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Manoj Jha Poem: मनोज झा के कविता पर आनंद मोहन का बड़ा बयान, कहा- जीभ खींचकर सदन में उछालता

BY: Itvnetwork Team • LAST UPDATED : September 27, 2023, 8:07 pm IST
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Manoj Jha Poem: मनोज झा के कविता पर आनंद मोहन का बड़ा बयान, कहा- जीभ खींचकर सदन में उछालता

Manoj Jha Poem

India News (इंडिया न्यूज़) Manoj Jha Poem: जातिगत समाज राजनीति का एक “यक्ष प्रश्न” है क्योंकि इसे लोगों की पहचान से जोड़ा गया है। जातिवाद लोकतांत्रिक समाज की बड़ी बाधा है। लेकिन देश में वोट की राजनीति है, और जातिगत वोट हमेशा से भेदभाव दूर करने की जगह आबादी को आंदोलित करने और गोलबंद करने का एक बड़ा माध्यम भी है। बिहार में 15 फ़ीसदी आबादी उच्च जातियों की है। भाजपा और कांग्रेस का फोकस स्वर्ण जाती पर रहा है। हालांकि अब आरजेडी भी इसमें सेंधमारी कर रही है। राज्यसभा में आरजेडी सांसद मनोज झा के द्वारा ‘ठाकुर का कुआं’ पर की गई कविता से बिहार की राजनीति गरम है। राजपूत समाज गुस्से में हैं। मनोज झा पर समाजवादी का तमगा लगे ना लगे लेकिन वह ठाकुर विरोधी जरूर करार कर दिए गए हैं।

कुआं की कविता से आरजेडी में बवाल

राजपूत समाज के बड़े नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन ने तीखी टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि अगर मैं राज्यसभा में होता तो जीभ खींचकर सदन में उछाल देता। आरजेडी सांसद मनोज झा के ठाकुर की कुआं की कविता से आरजेडी में बवाल है। आनंद मोहन जहां जीभ खींचने की बात कर रहे हैं वहीं उनके बेटे चेतन आनंद जो आरजेडी के विधायक है, उन्होंने कहा कि मनोज झा ठाकुरों के विलेन हैं।

सवर्णों का वोट पाने के लिए उन्हें खुश करने की ज़रूरत

चेतन आनंद ने कहा कि मनोज झा ज्यादा समाजवादी बनते हैं तो अपने नाम के साथ झा को हटाए और पहले अपने भीतर के ब्राह्मण को मारें। आनंद मोहन बीते 16 सालों से सलाखों के पीछे थे। इसी साल 27 अप्रैल को जेल मैनुअल में बदलाव करके नीतीश सरकार ने इन्हें रिहा किया है। नीतीश जानते हैं कि बिहार में सुशासन बाबू की छवि की उतनी ज़रूरत नहीं है जितनी सवर्ण वोट पाने की ज़रूरत है। नीतीश कुमार ने राज्य के अंदर दलित और पिछड़े तबके के वोटों के लिए पहले ही सोशल इंजीनियरिंग कर ली है, अब सवर्णों का वोट पाने के लिए उन्हें खुश करने की ज़रूरत है। आनंद मोहन सिंह जैसे बाहुबली को रिहा कराना इस ओर बढ़ाया गया नीतीश का पहला कदम है।

आइए बताते है कि आनंद मोहन कौन हैं ?

जेपी आंदोलन की उपज आनंद मोहन की छवि बाहुबली की है। वह 18 साल की उम्र में जेपी आंदोलन में जेल गए थे। बाहर आने के बाद उन्होंने समाजवादी क्रांति सेवा का गठन किया था। बिहार के कोशी क्षेत्र में उन्होंने अपना वर्चस्व बढ़ाया था। 1990 में जनता दल ने इन्हें महेशी से टिकट दिया था। विधानसभा चुनाव में आनंद मोहन जीत गए थे। लेकिन केंद्र में बीपी सरकार में मंडल कमीशन लागू होने से आनंद मोहन ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और बिहार में वह आरक्षण विरोध का उग्र चेहरा बने। जनता दल से इस्तीफे के बाद उन्होंने 1993 में बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थापना की थी और तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव के खिलाफ उन्होंने मोर्चा खोल दिया।

आनंद मोहन की रिहाई का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित

बता दें कि साल 1994 आनंद मोहन के जीवन का सबसे टर्निंग पॉइंट था। जब 4 दिसंबर को बिहार पीपुल्स पार्टी के बाहुबली नेता छोटन शुक्ला की हत्या मुजफ्फरपुर में कर दी गई थी और 5 दिसंबर को उनके शव यात्रा के दौरान आनंद मोहन के इशारे पर गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की हत्या हुई। फिलहाल आनंद मोहन की रिहाई का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। यह याचिका दिवंगत कृष्णैया की पत्नी द्वारा दायर की गई है।

 

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