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किशोरों में बढ़ रहा Stress, कहीं आपका बच्चा भी तो नहीं है इसका शिकार

आज की पीढ़ी के किशोर भावनाओं को गहराई से समझते हैं, सहानुभूति रखते हैं और जटिल रिश्तों को संभालने में माहिर हो गए हैं. लेकिन एक अध्ययन के अनुसार वे मानसिक रूप से अधिक थके हुए हैं. चिंता, तनाव और लगातार थकान उन्हें घेर रही है.

Written By: Shivangi Shukla
Last Updated: December 19, 2025 17:03:34 IST

आज की पीढ़ी के किशोर भावनाओं को गहराई से समझते हैं, सहानुभूति रखते हैं और जटिल रिश्तों को संभालने में माहिर हो गए हैं. लेकिन एक अध्ययन के अनुसार वे मानसिक रूप से अधिक थके हुए हैं. चिंता, तनाव और लगातार थकान उन्हें घेर रही है. 
सोशल मीडिया की बाढ़, शैक्षणिक दबाव, सफल होने का पीयर प्रेशर ने उनकी मानसिक ऊर्जा को बुरी तरह प्रभावित किया है. अध्ययनों से पता चलता है कि 70% से अधिक किशोर मानसिक थकावट महसूस करते हैं, जबकि उनकी भावनात्मक बुद्धिमत्ता पुरानी पीढ़ियों से कहीं आगे है.

सोशल मीडिया का दोहरा प्रभाव

इंस्टाग्राम, टिकटॉक और स्नैपचैट जैसे प्लेटफॉर्म्स किशोरों को विविध भावनाओं, मेंटल हेल्थ स्टोरीज और सामाजिक मुद्दों से रूबरू कराते हैं. वे जल्दी ही अवसाद, एंग्जायटी या ट्रॉमा को पहचान लेते हैं और दोस्तों को सपोर्ट करते हैं. यह उन्हें भावनात्मक रूप से परिपक्व बनाता है. लेकिन लगातार स्क्रॉलिंग डोपामाइन का लूप बनाती है, जो नींद की कमी करता है और FOMO (फियर ऑफ मिसिंग आउट) के माद्यम से तनाव बढ़ाता है. रातोंरात वायरल ट्रेंड्स फॉलो करने का दबाव, शॉर्टकट से फेम पाने की इच्छा मानसिक थकान का बड़ा कारण है. एक सर्वे में 60% किशोरों ने बताया कि सोशल मीडिया से वे ‘हमेशा ऑन’ महसूस करते हैं.

शैक्षणिक और सामाजिक दबाव

कोचिंग सेंटरों की होड़, बोर्ड एग्जाम्स और करियर की चिंता ने किशोरों को जिम्मेदार और परिपक्व बनाया है, लेकिन सफल होने का एक अतिरिक्त प्रेशर भी डाला है. समाज और पेरेंट्स का दबाव भी बच्चों पर बढ़ रहा है. हर हाल में सफल होने की होड़ और पीछे न छूटने का दबाव बच्चों पर हावी होता जा रहा है.  परफेक्शनिज्म का जाल उन्हें फंसा रहा है. हर सब्जेक्ट में 95% से कम नंबर बच्चों और पेरेंट्स दोनों को असफलता लगता है. कोचिंग क्लासेस और ट्यूशन के बीच बच्चों का बचपन खोता जा रहा है. हर शाम स्कूल-ट्यूशन के बाद बच्चे गहरी थकान महसूस करते हैं, क्योंकि उन्हें रिकवरी का समय ही नहीं मिलता. 

डिजिटल दुनिया और महामारी का असर

कोविड-19 ने ऑनलाइन क्लासेस को नॉर्मल बना दिया, जो फोकस और अनुशासन सिखाती हैं लेकिन ज्यादा स्क्रीन टाइम से ब्रेन फॉग, सिरदर्द और एकाग्रता की कमी होती है. वर्चुअल सपोर्ट ग्रुप्स से वे इमोशनली मैच्योर लगते हैं, पर रियल-लाइफ कनेक्शन की कमी बच्चों में अकेलापन बढ़ा रही है. हाइपरकनेक्टेड होने के बावजूद, 50% किशोर अकेलापन महसूस करते हैं, जो मानसिक थकावट को दोगुना करता है.

समाधान के व्यावहारिक उपाय

इस दुविधा से निपटने के लिए रोज 1-2 घंटे स्क्रीन-फ्री टाइम जरूरी है. बच्चों के साथ वॉक या मेडिटेशन करें या किसी हॉबी को एन्जॉय करें. स्पोर्ट्स या आर्ट थेरेपी से उनकी एनर्जी रिचार्ज होगी. पैरेंट्स खुली बातचीत बढ़ाएं, बिना जजमेंट के उनकी बातों को सुनें. स्कूल्स समय-समय पर मेंटल हेल्थ काउंसलिंग और योगा सेशन ऑर्गेनाइज करें. नींद को प्राथमिकता दें, रात 10 बजे के बाद फोन न इस्तेमाल करने दें. 

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