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पहला विश्व कप जीतने के बाद भी कंगाल था BCCI, बैट तक खरीदने के लिए नहीं होते पैसे; खिलाड़ियों को करनी पड़ती थी 9-5 की जॉब

आज BCCI का पे स्ट्रक्चर एक सोफिस्टिकेटेड मल्टी-टियर्ड सिस्टम है. सालाना प्लेयर कॉन्ट्रैक्ट में एक "रिटेनर" (गारंटीड सैलरी) मिलती है जबकि हर खेले गए गेम के लिए मैच फीस उसके ऊपर दी जाती है.

Written By: Divyanshi Singh
Last Updated: 2025-12-29 11:24:46

Indian Cricket: एक ऐसी संस्था जो न तो कोई प्रोडक्ट बेचती है न स्टॉक मार्केट में लिस्टेड है, न ही इन्वेस्टर कॉल करती है. फिर भी यह संस्था भारत की सबसे बड़ी कंपनियों से मुकाबला कर रही है. हम बात कर रहे हैं BCCI यानी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की जिसने क्रिकेट को सिर्फ़ एक खेल से कहीं ज़्यादा, एक बिज़नेस एम्पायर बना दिया है. लेकिन BCCI शुरू से ही ऐसा नहीं था तो चलिए जानते हैं कि कैसे BCCI ने इंडियन क्रिकेट को कैसे बदला? 

90 के दशक में क्रिकेट

90 के दशक में क्रिकेट एक पैशन था लेकिन सेटल होने का मतलब इंजीनियरिंग की डिग्री और IT कॉरिडोर में नौकरी था.  कुछ साल पहले 1983 की एक धुंधली सी तस्वीर वायरल हुई थी. यह इंडियन टीम के उन सदस्यों की पे-स्लिप थी जिन्होंने अभी-अभी वर्ल्ड कप जीता था जिसमें महीनों बाद पाकिस्तान के खिलाफ खेले गए एक एग्जीबिशन मैच की उनकी कमाई का ब्यौरा था.

खिलाड़ियों की मैच फीस

IPL ऑक्शन में पली-बढ़ी पीढ़ी के लिए ये आंकड़े चौंकाने वाले थे. हर खिलाड़ी को 1,500 रुपये मैच फीस के साथ तीन दिनों के लिए 200 रुपये डेली अलाउंस दिया जाता था  यानी हर खिलाड़ी के लिए कुल 2100 रुपये. महंगाई के हिसाब से यह एक मॉडर्न टॉप-टियर इंग्लिश विलो बैट की कीमत भी नहीं निकाल पाता. 1983 की जीत के बाद BCCI खुद इतनी कैश की तंगी में थी कि वह खिलाड़ियों को इनाम नहीं दे सकती थी. मशहूर सिंगर लता मंगेशकर को टीम के बोनस के लिए फंड जुटाने के लिए दिल्ली में एक कॉन्सर्ट करना पड़ा.

यह कोई अजीब बात नहीं थी. यह दशकों से इंडियन क्रिकेट की आर्थिक सच्चाई थी. इंडिया के लिए खेलने से इज्ज़त, ट्रैवल और देश में तारीफ तो मिलती थी  लेकिन सिक्योरिटी नहीं. यहां तक ​​कि सबसे बड़े नामों को भी अपने परिवार को चलाने के लिए नौकरियों की ज़रूरत थी वे उन एम्प्लॉयर्स पर निर्भर थे जो चुपचाप इंडियन क्रिकेट को अंडरराइट करते थे. सीनियर नेशनल टीम के खिलाड़ी बैंकों, रेलवे या पब्लिक सेक्टर यूनिट्स में काम करते थे और टूर के बीच अटेंडेंस कार्ड पंच करते थे.

करनी पड़ती थी 9-5 की नौकरी

गावस्कर ने खुद इस अनिश्चितता के बारे में खुलकर बात की है. 2021 में सोनी स्पोर्ट्स नेटवर्क के एक ब्रॉडकास्ट के दौरान अपने दौर के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा “अगर हमने टेस्ट क्रिकेट में अच्छा परफॉर्म नहीं किया होता तो हम 9-5 की नौकरी पर वापस चले जाते.” इंडियन क्रिकेटरों की पूरी पीढ़ी के लिए इंटरनेशनल सफलता ने इज़्ज़त और स्टेबिलिटी दी  लेकिन शायद ही कभी ऐसी फाइनेंशियल सिक्योरिटी मिली जिससे वे क्रिकेट से आगे की ज़िंदगी के बारे में सोचना बंद कर सकें. तब भी क्रिकेट एक नेशनल जुनून था. यह बस एक प्रोफेशन नहीं था.

पैसे देने से पैसे मिलने तक

यह बड़ा बदलाव बोर्डरूम में शुरू हुआ. दशकों तक BCCI को असल में मैच टेलीकास्ट करने के लिए स्टेट ब्रॉडकास्टर, दूरदर्शन को पैसे देने पड़ते थे. लॉजिक यह था कि बोर्ड खेल को प्रमोट करने के लिए एयरटाइम खरीद रहा था.

फिर जगमोहन डालमिया आए. 90 के दशक की शुरुआत में एडमिनिस्ट्रेटर को एहसास हुआ कि बोर्ड कोई भिखारी नहीं है. यह देश के सबसे कीमती कंटेंट का मालिक है. वह इस लड़ाई को कोर्ट तक ले गए और आखिरकार ब्रॉडकास्टिंग पर सरकार की मोनोपॉली को तोड़ दिया. 1993 में BCCI ने इंडिया-इंग्लैंड सीरीज़ के राइट्स ट्रांसवर्ल्ड इंटरनेशनल को $550,000 में बेच दिए.

2000 का दशक आते-आते नंबर आसमान छू रहे थे. बोर्ड टेलीकास्ट के लिए पेमेंट करने से लेकर अरबों डॉलर की डील साइन करने तक पहुंच गया. ब्रॉडकास्ट रेवेन्यू का यह आना ही वह फ्यूल था जिसने BCCI को दुनिया की सबसे अमीर स्पोर्टिंग बॉडी बना दिया जिससे उसे आखिरकार खिलाड़ियों के साथ इनाम शेयर करने का मौका मिला.

आज BCCI का पे स्ट्रक्चर एक सोफिस्टिकेटेड मल्टी-टियर्ड सिस्टम है. सालाना प्लेयर कॉन्ट्रैक्ट में एक “रिटेनर” (गारंटीड सैलरी) मिलती है जबकि हर खेले गए गेम के लिए मैच फीस उसके ऊपर दी जाती है.

सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट की शुरुआत

असली फाइनेंशियल टर्निंग पॉइंट 2004 में आया जब BCCI ने सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट शुरू किए जिससे खिलाड़ियों को पहली बार बोर्ड के बढ़ते खजाने से सीधे फायदा हुआ. पहली बार चुने हुए इंडिया के खिलाड़ियों को सालाना रिटेनर की गारंटी दी गई चाहे उन्होंने कितने भी मैच खेले हों. तब स्लैब मामूली रखे गए थे. इसमे तीन स्लैब 50 लाख , 35 लाख और 20 लाख रुपये थे.

आज के हिसाब से ये नंबर कम लगते हैं. लेकिन उस समय ये बदलाव लाने वाले थे. सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट का मतलब सिक्योरिटी था. इसका मतलब था कि कोई खिलाड़ी चोटों सिलेक्शन में कमी या पैरेलल नौकरी की चिंता किए बिना क्रिकेट पर फोकस कर सकता था. यह वह पल था जब इंडियन क्रिकेट एम्प्लॉयर्स द्वारा सब्सिडी वाला शौक बनना बंद कर दिया और अपने कोर वर्कफोर्स को बनाए रखने वाली इंडस्ट्री की तरह काम करने लगा.

इस समय में मैच फीस अभी भी कम थी टेस्ट के लिए लगभग 2 लाख रुपये मिलते थे ODI के लिए थोड़े कम लेकिन कॉन्ट्रैक्ट ही एंकर बन गया. पहली बार इंडिया कैप की एक बेस वैल्यू थी.

धीमी ग्रोथ बढ़ता कॉन्फिडेंस

अगले कुछ सालों तक बढ़ोतरी सावधानी से की गई यह दिखाता है कि बोर्ड अभी भी अपनी पॉपुलैरिटी से पैसे कमाना सीख रहा था. 2007-08 तक रिटेनर्स को ऊपर की ओर रिवाइज किया गया था.  

  • ग्रेड A: Rs 60 लाख
  • ग्रेड B: Rs 40 लाख
  • ग्रेड C: Rs 25 लाख

एक निचला ग्रेड D 15 लाख भी बीच-बीच में इस्तेमाल होता था. ये कोई हेडलाइन बनाने वाले बदलाव नहीं थे लेकिन इनसे एक ज़रूरी नियम बना.प्लेयर की वैल्यू का रेगुलर रिव्यू किया जाएगा. इंडियन क्रिकेट ने मान लिया था कि उसके प्लेयर्स की वैल्यू एक जैसी नहीं रहती.

IPL ने बदला खेल का इकोनॉमिक्स

साइकोलॉजिकल बदलाव 2010-11 में आया जब टॉप रिटेनर आठ अंकों में पहुंच गया. तब  इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) के दो सीजन पूरे हो चुके थे, जिसने खेल की इकोनॉमिक्स को बदल दिया जिससे साफ और सबके सामने यह पता चला कि ब्रॉडकास्टर, स्पॉन्सर और एडवरटाइज़र के लिए इंडियन क्रिकेटर कितने कीमती थे.

  • ग्रेड A: Rs 1 करोड़
  • ग्रेड B: Rs 50 लाख
  • ग्रेड C: Rs 25 लाख

Rs 1 करोड़ पार करना मायने रखता था.  इंडियन क्रिकेटर अब देश के ज़्यादा कमाने वाले प्रोफेशनल क्लास का पक्का हिस्सा बन गए थे. इंडिया के लिए खेलना अब सिर्फ़ इज्ज़त की बात नहीं थी यह पैसे के मामले में एलीट क्लास बन गया था.रिटेनर के साथ-साथ मैच फीस भी बढ़ी. अब एक टेस्ट मैच के लिए 7 लाख रुपये, एक ODI के लिए 4 लाख रुपये, एक T20I के लिए 2 लाख रुपये मिलते थे. 

रिटेनर्स को किया दोगुना

अगले दशक के बीच तक इंडियन क्रिकेट की स्थिति बहुत ज़्यादा बदल गई थी. IPL अपनी जगह बना चुका था. इंडिया का ब्रॉडकास्ट मार्केट बाकी सभी क्रिकेट खेलने वाले देशों से कहीं ज़्यादा बड़ा हो गया था.2016-17 में बोर्ड ने रिटेनर्स को दोगुना कर दिया.

  • ग्रेड A: Rs 2 करोड़
  • ग्रेड B: Rs 1 करोड़
  • ग्रेड C: Rs 50 लाख

बड़ा बदलाव

यह अब धीरे-धीरे इनाम देने के बारे में नहीं था. यह ताकत का एक स्टेटमेंट था. भारतीय खिलाड़ी सिर्फ़ नेशनल टीम के रिप्रेजेंटेटिव नहीं थे. वे ग्लोबल क्रिकेट इकॉनमी के सेंटर थे.फिर वह उछाल आया जिसने स्केल को पूरी तरह से बदल दिया. BCCI ने हायरार्की को फिर से डिज़ाइन किया और टॉप पर एक नई कैटेगरी आई जिसे A+ कहा गया.

  • A+: Rs 7 करोड़
  • A: Rs 5 करोड़
  • B: Rs 3 करोड़
  • C: Rs 1 करोड़

Rs 2 करोड़ से Rs 7 करोड़ तक की छलांग चौंकाने वाली थी. रातों-रात भारत के सबसे ज़रूरी ऑल-फॉर्मेट खिलाड़ियों की गारंटीड सालाना वैल्यू तीन गुना से ज़्यादा हो गई. यह पिछले सीज़न के रन या विकेट के बारे में नहीं था. यह किसी बड़ी बात को मानना ​​था. इंडियन क्रिकेटरों का एक छोटा ग्रुप वर्ल्ड क्रिकेट में सबसे कीमती लेबर फ़ोर्स बन गया था. उनकी मौजूदगी ने टेलीविज़न रेटिंग, एडवरटाइज़िंग रेट, स्पॉन्सरशिप वैल्यूएशन और यहां तक कि शेड्यूलिंग के फ़ैसलों को भी तय किया. इस पॉइंट से, इंडिया कैंप सिर्फ़ प्रेस्टीजियस ही नहीं थी  यह फ़ाइनेंशियली एलीट भी थी.

मैच फीस

रिटेनर हायरार्की में प्लेयर की जगह तय करते थे. मैच फीस लगातार बढ़ाई जाती थी ताकि यह पक्का हो सके कि बोर्ड के बढ़ते रेवेन्यू का फ़ायदा कॉन्ट्रैक्ट लिस्ट से आगे भी मिले. 2004 में मैच फीस मामूली थी. जो टेस्ट के लिए 2 लाख थी. वहीं वनडे के लिए 1.6-1.8 लाख थी. वहीं 2010 में ये टेस्ट के लिए 7 लाख थी. जबकि वनडे के लिए 4 लाख और टी-20 के लिए 2 लाख थी.अक्टूबर 2016 में टेस्ट फीस 15 लाख हो गई. जबकि वनडे फीस 6 लाख और टी-20 फीस 3 लाख हो गई.

2024 में बोर्ड ने टेस्ट क्रिकेट इंसेंटिव स्कीम के साथ एक और लेयर जोड़ी जिससे उन खिलाड़ियों के लिए एक सीज़न में भागीदारी के आधार पर कमाई कई गुना हो गई जो सिर्फ़ खेल का सबसे लंबा फ़ॉर्मेट खेलते थे. यह एक साफ़ संकेत था कि सबसे लंबा फ़ॉर्मेट फ़ाइनेंशियली सुरक्षित रहेगा. आज के खिलाड़ियों के लिए, मैच फ़ीस अब बोनस नहीं है. वे पहले से ही काफ़ी रिटेनर के ऊपर एक बड़ी इनकम का ज़रिया हैं.

IPL बनी ‘सोने की मुर्गी’

अगर BCCI को क्रिकेट की कॉर्पोरेट सुपरपावर कहा जाता है, तो IPL उसका टर्बोचार्ज्ड इंजन है. 2008 में लॉन्च हुआ IPL आज क्रिकेट की दुनिया का सबसे बड़ा इवेंट है. यह सिर्फ़ एक लीग नहीं है, बल्कि एक बिज़नेस मॉडल है जिसने दुनिया भर में क्रिकेट को बदल दिया है. IPL की वैल्यूएशन 2025 में बढकर लगभग  ₹1.56 लाख करोड़ तक हो गई है.और इसकी ब्रांड वैल्यू $3.9 बिलियन है.

IPL की ताकत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2023-2027 के लिए इसके मीडिया राइट्स ₹48,390 करोड़ में बेचे गए. डिज़्नी स्टार और वायकॉम18 ने मिलकर यह डील पक्की की जिससे IPL ग्लोबल स्पोर्ट्स इकॉनमी में टॉप पर पहुंच गया. इसके अलावा, IPL ने 2023 में ₹11,769 करोड़ का रिकॉर्ड रेवेन्यू कमाया, जिसमें ₹5,120 करोड़ का सरप्लस था. यह सरप्लस 116% की बढ़ोतरी दिखाता है, जो दिखाता है कि IPL कितना गेम-चेंजर है.

IPL की चमक सिर्फ़ भारत तक ही सीमित नहीं है. इसकी ताकत अब विदेशों में भी दिख रही है. IPL फ़्रैंचाइज़ी मालिकों ने UK क्रिकेट लीग, “द हंड्रेड” की चार टीमों में इन्वेस्ट किया है. उदाहरण के लिए मुंबई इंडियंस के मालिकों ने ओवल इनविंसिबल्स में 49% हिस्सेदारी खरीदी है, सनराइज़र्स हैदराबाद ने नॉर्दर्न सुपरचार्जर्स को पूरी तरह से खरीदा है, दिल्ली कैपिटल्स के पास सदर्न ब्रेव्स में 49% हिस्सेदारी है, और लखनऊ सुपर जायंट्स ने मैनचेस्टर ओरिजिनल्स में 70% हिस्सेदारी खरीदी है. इससे पता चलता है कि IPL की अपील अब ग्लोबल हो गई है.

आज IPL की वजह से दुनिया भर में बहुत सारी T20 लीग शुरू हो गई हैं लेकिन कोई भी इसका मुकाबला नहीं कर पाई है. BCCI और IPL ने मिलकर क्रिकेट को एक पुराने खेल से एक ग्लोबल बिज़नेस एम्पायर में बदल दिया है. आज, यह न सिर्फ़ भारत की सबसे ताकतवर स्पोर्ट्स बॉडी है, बल्कि एक ऐसा ब्रांड भी है जो पूरी दुनिया में चमकता है.

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