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भारत में 1000 साल पुरानी Buddha Monastery की रोचक कहानी, मंगोलों के आक्रमण का भी नहीं हुआ असर

हिमालय की वादियों में बहुत सारे ऐसे रहस्य छिपे हैं, जिनके बारे में बेहद कम लोग जानते हैं, उनमें से एक बौद्ध मठ भी है. ये मठ स्पीति घाटी और लद्दाख जैसे इलाकों में स्थित हैं, जहां प्रकृति और आध्यात्म का एक अलग ही संगम देखने को मिलता है.

Written By: Shivangi Shukla
Last Updated: December 12, 2025 11:54:31 IST

Himalayan Monasteries: हिमालय की वादियों में बहुत सारे ऐसे रहस्य छिपे हैं, जिनके बारे में बेहद कम लोग जानते हैं, उनमें से एक बौद्ध मठ भी है. हिमालयी क्षेत्र में दुनिया के कुछ सबसे पुराने बौद्ध मठ हैं, जो बड़ी-बड़ी चट्टानों और ऊंचे दर्रों पर बने हैं. ये जगहें, जो एक हज़ार साल से भी अधिक पुरानी हैं, लेकिन दुर्गम हिमालयी क्षेत्र में स्थित होने की वजह से आज भी अधिकांश लोग इनके बारे में नहीं जानते. 
ये मठ स्पीति घाटी और लद्दाख जैसे इलाकों में स्थित हैं, जहां प्रकृति और आध्यात्म का एक अलग ही संगम देखने को मिलता है. इन्हें देखने जाना इतिहास, कला और भक्ति की एक गहरी यात्रा जैसा है.

की मोनेस्ट्री

की मोनेस्ट्री गेलुग्पा संप्रदाय का एक तिब्बती बौद्ध मठ है जो हिमाचल प्रदेश में स्पीति नदी के पास 4,166 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह स्पीति घाटी में लामाओं के लिए सबसे बड़ा और सबसे पुराना ट्रेनिंग सेंटर है. सदियों पहले बना यह मठ 1855 तक लगभग 100 भिक्षुओं का घर था. इसने कई हमलों का सामना किया, जिसमें 1841 में मंगोलों द्वारा किया गया विनाश भी शामिल है, जिसके बाद इसे फिर से बनाया गया. इस मठ में पुराने दीवारों पर बनी तस्वीरों और मूर्तियों से भरे प्रार्थना हॉल हैं, जो बहुत खूबसूरत है. यात्री यहां खड़ी चढ़ाई करके पहुंचते हैं.

धनकर मठ

यह मठ भी स्पीति में है. स्पीति में एक चट्टान पर बना यह किले जैसा मठ, लद्दाख की तरह ही सेंट्रल तिब्बती आर्किटेक्चर को फॉलो करता है. 19वीं सदी के बीच में इसने लगभग 90 भिक्षुओं को सहारा दिया और यह स्पीति और पिन नदियों के संगम के ऊपर है. यह मठ वज्रयान परंपरा का पालन करता है. इस मठ तक पहुंचने का रास्ता दुर्गम है, जो सैलानियों को एक अनूठे और रोमांचक ट्रेक का अनुभव देता है. 

ताबो मठ

996 CE में गुगे साम्राज्य के संरक्षण में रिनचेन ज़ंगपो द्वारा इस मठ को स्थापित किया गया. ताबो भारत में सबसे पुराना लगातार चलने वाला बौद्ध एन्क्लेव है. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (ASI) द्वारा संरक्षित, इसमें लगभग हर दीवार पर बेशकीमती थंका, मैन्युस्क्रिप्ट, मूर्तियाँ और म्यूरल बने हुए हैं, जो इसके ऐतिहासिक महत्त्व को प्रदर्शित करते हैं, हालाँकि 1975 के भूकंप के बाद कुछ स्ट्रक्चर को रेस्टोरेशन की ज़रूरत है. 14वें दलाई लामा ने 1983 और 1996 में यहां कालचक्र दीक्षा दी थी, जिससे दुनिया भर के तीर्थयात्री इसके नौ मंदिरों में आते थे.

लामायुरू मठ

लद्दाख के सबसे बड़े और सबसे पुराने गोम्पा में से एक, दूर मूनलैंडस्केप इलाके में यह जगह कभी 400 बौद्ध भिक्षुओं की शरणस्थली थी, अब यहां लगभग 150 बौद्ध भिक्षु रहते हैं. इसकी शुरुआत रिनचेन ज़ंगपो के ज़माने से हुई, जिसे बाद में ड्रिकुंग काग्यू और गेलुग्पा संप्रदायों ने अपना लिया, यहां असली पांच इमारतों के बचे हुए हिस्से आज भी दिखाई देते हैं. घाटी की शानदार सेटिंग और पुराने प्रार्थना चक्र इसे उन लोगों के लिए खास बनाते हैं जो शांति और एकांत चाहते हैं.

अलची मठ

रिनचेन ज़ंगपो के बनाए 108 मठों में से एक, लद्दाख में अलची में 11वीं सदी की शानदार कश्मीरी स्टाइल की दीवार पेंटिंग और मूर्तियां हैं. बड़े तिब्बती स्कूलों से पहले, यह कदम्पा और गेलुग्पा से जुड़ा हुआ था, और इसके तीन मुख्य मंदिरों में शुरुआती दुर्लभ वज्रयान कला को बचाकर रखा गया था. पहाड़ी चोटी वाले मठों के उलट, नदी के किनारे होने की वजह से यहाँ पहुँचना आसान है. यहां आप बारीक भित्तिचित्र देख सकते हैं, जिन्होंने इस इलाके में बौद्ध धर्म को संस्थागत बनाया. 

ये मठ खराब मौसम के बीच तिब्बती बौद्ध वंश को बनाए रखने में हिमालय की भूमिका को दिखाते हैं. अगर आप भी आध्यत्मिक खोज, प्राचीन इतिहास को जानने के इच्छुक और सुकून की तलाश में हैं, तो ये मठ आपका अगला ट्रैवेल डेस्टिनेशन बन सकते हैं. 

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