India News ( इंडिया न्यूज), Santosh Kumar, Jharkhand News: झारखंड की सियासी हलचल इन दिनों राज्य के धार्मिक न्यास बोर्ड के फैसले के कारण तेज हो गई है।पिछले दिनों धार्मिक न्यास बोर्ड ने राज्य के 15 मंदिर प्रबंधन को नोटिस भेज कर मंदिर कमेटी भंग करने का फैसला लिया है जिसके अंतर्गत राजधानी रांची का ऐतिहासिक पहाड़ी मंदिर और मेन रोड स्थित महावीर मंदिर भी शामिल है। मंदिर ट्रस्ट का कहना है की सालों से जो परंपरा चली आ रही है उस परंपरा को खत्म करने की सरकार कोशिश कर रही है वर्तमान व्यवस्था के मुताबिक अब भी इन मंदिरों की कमेटी के प्रमुख के रूप में जिले का डीसी और एसडीओ के पास अधिकार होता है।
हिंदू धार्मिक न्यास बोर्ड की फैसले के खिलाफ राजधानी रांची में हिंदू संगठनों ने विरोध करते हुए एक मसाल जुलूस निकाला। हिंदू संगठन के लोगों का मानना है कि सरकार जानबूझकर सिर्फ हिंदू समुदाय को ही टारगेट कर रही है। राज्य में हेमंत सोरेन की सरकार है जिसको कांग्रेस पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल का समर्थन प्राप्त है। हिंदू संगठनों का कहना है की सरकार ने सिर्फ हिंदू धार्मिक न्यास बोर्ड का ही गठन किया है जिसमें मंदिरों को ट्रस्ट के अंदर किया जा रहा है इसका हम विरोध कर रहे हैं साथ ही हिंदू संगठनों ने यह भी सवाल उठाया है।
जिस तरह से मंदिर को न्यास बोर्ड के अंदर लिया जा रहा है क्या सरकार इस तरीके से चर्च या फिर मस्जिदों को भी न्यास बोर्ड के अंदर लेगी सरकार के इसी फैसले की वजह से सनातन धर्मावलंबी आहत है। न्यास बोर्ड के इस फैसले में रांची का महावीर मंदिर भी आ जाता है। महावीर मंदिर के महामंडलेश्वर ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि महावीर मंदिर का निर्माण 1939 में हुआ।
1974 से उनके द्वारा मंदिर में सेवा दी जा रही है परंतु अभी धार्मिक न्यास बोर्ड के आए फैसले से सबकुछ बदल जाएगा। मंदिर चलाने के लिए राजनीतिक लोग आ जायेंगे। इनका मकसद सनातन संस्कृति को टारगेट करना है। वहीं हिंदू धार्मिक न्यास बोर्ड के सदस्य राकेश सिन्हा का कहना है कि सबकुछ कानून के अनुसार हो रहा है । मंदिर कमिटी में सालों से बैठे लोग मंदिर का भला नहीं कर राजनीति कर रहे हैं। हमलोग नई कमिटी जो बनाएंगे उसका मकसद मंदिर का विकास होगा।
हालांकि राकेश सिन्हा यह तो मान रहे हैं कि जो पुरानी सभी कमिटियां हैं उनको इन लोगों ने भंग करने का फैसला किया है ।इन्हें लगता है कि जो लोग इन कमेटीयों में पहले थे वो मंदिर से ज्यादा अपना ध्यान रखते थे और साथ ही राजनीति में ज्यादा सक्रिय थे। लेकिन सवाल उठता है कि जो लोग नए आएंगे, जो नई कमेटी बनेगी क्या उसमें राजनीतिक लोग नहीं होंगे क्या उसमें जो लोग राजनीति से जुड़े होंगे उन्हें किसी भी तरीके की राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने का अधिकार नहीं होगा।
जो हिंदू संगठनों ने सवाल उठाए हैं उन सवालों का क्या? सिर्फ हिंदू मंदिरों को ही न्यास बोर्ड के अंदर क्यों लाया जा रहा है ? राज्य में सबसे ज्यादा चर्च है उनके लिए कोई न्यास बोर्ड क्यों नहीं बनाया गया ? राज्य के मस्जिदों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है। लाजमी है शक सनातन धर्मावलंबियों की जायज है अब देखना होगा कि सरकार सनातन धर्मावलंबियों की नाराजगी को किस तरीके से दूर करती है।
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