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Jayalalithaa Death Mystery: देश की चर्चित महिला CM की संदिग्ध हालात में मौत, शक के घेरे में सहेली! 9 साल बाद भी नहीं खुला राज़

Jayalalithaa Death Mystery: अपने जमाने की सिनमा स्टार और तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता (J. Jayalalitha) की मौत 9 साल बाद भी पहेली बनी हुई है. कई सवाल हैं, जिनके जवाब शायद ही कभी मिलें.

Written By: JP YADAV
Last Updated: 2025-12-05 09:52:57

Jayalalithaa Death Mystery: चेन्नई के चर्चित अपोलो अस्पताल के बाहर 5 दिसंबर, 2016 की रात को भी ऑल इंडिया अन्‍ना द्रविड़ मुन्‍नेत्र कड़गम (AIADMK) के समर्थक बड़ी संख्या में जमा थे. यह सिलसिला करीब ढाई महीने से लगातार जारी था. रात हो या दिन तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रह चुकी जयराम जयललिता के समर्थक 24 घंटे अस्पताल के इर्दगिर्द नजर आते. जब भी अस्पताल से कोई बड़ा नेता या नर्स-डॉक्टर निकलते तो समर्थक पहला सवाल यही पूछते- ‘अम्मा की तबीयत कैसी है?’ अम्मा यानी जे. जयललिता-समर्थक उन्हें इसी नाम से बुलाते थे. डॉक्टर या नेता अस्पताल से बाहर निकलकर यही कहते थे- अम्मा ठीक हैं और अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है. कई बार उनके निधन की खबर उड़ी. बाद में अफवाह साबित हुई, लेकिन 75 दिनों तक चेन्नई के अपोलो अस्पताल में जयललिता के साथ-साथ तमिलनाडु की राजनीति में बड़ी अनहोनी इंतजार कर रही थी. 5 दिसंबर 2016 को रात 11 बजकर 30 मिनट पर चेन्नई के अपोलो अस्पताल में तमिलनाडु की पूर्व सीएम और प्रशंसकों/समर्थकों की अम्मा ने दुनिया को अलविदा कह दिया. 

9 साल बाद भी पहेली है जयललिता की ‘मौत’

5 दिसंबर 2016 को रात 11 बजकर 30 मिनट पर जयललिता का निधन हो गया. अस्पताल प्रशासन ने इसकी घोषणा 12 बजकर 15 मिनट पर की. 45 मिनट (11:30 से 12:15) के दौरान प्रशंसक, समर्थक और तमिलनाडु के लोग भी परेशान रहे. अम्मा के निधन की खबर सुनकर कई प्रशंसकों ने जान तक दे दी तो कुछ ने जान देने की कोशिश की. लाखों लोग रोए और अपनी अम्मा के समर्थन में घरों से निकल पड़े. कुछ समर्थक यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि उनकी अम्मा दुनिया से जा भी सकती हैं. आंसुओं का यह सैलाब 21वीं सदी में पहली बार तमिलनाडु में देखा गया. उस दौर के पत्रकार भी बताते हैं कि ऐसा नजारा एमजी रामचंद्रन (MGR)  के निधन के समय देखा गया था. वह भी तमिल सुपरस्टार होने के साथ-साथ राज्य के सीएम भी थे, इसलिए उनका क्रेज दो वजह से था. जयललिता के साथ भी ऐसा ही था. तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता की मौत के 9 साल गुजर चुके हैं, लेकिन यह रहस्य बरकरार है कि उनकी मौत का असल राज़ क्या है. डॉक्टरों ने कहा कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई, लेकिन परिस्थितियों के चलते लोगों ने संदेह किया. संदेह को दूर करने के लिए तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता की मौत को लेकर जस्टिस ए अरुमुगास्वामी कमीशन ने जांच की. वजह यह थी कि मौत के वक़्त की परिस्थितियां संदेह के घेरे में थीं. जांच के लिए गठित किए गए जस्टिस ए अरुमुगास्वामी कमीशन की रिपोर्ट को वर्ष 2022 को राज्य विधानसभा में पेश किया गया.

रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली बात

विधानसभा में पेश की गई जस्टिस ए अरुमुगास्वामी कमीशन की रिपोर्ट ने राज्य की राजनीति में हड़कंप पैदा कर दिया, क्योंकि इसमें कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं. रिपोर्ट में जानकारी दी गई कि जयललिता का निधन 5 दिसंबर, 2016 को रात 11 बजकर 20 हुआ. यह अस्पताल का कहना था. वहीं, प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री का निधन तो एक दिन पहले ही यानी 4 दिसंबर, 2016 को शाम 3 बजे से 3:50 बजे के बीच हुआ था. डॉक्टरों की रिपोर्ट और प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों ने उलझन पैदा कर दी, जो आज भी कायम है. जयललिता की मौत की असली तारीख को लेकर विवाद आज तक बरकरार है, क्योंकि अपोलो अस्पताल प्रशासन और उनके स्टाफ के बयान में तमाम विरोधाभाष हैं. अस्पताल के बुलेटिन के अनुसार, AIAMDK नेता जयललिता का निधन 5 दिसंबर, 2016 को हुआ वह भी रात 11 बजकर 30 मिनट पर. वहीं, जयललिता की देखभाल में लगे स्टाफ का बयान अलग है. नर्स, तकनीशियन के अलावा अस्पताल के अन्य स्टाफ ने जांच कमेटी को दिए बयान में दावा किया कि 4 दिसंबर, 2016 की दोपहर 3.50 से पहले ही उनका कार्डिक फेल्योर हुआ था. नर्सों के दावों पर यकीन करें तो जयललिता को जब अस्पताल में लाया गया तो कोई इलेक्ट्रिक एक्टिविटी नहीं था. ब्लड सर्कुलेशन थमा हुआ था. विधानसभा में पेश रिपोर्ट यह भी कहती है कि 3.50 से पहले जयललिता का कार्डिक फेल्योर हुआ था. हैरत की बात यह है कि उन्हें सीपीआर 4.20 पर दिया गया. दावा यह भी है कि सीपीआर की प्रक्रिया शुरू करने से पहले ही जयललिता का निधन हो चुका था. जांच रिपोर्ट के आधार पर निष्कर्ष निकालें तो 4 दिसंबर की शाम 3.50 पर ही जयललिता दुनिया को अलविदा कह चुकी थीं. सवाल यह है कि अगर 4 दिसंबर को ही उनका निधन हो चुका था तो करीब 24 घंटे तक इसे क्यों छिपाए रखा गया.  अस्पताल प्रशासन की ओर से कहा गया कि जयललिता के के कमरे में सीसीटीवी कैमरा नहीं था. उनका कहना था कि अगर कैमरा होता भी तब भी हम कोई तस्वीर रिलीज़ नहीं करते.

क्यों बंद थे अस्पताल के CCTV?

परिस्थितियों ने संदेह के बादल गहरे कर किए. तमिलनाडु की सीएम रह चुकीं जे जयललिता के निधन को लेकर एक चौंकाने वाली जानकारी यह भी सामने आई कि अपोलो अस्पताल के कैमरों को बंद कर दिया था. अपोलो अस्पताल के चेयरमेन डॉक्टर प्रताप सी रेड्डी ने खुद यह जानकारी दी थी कि जयललिता के 75 दिनों के इलाज के दौरान अस्पताल प्रशासन ने कैमरों को बंद कर दिया. तर्क यह दिया गया था कि इससे पूर्व सीएम की निजता सार्वजनिक होने का खतरा था. सवाल यह है कि जब जयललिता पहले से ही सार्वजनिक जीवन में थीं तो गोपनीयता क्यों बरती गई? 

पूरा आईसीयू डिपार्टमेंट किया गया था बुक

एक और चौंकाने वाली जानकारी सामने आई कि जयललिता के इलाज लिए 24 बेड का पूरा आईसीयू डिपार्टमेंट बुक किया गया था. 75 दिनों तक वह अकेले ही भर्ती रहीं, तब तक वह बेड जयललिता के नाम पर बुक रहे. अस्पताल प्रशासन की ओर से जो आधिकारिक बयान सार्वजनिक रूप से जारी किया गया. वह यह था कि जयललिता नहीं चाहती थीं कि उनके इलाज से जुड़ी फुटेज CCTV में कैद हों. सबसे हैरान कर देने वाली बात यह है कि अस्पताल के आईसीयू में अनजान व्यक्ति का आना-जाना भी प्रतिबंधित कर दिया गया था. सिर्फ नर्स और डॉक्टर ही जा सकते हैं. इसके अलावा, उनकी सहयोगी शशिकला ही उनके पास थीं. बताया जाता है कि वह पूरे 75 दिन उनके पास आईसीयू में ही रहीं. 

बेहोश लाई गईं जयललिता को कभी नहीं आया होश

उस समय की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 22 सितंबर, 2016 को गंभीर रूप से बीमार होने पर जयललिता को चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था. यह भी बताया जाता है कि जब उन्हें अस्पताल में लाकर भर्ती कराया गया तो वह बेहोश थी. इसके 75 दिन बाद उनके निधन की खबर नहीं आई. सवाल यह है कि जयललिता यह जानती थीं कि उनके अस्पताल में भर्ती होने के बाद समर्थक और प्रशंसक परेशान होंगे तो उन्होंने होश में आने पर आखिर कोई बयान क्यों नहीं जारी करवाया. वहीं, अस्पताल प्रशासन का कहना था कि खुद जयललिता ने कहा था कि उनकी बीमारी को सार्वजनिक नहीं किया जाए. ये दोनों ही बातें विरोधाभाषी हैं. रिपोर्ट में यह सवाल भी उठाया गया कि स्टर्नोटॉमी और सीपीआर जैसी गतिविधियों का इस्तेमाल भी हुआ ताकि जयललिता के निधन होने और उसके समय की जानकारी का खुलासा देरी से हो. 75 दिनों तक अस्पताल में जयललिता के साथ क्या-क्या हुआ? यह अब शायद ही पता चल सके, लेकिन उनकी मौत का रहस्य हमेशा बरकरार रहेगा. 

शक के घेरे में सहेली शशिकला

तमिलनाडु की राजनीति में भले ही शशिकला ने कोई पद हासिल नहीं किया, लेकिन वह हमेशा केंद्र में रहीं. वह जयललिता की सहेली बनीं और कथित तौर पर उम्र भर उनके साथ रहीं. बावजूद इसके कि काफी समय तक दोनों के बीच खटास भी रही. सिर्फ 10वीं तक पढ़ाई करने वालीं शशिकला की शादी 16 अक्टूबर, 1973 को एम. नटराजन से हुई. इस शादी में मन्नई नारायणस्वामी मौजूद थे. वह तंजौर जिले के बेहद प्रभावशाली नेता थे. इस शादी में दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद देने तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि भी आए थे. यही पर जयललिता से भी मुलाकात हुई. इस मुलाकात को शशिकला ने भुनाया. जयललिता से नजदीकियां बढ़ाईं और विश्वास जीता. उस दौर में तत्कालीन मुख्यमंत्री एम जी रामचंद्रन ने जयललिता राज्यसभा की सांसद बना दिया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन के निधन के बाद दोनों बेहद करीब आ गईं. जयललिता भी शशिकला को दिल्ली के दौरे में साथ ले जाने लगीं. धीरे-धीरे दोस्तों बहुत अच्छी दोस्त बन गईं. वहीं, जस्टिस ए अरुमुगास्वामी कमीशन की रिपोर्ट यह कहती है कि चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती होने के दौरान वहां पर अधिकतर शशिकला के रिश्तेदार मौजूद थे. यह भी सच है कि वह, 2012 में दोबारा साथ आने के बाद से ही जयललिता और शशिकला के रिश्तों में पहले जैसी बात नहीं रह गई थी. 

मौत के बाद क्यों दफनाया गया था शव?

आधिकारिक रूप से 5 दिसंबर, 2016 को जयललिता का निधन हो गया था. रोचक जानकारी यह है कि जयललिता हिंदू धर्म से ताल्लुक रखती थीं, इसलिए जयललिता को जलाया जाना था, लेकिन दफनाया गया. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वह यानी जयललिता के द्रविड़ आंदोलन से जुड़ी थीं. द्रविड़ आंदोलन से जुड़े लोग हिंदू परंपरा और रस्म-रिवाज में विश्वास नहीं रखते, इसलिए निधन के बाद उन्हें दफनाया गया. 

किन-किन स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रही थीं जयललिता

जस्टिस ए अरुमुगास्वामी कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक, गवाहों के बयान और मेडिकल रिपोर्ट्स कहती है कि जयललिता कई बीमारियों से पीड़ित थीं. वह कई सालों से मोटापे से जूझ रही थीं. इसके अलावा हाइपरटेंशन, शुगर, हाइपोथायरोआइडिज़्म, इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम, क्रॉनिक डायरिया और क्रॉनिक सीज़नल ब्रॉन्काइटिस से भी जयललिता जूझ रही थीं. ब्रितानी डॉक्टर रिचर्ड बील, अमेरिकी डॉक्टर स्टुअर्ट रसेल और डॉक्टर समीन शर्मा ने सुझाव दिया था कि जयललिता की एंजियोग्राम की जाए, लेकिन रिपोर्ट में इस बात को लेकर सवाल उठाया गया है कि एंजियोग्राम नहीं की गई. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि अपोलो हॉस्पिटल के प्रमुख डॉक्टर प्रताप रेड्डी के ख़िलाफ़ जांच की जाए या नहीं, इस पर राज्य सरकार फ़ैसला ले सकती है. आखिरकार आगे कदम नहीं उठाया गया. कई बार अस्पताल प्रशासन की ओर से कहा गया कि जयललिता को कभी भी अस्पताल से छुट्टी दी जा सकती है, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. इस तरह की जानकारी बार-बार मीडिया से साझा करने पर भी रिपोर्ट में सवाल उठाया गया. 

इलाज करने वाले डॉक्टर ने पीसी कर किए थे कई खुलासे

जयललिता का इलाज कर रहे लंदन से आए डॉक्टर रिचर्ड बील ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई अहम जानकारी दी थी. इसमें उन्होंने बताया कि जयलिलता अस्पताल लाईं गईं तो उनकी हालत नाज़ुक थी. हालत इतनी खराब थी कि वह बोल भी नहीं पा रही थीं. रिचर्ड बील के अनुसार, इलाज के बाद उनकी हालत में सुधार हुआ था. बात करने के दौरान इलेक्शन कमीशन के फ़ॉर्म के लिए उन्होंने अंगूठा उठाकर इशारा किया था. जयललिता को इंफे़क्शन हुआ था. जयललिता के शरीर के अंगों का ट्रांसप्लांट या कोई सर्जरी नहीं की गई थी.  इंफेक्शन के चलते जयललिता के पूरे शरीर के अंगों और ख़ून में फैल गया था. इस बीच दिल का दौरा पड़ा. इसके साथ स्थिति नहीं सुधरी और आखिकार 5 दिसंबर, 2016 को रात 11.30 बजे उनकी मौत हो गई. 

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