Saphala Ekadashi 2025: पौष माह में आने वाली एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है, हर एकादशी की तरह सफला एकादशी भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती है. मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत रखता है, उसके सारे पापो का नाश होता है और भगवान विष्णु जी की कृपा भी बनी रहती है. सफला एकादशी के दिन व्रत कथा भी जरूर पढ़नी चाहिए इसके बिना एकादशी का व्रत पूरा नहीं माना जाता है. आइये पढते हैं सफला एकादशी व्रत कथा
सफला एकादशी के दिन शुभ मुहूर्त ((Saphala Ekadashi Shubh Muhurat)
ब्रह्म मुहूर्त:- सुबह 05 बजकर 17 मिनट से सुबह 06 बजकर 12 मिनट तक
अभिजित मुहूर्त:- सुबह 11 बजकर 56 मिनट से दोपहर 12 बजकर 37 मिनट तक
विजय मुहूर्त:- दोपहर 02 बजे से दोपहर 02 बजकर 41 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त:- शाम 05 बजकर 24 मिनट से शाम 05 बजकर 51 मिनट तक
निशिता मुहूर्त:- रात 11 बजकर 49 मिनट से देर रात 12 बजकर 44 मिनट तक, दिसम्बर 16
सफला एकादशी व्रत की कथा (Saphala Ekadashi Vrat Ki Kahani)
पौराणिक कथा के अनुसार, चम्पावती नाम की एक नगरी में महिष्मान नाम का राजा था, उसके चार पुत्र थे और उन सब में से बड़ा राजपुत्र लुम्पक महापापी था, वो परस्त्री और वेश्यागमन तथा दूसरे बुरे कामों में अपने पिता का धन नष्ट किया करता था. इतनी ही नहीं देवता और बाह्मण की निंदा करता था. ऐसे में जब राजा महिष्मान को अपने बड़े पुत्र के कुकर्मों का पता चला तो, उसने उसे राज्य से निकाल दिया, जिसके बाद राजा का बड़ा पुत्र सोचने लगा की वो कहा जाए और क्या करें? इतना सोचने के बाद उसने चोरी करने का फैसला किया, दिन में वह अपना समय वन में रहकर काटता और रात में अपने पिता की नगरी में चोरी करने जाता. इतनी ही नहीं प्रजा को तंग करता और मारपिट जैसा कुकर्म करता. राजा का बेटा वन में रहकर पशु आदि को मारकर खाने लगा. राजा के बेटे की ऐसी हरकत से सभी लोग भयभीत हो गए. नागरिक और राज्य के कर्मचारी उसे पकड़, लेकिन राजा के भय से उसे छोड़ देते. वन में एक प्राचीन विशाल पीपल का वृक्ष था, जिसकी लोग पूजा करते थे और उसी वृक्ष के नीचे वह महापापी लुम्पक में अपना रहने का स्थान बनाया था. कुछ समय पश्चात पौष कृष्ण पक्ष की दशमी आई और उस दिन राजा का बेटा वस्त्रहीन होने की वजह से और शीत के चलते सारी रात सो नहीं सका, उसके हाथ-पैर ठंड से अकड़ गए और सूर्योदय होते-होते वो मूर्छित हो गया, लेकिन दूसरे दिन एकादशी को मध्याह्न के समय सूर्य की गर्मी से उसकी मूर्छा दूर हुई. गिरता-पड़ता वह भोजन की तलाश में निकला, लेकिन पशुओं को मारने के लिए उसमें ताकत नहीं थी, तो उसने नीचे गिर हुए फल उठाकर खाए और वापस पीपल वृक्ष के नीचे आ गया और उस समय तक भगवान सूर्य अस्त हो चुके थे. जिसके बाद वो घबरा गया और वृक्ष के नीचे फल रखकर कहने लगा- हे भगवन! अब ये फल आपको अर्पण है. आप ही तृप्त हो जाइए. राजे के बेटे को उस रात्रि के दिन भी दु:ख के कारण नींद नहीं आई. ऐसे में राजा के बेटे के उपवास और जागरण से भगवान अत्यंत प्रसन्न हो गए और उसके सारे पाप नष्ट हो गए, जिसके बाद दूसरे दिन प्रात: एक अतिसुंदर घोड़ा अनेक सुंदर वस्तुअओं से सजा हुआ उसके सामने आकर खड़ा हो गया और उसी दौरान आकाशवाणी हुई कि हे राजपुत्र! श्रीनारायण की कृपा से तेरे सभी पापों का नाश हो गया है, अब तू अपने पिती के पास जा सकता है और राज्य प्राप्त कर सकता है. इस आकाशवाणी को सुनने के बाद राजा का बेटा दिव्य वस्त्र धारण करके भगवान आपकी जय हो! के नारे लगाता हुआ अपने पिता के पास गया, उसके पिता ने भी अपने बेटे से प्रसन्न होकर उस पर राज्य का भार सौंप दिया और स्वयं वन के रास्ते चल दिए. वहीं लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगा और उरका पूरा परिवार भगवान नारायण का परम भक्त हो गया. अत: जो मनुष्य सफला एकादशी का व्रत करता है और विधि विधान से भगवान नारायण की भक्ति करता है उसे अंत में मुक्ति मिलती है.
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