कैंची धाम जाने का मौका मिला. इस एक घटना ने उनकी जिंदगी बदल दी.

Written By: Shivashakti narayan singh
Last Updated: November 27, 2025 22:19:47 IST

Neem Karoli Baba: ‘द फैमिली मैन’ का तीसरा सीजन अमेजन प्राइम पर रिलीज हो चुका है और OTT प्लेटफॉर्म पर धूम मचा रहा है. 21 नवंबर को रिलीज हुई इस सीरीज में मनोज बाजपेयी और जयदीप अहलावत हैं. इस सीजन में कुल सात एपिसोड हैं. मनोज बाजपेयी के काम की बहुत तारीफ हुई है. इससे पहले, सितंबर में मनोज बाजपेयी की एक और फिल्म “जुगनुमा” रिलीज हुई थी.

इस फिल्म की रिलीज से ठीक पहले, मनोज बाजपेयी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह फिल्म इंडस्ट्री से दूर जा रहे हैं. उन्हें बेचैनी महसूस हो रही थी. लेकिन फिर वह उत्तराखंड में नीम करोली बाबा के धाम गए, और वहां जो अनुभव किया, उसने उनकी जिंदगी को एक नई दिशा दी.

एक साल तक नहीं किया काम

इस इंटरव्यू में उन्होंने बताया, “मैं बहुत बेचैनी के दौर से गुजर रहा था. मुझे तो यह भी लगा कि अब इस प्रोफेशन को छोड़ने का समय आ गया है. ‘जुगनुमा’ से ठीक पहले, मैंने लगभग एक साल तक काम नहीं किया था. मैं जवाब ढूंढ रहा था, तभी ‘जुगनुमा’ के डायरेक्टर राम रेड्डी ने मुझे शूटिंग लोकेशन पर अपने साथ चलने के लिए कहा.”

कैंची धाम से मिला सहारा

मनोज बाजपेयी ने आगे कहा, “शूटिंग लोकेशन पर जाने से पहले, हम नीम करोली बाबा के कैंची धाम और नैनीताल में उनकी गुफा गए. हम गुफा तक पहुंचने के लिए लगभग एक घंटे तक चढ़ाई करते रहे और वहां ध्यान किया. उसके बाद, कुछ जादुई हुआ. यही वह पल था जब मुझे मेरा जवाब मिल गया. नीचे उतरते समय, राम और मैंने एक-दूसरे को देखा और कहा, ‘हमें फिल्म मिल गई है.'”

कैंची धाम की महिमा

नीम करोली बाबा का पवित्र कैंची धाम मंदिर अल्मोड़ा हाईवे से दूर उत्तरवाहिनी नदी के किनारे है. नीम करोली बाबा की तपस्या की जगह होने के कारण यह जगह हमेशा से भक्ति और आध्यात्मिक आस्था का केंद्र रही है. 10 सितंबर 1973 को बाबा ने महासमाधि ली और अपना शरीर त्याग दिया. उनकी अस्थियों को यहीं कैंची धाम में दफनाया गया, जिसके बाद 1974 में उनके मंदिर का निर्माण शुरू हुआ.

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