Skanda Sashti Significance: पौष माह की षष्ठी तिथि के दिन स्कंद षष्ठी व्रत किया जाता है, इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र और और भगवान गणेश के भाई भगवान स्कंद की पूजा होती है. जिन्हें मुरुगन, कार्तिकेयन और सुब्रमण्य के नाम से भी जाना जाता है. आइये जानते हैं यहां कब है पौष स्कंद षष्ठी व्रत? सही पूजा विधि और इस व्रत का महत्व
24 या 25 दिसंबर कब है पौष स्कंद षष्ठी व्रत?
हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह की षष्ठी तिथि 25 दिसंबर के दिन सुबह 02 बजकर 13 मिनट से शुरू हो रही है, जो अगले दिनर 26 दिसंबर 2025 को 02 बजकर 13 मिनट समाप्त होगी, इसलिए उदया तिथि के अनुसार 25 दिसंबर को स्कंद षष्ठी व्रत रखा जाएगा. यह व्रत खास तौर पर दक्षिण भारत, श्रीलंका और दुनिया भर में तमिल समुदायों में की जाती है.
स्कंद षष्ठी के दिन किस देवता की पूजा होती है?
स्कंद एक लोकप्रिय हिंदू देवता हैं, जिनकी मान्यता तमिल हिंदुओं के बीच काफी ज्यादा. भगवान स्कंद को युद्ध, जीत और ज्ञान के देवता के रूप में पूजा जाता है और उनके रूप को हमेशा भाला (वेल) पकड़े हुए दिखाया जाता है, जो अज्ञान और बुरी शक्तियों को नष्ट करने की क्षमता का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान मुरुगन अपनी युवा ऊर्जा, बहादुरी से कई राक्षसी शक्तियों के खिलाफ लड़ाई पर जीत हासिल की है.
क्यों किया जाता है स्कंद षष्ठी व्रत?
भगवान मुरुगन को सर्वोच्च ज्ञान और आत्मज्ञान का प्रतीक माना जाता है. भक्त उनकी पूजा मुश्किलों से उबरने, व्यक्तिगत और पेशेवर कामों में जीत हासिल करने, सुखी और समृद्ध जीवन के लिए और सफलता के रास्ते में आने वाली नकारात्मकता को दूर करने के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं, इसलिए स्कंद षष्ठी व्रत किया जाता है.
स्कंद षष्ठी व्रत की विधि
स्कंद षष्ठी व्रत की अवधि सूर्योदय से शुरू होती है और अगले दिन सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद समाप्त होती है। सुबह जल्दी उठकर स्नान करें, पूजा घर को साफ करें और वहा भगवान कार्तिकेय की मूर्ति स्थापना करें, उन्हे पंचामृत स्नान, चंदन, फूल, दीप, धूप अर्पण, फल-मिठाई का भोग लगाना, मंत्र जाप (जैसे “ॐ श्री शरवणभवाय नमः”) करें. साथ ही भगवान कार्तिकेय की आरती पढ़ें साथ ही व्रत के दौरान फलाहार या निराहार रहकर कथा पाठ करना और अगले दिन प्रसाद से पारण करना महत्वपूर्ण है.