Bhaum Pradosh Vrat Katha: हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोश व्रत किया जाता है और व्रत हफ्ते के जिस दिन पड़ता है, उसी के नाम से जाना जाता है. ऐसे में आज मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि है और मंगलवार का दिन हैं, ऐसे में यह व्रत भौम प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है. इस दिन प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव के साथ-साथ आपको हनुमान जी की कृपा भी प्राप्त होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रदोश व्रत तब ही पूरा माना जाता है, जब व्रत के दौरान इस व्रत की कथा सुनी गई हो. चलिए जानते हैं यहां भौम प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त और भौम प्रदोष की व्रत कथा
भौम प्रदोष व्रत की पूजा का मुहूर्त (Bhaum Pradosh Vrat 2025 Puja Muhurat)
आज भौम प्रदोष का व्रत और प्रदोष व्रत के दिन महादेव की पूजा संध्याकाल में करने का विधान है माना जाता है. ऐसे में पहला मुहूर्त रहेगा गोधूलि मुहूर्त जिसकी शुरुआत आज शाम 5 बजकर 57 मिनट से होगी और समापन शाम 6 बजकर 23 मिनट तक होगा. दूसरा मुहूर्त है सायाह्न संध्या का, जो कि शाम 6 बजे से लेकर शाम 7 बजकर 17 मिनट तक. इन मुहूर्तों में आप भगवान शिव का पूजा कर सकते हैं. मान्यताओं के अनुसार, भौम प्रदोष व्रत रखने से कर्ज, शत्रु, भय और दुखों का अंत होता है और हर कार्य में सफलता के योग प्रबल हो जाते हैं.
आज पूजा में जरूर पढ़े भौम प्रदोष व्रत की कथा
प्राचीन काल की बात है, एक नगर में बेहद गरीब ब्राह्मण परिवार निवास करता था. ब्राह्मण की पत्नी और एक पुत्र था. परिवार में दरिद्रता इतनी थी कि वे बड़ी मुश्किल से अपना जीवन बीता रहे थे. एक दिन, ब्राह्मण की पत्नी ने अपने पुत्र को अपने पिता और उसके नाना के यहां भेजा. पुत्र अपने नाना के घर गया और वहां खुशी-खुशी रहने लगा. वहीं दूसरी ओर ब्राह्मण की पत्नी हर मंगलवार के दिन भौम प्रदोष का व्रत पूरे विधि-विधान से करने लगी. वह भौम प्रदोष व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती और उनसे अपने घर क दरिद्रता दूर करने की प्रार्थना करती. ब्राह्मण की पत्नी की क्षद्धा देख माता पार्वती ने उस उसका दुख दूर करने का विचार किया माता पार्वती एक वृद्धा का रूप धारण कर उस ब्राह्मणी के घर पहुंच गई. वृद्धा ने ब्राह्मणी से कहा, “पुत्री, मैं जानती हूं कि तुम बहुत कष्ट में हो. तुम अपने पुत्र को लेकर पास के शिव जी के मंदिर में जाओ. वहां जाकर पुत्र से कहो कि वह मंदिर में सफाई करे.” ब्राह्मणी को उस वृद्धा की बात पर कुछ संशय होने, उसने वृद्धा के कहने ग्रह पर अपने पुत्र को नाना के घर से वापस बुलाया और उसी शिव मंदिर में जाकर सफाई करने को कहा. पुत्र ने भी अपनी माता का कहा माना और नियमित रूप से मंदिर में जाकर मन लगाकर सफाई करने लगा. एक दिन, सफाई के दौरान पुत्र को मंदिर में एक स्वर्ण कलश मिला. वो उसे लेकर अपनी माता के पास आया. माता को जब यह पता चला कि पुत्र को मंदिर में सफाई करते हुए स्वर्ण कलश मिला है, तो उसे यह समझते देर न लगी कि यह सब भौम प्रदोष व्रत का पुण्य है और उस पर भगवान शिव और माता पार्विती की कृपा हुई है. गरीब ब्राह्मण परिवार की दरिद्रता दूर हो गई. उन्होंने उस धन का सदुपयोग किया और एक सुखी तथा समृद्ध जीवन व्यतीत करने लगे. ब्राह्मण की पत्नी ने प्रण लिया कि वे आजीवन हर मंगलवार को आने वाले भौम प्रदोष व्रत करेंगी.
प्रदोश व्रत में पढ़े शिव जी की आरती
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा. ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥ एकानन चतुरानन पंचानन राजे.
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥ दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे.
त्रिगुण रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥ अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी.
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥ श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे.
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता.
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका.
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी.
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…|
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे.
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव ओंकारा… ॥
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