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Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha: आज जरूर पढ़ें विष्णु जी की पूजा में पौष पुत्रदा एकादशी के व्रत की कहानी, मिलेगा पूरा फल

Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha: आज पौष एकादशी है, जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है. आज के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी जी की पूजा होती है. मान्याता के अनुसार जो कोई भी आज पुत्रदा एकादशी का व्रत रखता है, उसे संतान सुख की प्राप्ती होती है और संतान के जीवन के सभी दुश खत्म हो जाते हैं. लेकिन पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत जब ही संपुर्ण माना जाता है, जब इस दिन व्रत की कहानी (Putrada Ekadashi Vrat Ki Kahani) सुनी जाए. आइये पढ़ते हैं यहां पौष पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा

Written By: Chhaya Sharma
Last Updated: December 30, 2025 00:17:43 IST

Pausha Putrada Ekadashi 2025: आज पौष एकादशी का व्रत किया जाएगा, जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है. हर एकादशी की तरह यह पौष पुत्रदा एकादशी व्रत भी बेहद खास माना जाता है. मान्यता के अनुसार, जो पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी की पूरे विधि विधान से पूजा करता है और व्रत रखता हैं, उसे संतान सुख की प्राप्ती होती है और संतान के जीवन के सभी दुश खत्म हो जाते हैं. लेकिन पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत जब ही संपुर्ण माना जाता है, जब इस दिन व्रत की कथा (Putrada Ekadashi Vrat Ki Katha) सुनी जाए. आइये पढ़ते हैं यहां पौष पुत्रदा एकादशी व्रत की कहानी

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Pausha Putrada Ekadashi Vrat ki kahani)

भगवान् श्रीकृष्ण ने पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व बताया है- पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर विधि विधान से व्रत करना चाहिए. ऐसा करने से सभी पाप खत्म होते है और मनोकामना पूरी होती है. बहुत समय पहले की बात है भद्वावती पुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे और उनकी रानी का नाम चम्पा था. रानी और राजा के पास सब कुछ था, लेकिन बस एक ही दुख था कि उनके कोई संतान नहीं थी. बहुत समय हो गया राजा को कोई वंशधर पुत्र नहीं प्राप्त हुआ. जिसके बाद दोनों पति-पत्नी की चिंता बढ़ने लगी. राजा के पितर भी राजा के इस दुख से दुखी थे, क्योंकि उन्हें भी चिंता थी कि राजा के बाद और कोई जो हम लोगों का तर्पण करेगा? एक दिन राजा घोड़े पर सवार वन में जा रहा था लेकिन राजा के महल में किसी को भी इस बात का पता नही था. राजा उस घने जंगल में भ्रमण करने लगा. मार्ग में कहीं सियार की बोली सुनाई पड़ी, तो कभी तो कहीं उल्लुओं की. अब दोपहर में राजा को भूख लगने लगी, जिसके बाद वह पानी लेने के लिए आस पास देखने लगे, जिसके बाद राजा को पास में ही उन्हें एक सरोवर दिखाई दिया, वहां मुनियों के बहुत-से आश्रम थे. यह देखते ही राजा का दाहिना नेत्र और दाहिना हाथ फड़कने लगा, जो उत्तम फलकी सूचना दे रहा था. इसके बाद राजा सरोवर के तटपर मुनियों के पास गया और उससे वंदना मांगने लगा. राजा ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और बोला मुनिदेव, आप कौन हैं और आप यहां क्यों आए हैं. सब सच-सच बताइए मुनि बोले-राजन -हमलोग विश्वेदेव हैं, यहां माघ स्रान के लिए आए हैं. हम आपसे प्रसन्न हुए हैं, आज ही ‘पुत्रदा’ नामकी एकादशी है, जो व्रत करने वाले मनुष्यों को पुत्र देती है. राजा ने कहा-अगर आप लोग प्रसन्न हैं तो मुझे पुत्र दीजिए. मुनि बोले- राजन् पुत्रदा एकादशीका व्रत बहुत विख्यात है. तुम आज इस उत्तम व्रत का पालन करो. महाराज ने कहा कि भगवान् केशव के प्रसाद से तुम्हें तेजस्वी पुत्र प्राप्त होगा. इस प्रकार विधि पूर्वक राजा ने व्रत किया. द्वादशी को इसका विधि-विधान से पारण किया. इसके फल स्वरूप रानी ने कुछ दिनों बाद गर्भ धारण किया वही नौ माह बाद राजा को बेहद सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई. इसी प्रकार जो भी एकादशी का व्रत  करता है, उसे संतान की प्राप्ति होगी और उसकी संतान के जीवन में चल रहे सभी संकट भी खत्म हो जाते हैं 

Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है. पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें. India News इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है.

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