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रेंगती हुई विरासत, भारत की वो ‘टॉय ट्रेन’ जिसकी सुस्ती ही बनी उसकी सबसे बड़ी पहचान!

भारत की सबसे धीमी ट्रेन (Slowest train in India) में से एक जिसे प्यार से 'ऊटी टॉय ट्रेन' (Ooty Toy Train)भी कहा जाता है. यह ट्रेन महज 9 से 12 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने के लिए पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा मशहूर है.

Written By: Darshna Deep
Last Updated: December 18, 2025 15:35:20 IST

Slowest Train In India: भारत की सबसे धीमी ट्रेन का खिताब नीलगिरी माउंटेन रेलवे (NMR) के पास है, जिसे प्यार से ‘ऊटी टॉय ट्रेन’ भी कहा जाता है. दरअसल, यह ट्रेन तमिलनाडु के मेट्टुपालयम से ऊटी (उधगमंडलम) के बीच आज भी चलती है.  जहां, आज दुनिया बुलेट ट्रेन की बात कर रही है, वहीं यह ट्रेन महज 9 से 12 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने के लिए पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा मशहूर है. 

116 साल पुराना विरासत इंजन

नीलगिरी माउंटेन रेलवे की शुरुआत ब्रिटिश काल में साल 1908 में की गई थी. जिससे आज भी इस रास्ते पर मुख्य रूप से 110 से 116 साल पुराने ‘X’ क्लास के स्टीम इंजन (भाप इंजन) का इस्तेमाल किया जाता है. जानकारी के मुताबिक, ये इंजन न सिर्फ भारतीय रेलवे की शान हैं, बल्कि इंजीनियरिंग का एक अनूठा नमूना भी पेश करती है. साथ ही इसे अपनी इसी ऐतिहासिक विरासत के की वजह से UNESCO द्वारा विश्व धरोहर (World Heritage Site) में भी घोषित किया गया है. 

इतनी धीमी क्यों है यह ट्रेन?

ऐसा कहा जाता है कि, ट्रेन की धीमी गति कोई तकनीकी खराबी नहीं, बल्कि इसकी एक अलग ही मजबूरी है. जिसमें खड़ी चढ़ाई, रैक एंड पिनियन सिस्टम को पूरी तरह से शामिल किया गया है. 

खड़ी चढ़ाई

दरअसल, यह ट्रेन केवल 46 किलोमीटर के सफर में समुद्र तल से 330 मीटर की ऊंचाई से शुरू होकर 2 हजार 200 मीटर की ऊंचाई तक पहुँच जाती है. 

रैक एंड पिनियन सिस्टम

इसके अलावा यह भारत की एकमात्र ऐसी रेलवे है जो ‘रैक एंड पिनियन’ (Rack and Pinion) सिस्टम का इस्तेमाल करने में विश्वास रखती है. इसमें पटरी के बीच में दांतों वाली एक अतिरिक्त रेल होती है, जिस पर इंजन के नीचे लगा गियर फंसकर चलता है, ताकि ट्रेन खड़ी चढ़ाई पर पीछे न फिसल सके. 

क्या है रोमांचक सफर के मुख्य आकर्षण के केंद्र?

मेट्टुपालयम से ऊटी तक का 5 घंटे का यह सफर किसी जादू से कम नहीं लगता है. सबसे पहले तो, यह ट्रेन 16 सुरंगों, 250 पुलों और लगभग 208 घुमावदार मोड़ों से होकर गुजरती है. इतना ही नहीं, ट्रेन इतनी धीमी चलती है कि यात्री कभी-कभी उतरकर साथ चल सकते हैं और फिर से चढ़ सकते हैं. लेकिन, ऐसा नहीं करना चाहिए. तो वहीं, दूसरी तरफ कोयले से चलने वाले इंजन की सीटी और उसके निकलने वाले धुएं यात्रियों को एक शताब्दी पीछे ले जाने का ऐहसास दिलाती है.

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