Puja Rituals: जब आप किसी मंदिर में जाते हैं, तो आपने अक्सर पुजारियों को की आरती करते देखा होगा. लेकिन क्या आपने ध्यान दिया है कि पुजारी हमेशा आरती की थाली को दक्षिणावर्त दिशा यानी घड़ी की सुइयों की दिशा दिशा में ही क्यों घुमाते हैं? आरती को घड़ी की दिशा में करना सिर्फ एक परंपरा नहीं है, बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण भी हैं. असल में, आरती करते समय दीपक का घूमना हमारी प्रार्थनाओं को ब्रह्मांड की शक्ति और प्रकृति के धर्म से जोड़ता है. आइए विस्तार से जानते हैं कि आरती को घड़ी की दिशा में क्यों घुमाया जाता है और थाली को कितनी बार घुमाना चाहिए…
आरती को दक्षिणावर्त दिशा में घुमाने का कारण
आरती को घड़ी की दिशा में घुमाने का मुख्य कारण प्रकृति के प्राकृतिक क्रम का पालन करना है. पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है, जिससे सूर्य, ग्रह और तारे पूर्व में उगते और पश्चिम में अस्त होते हुए दिखाई देते हैं. इसी प्राकृतिक क्रम का पालन करते हुए, आरती का घूमना, घड़ियों की सुइयों का घूमना और अन्य पारंपरिक प्रथाएं भी घड़ी की दिशा में ही घूमती हैं. आरती को दाईं ओर घुमाकर, हम अपनी पूजा को इस ब्रह्मांडीय गति के साथ जोड़ते हैं.
दाहिनी ओर की पवित्रता और सम्मान
हिंदू धर्म में, दाहिनी ओर को अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है. इसलिए, जब हम मंदिर की परिक्रमा करते हैं, तो इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि गर्भगृह हमारी दाहिनी ओर हो. पुजारी भगवान को प्रसाद, फूल और आशीर्वाद देने के लिए अपने दाहिने हाथ का इस्तेमाल करते हैं.
आरती की थाली को कितनी बार घुमाएं (How many times should the aarti plate be rotated?)
भगवान की आरती एक जगह खड़े होकर और थोड़ा झुककर करें. आरती की थाली को क्लॉकवाइज घुमाएं. सबसे पहले, इसे भगवान के पैरों पर चार बार घुमाएं, फिर नाभि पर दो बार, और एक बार चेहरे की तरफ. कुल मिलाकर, आरती की थाली को 14 बार घुमाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि आरती की थाली को 14 बार घुमाने से आपकी कृतज्ञता और श्रद्धा भगवान तक पहुंचती है.