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Massive Comeback Of BJP In UP: किसान, कामगार, कानून-व्यवस्था और कोविड मैनेजमेंट में सरकार हुई पास, मुजफ्फरनगर दंगों के चलते जनता को सपा-रालोद गठबंधन नहीं आया रास

India News Editor • LAST UPDATED : March 10, 2022, 7:26 pm IST

Massive Comeback Of BJP In UP

इंडिया न्यूज़, नई दिल्ली:
Massive Comeback Of BJP In UP: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections) में भाजपा (BJP) को मिले प्रचंड बहुमत (majority) ने साबित कर दिया है कि भाजपा सरकार (BJP government) को मतदाताओं ने किसान, कामगार, कानून-व्यवस्था और कोविड मैनेजमेंट में पास कर दिया है। इसके साथ ही यूपी के का बा का जबाब बाबा यानी योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के रूप में दिया है। महंगाई और बेरोजगारी का जनता ने चुनाव का मुद्दा माना ही नहीं।

भााजपा सरकारों का राशन और शासन भी मतदाताओं पर अपना असर छोड़ने में कामयाब रहा। इसके साथ ही यह चुनाव भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग पर मुहर लगाने वाला भी साबित हुआ और साथ ही सपा-रालोद की सोशल इंजीनियरिंग भी भाजपा की रणनीति के आगे परबान चढ़ने से पहले ही ठीक उसी तरह फ्लॉप हो गई जैसे 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा और कांग्रेस के गठबंधन की हुई थी।

सपा और रालोद का गठबंधन कबूल नहीं

माना जा रहा था कि यूपी विधानसभा चुनाव में किसान आंदोलन (kisaan aandolan) अपना प्रभाव जरूर दिखाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उसका सबसे बड़ा कारण यह रहा कि मतदाताओं ने सपा और रालोद गठबंधन को कबूल नहीं किया। जाट बाहुल्य इलाकों में इस गठबंधन पर लोगों ने 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों का हवाला देते हुए नाखुशी जाहिर भी की थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मतदाता अभी भी मुजफ्फरनगर दंगों में उस समय की सपा सरकार की भूमिका को भुला नहीं पाया है।

उस सरकार में सपा के मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति मतदाताओं को अभी भी डरा रही है। ऐसा नहीं है कि मतदाता महंगाई और बेरोजगारी से तंग नहीं हैं, तंग हैं, लेकिन उन्होंने फिर भी सपा की शर्त पर बदलाव की हिम्मत नहीं की। इसमें आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए कि यदि राष्ट्रीय पश्चिमी उत्तर में केवल अपने दम पर चुनाव लड़ता तो ज्यादा विधायक बनाने में कामयाब हो जाता।

कृषि कानून वापस लेना सही फैसला साबित हुआ

चुनाव के परिणाम इस ओर भी इशारा करते हैं भाजपा किसान आंदोलन से हुए डैमेज को समय के साथ कंट्रोल करने में कामयाब रही। इसमें सरकार की सबसे बड़ी समझदारी यह साबित हुई कि आंदोलन कर रहे किसानों पर बल प्रयोग करने के बजाय सरकार ने तीन नए कृषि कानून वापस लेना बेहतर समझा। कानून- व्यवस्था की जो लचर स्थिति सूबे में 2017 तक थी, आम मतदाता ने कहीं न कहीं उसमें सुधार होने की बात मानी है।

कोविड काल में लोगों के काम छूटे तो सरकार ने मुफ्त राशन उपलब्ध कराकर उस नुकसान की भरपाई करने का प्रयास किया, गरीब तबके के मतदाता ने चुनाव के रूप में अपना फैसला सुनाकर इस बात को माना है। ‌सियासी जानकार मानते हैं कि इस चुनाव में बसपा सूबे में सरकार बनाने के जज्बे के साथ नहीं लड़ी, इसका भी सीधा फायदा भाजपा को मिला। कहीं न कहीं भाजपा को एंटी इनकमबेंसी के चलते होने वाले नुकसान की भरपाई हाथी की सुस्त चाल ने पूरी करने का काम किया है।

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