Parliament Winter Session 2025: राज्यसभा सांसद कार्तिकेय शर्मा (Rajya Sabha MP Kartikeya Sharma) ने उच्च सदन यानी राज्यसभा में वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर अपने विस्तृत वक्तव्य में इसे भारत की राष्ट्रीय चेतना की उस सभ्यतागत धारा का प्रतीक बताया. उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् गीत ने देश को राष्ट्रीयता की पहली और सबसे सशक्त भाषा दी. संसद कार्तिकेय शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि जब भारत वंदे मातरम् के 150 वर्ष मना रहा है तब मैं केवल एक गीत पर नहीं, बल्कि उस सभ्यतागत धरोहर पर बोल रहा हूं जिसने भारत को राष्ट्रीयता की पहली भाषा दी. उस रचनाकार पर जिसका योगदान वर्षों तक व्यवस्थित रूप से उपेक्षित रहा, उस गीत पर जिसे राजनीतिक दबाव में काटा गया और उस सामूहिक जिम्मेदारी पर जो आज हम सबकी है कि जो हमारा है, उसे हम पुनः प्रतिष्ठित और पुनर्स्थापित करें.
राजनीतिक चेतना जगाता था वंदेमातरम्
उन्होंने गीत की उत्पत्ति 1875 में नैहाटी–उत्तर बड़सत में बताते हुए जानकारी दी कि उस समय भारत के पास न संसद थी, न संविधान और ना राष्ट्रीय ध्वज. फिर भी एक ऐसा गीत जन्मा जिसने भारत को भू-भाग नहीं बल्कि मां के रूप में संबोधित किया और राष्ट्रीयता की परिभाषा ही बदल दी. कार्तिकेय शर्मा ने सदन को स्मरण कराया कि ब्रिटिश शासन वंदे मातरम् से इसलिए डरता था क्योंकि यह राजनीतिक चेतना जगाता था. यह कक्षाओं से जेलों तक, बंगाल से पूरे भारत तक और फुसफुसाहट से युद्धघोष तक फैल गया. उन्होंने 1905 के स्वदेशी आंदोलन में इसके नैतिक प्रभाव को रेखांकित किया और 1937 में राजनीतिक दबाव के कारण इसे दो अंतरों तक सीमित किए जाने का उल्लेख किया. उन्होंने 1925 और 1975 (आपातकाल) के बीच इसके स्थान में आए नैतिक विरोधाभास की ओर भी ध्यान दिलाया.
Delhi: On the ‘Vande Mataram’ discussion in Parliament, Rajya Sabha MP Kartikeya Sharma says, “The government had taken a historic initiative where, to instill a sense of patriotism among people, the song ‘Jana Gana Mana’ is played in cinemas and schools to revive that… pic.twitter.com/Vrh9GtijuB
— IANS (@ians_india) December 10, 2025
बंकिम चंद्र चटर्जी की अकादमिक उपेक्षा पर चिंता जताई
राज्यसभा सांसद ने आधुनिक बंगाली साहित्य के जनक और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के स्थापत्यकार बंकिम चंद्र चटर्जी की अकादमिक उपेक्षा पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि जिस स्थल पर यह गीत रचा गया वह सात दशकों तक उपेक्षित रहा और हाल के वर्षों में ही उसे सम्मान मिला है. उन्होंने कहा कि जो सभ्यता अपने निर्माताओं को भूल जाती है वह स्वयं क भी भूल जाती है. उन्होंने वंदे मातरम् को आत्मनिर्भरता, नैतिक साहस, ज्ञान और राष्ट्रीय आत्मविश्वास के सक्रिय दर्शन के रूप में वर्णित किया. उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए आत्मनिर्भर भारत के आह्वान में वही भाव नीतिगत रूप में व्यक्त होता है, जिसे वंदे मातरम् ने 140 वर्ष पहले काव्य में दिया था.
अपने वक्तव्य के अंत में उन्होंने सदन में कहा
“मां भारती के सामने हम सब एक हैं.
पार्टी बाद में है, राष्ट्र पहले है.
राजनीति बाद में है, राष्ट्र पहले है.
धर्म और मज़हब बाद में हैं, राष्ट्र पहले है.
उन्होंने अपना वक्तव्य “वन्दे मातरम्” कहकर समाप्त किया. इसके बाद मीडिया से बातचीत में कार्तिकेय शर्मा ने कहा कि सरकार ने सार्वजनिक जीवन में राष्ट्रीय चेतना को पुनर्जीवित करने के महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. उन्होंने कहा कि सिनेमा घरों में राष्ट्रीय गान की ध्वनि हर नागरिक को यह स्मरण कराती है कि किसी भी पहचान या विचारधारा से पहले वह भारतीय है. उन्होंने कहा कि जब सिनेमा घरों में जन गण मन गूंजता है तो हर नागरिक को यह स्मरण होता है कि वह किसी भी जाति, दल या विचारधारा से पहले भारतवासी है. राष्ट्रीय गान हमारी संवैधानिक पहचान है और वंदे मातरम् हमारी सभ्यता की आत्मा है.
हर निर्णय की कसौटी सिर्फ एक – देशहित।
पार्टी बाद में है, माँ भारती पहले।
Vande Mataram pic.twitter.com/m4wadCz2RG— Kartikeya Sharma (@Kartiksharmamp) December 10, 2025
राजनीतिक मतभेद के बाजवूद राष्ट्र सर्वोपरि
उन्होंने संसद में भी प्रतिदिन एकता के इसी अभ्यास को अपनाने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि हर दिन सदन की कार्यवाही प्रारंभ होने से पहले हम सभी खड़े हों और एक स्वर में वंदे मातरम् गाएं. यह केवल औपचारिकता नहीं होगी बल्कि यह प्रतिदिन का स्मरण होगा कि चाहे हम किसी भी दल या विचारधारा से आते हों और हमारे राजनीतिक मतभेद कितने ही तीखे क्यों न हों — राष्ट्र सर्वोपरि है.