India News (इंडिया न्यूज),Women in Bihar Politics: राज्य के नगर सरकार में आधी आबादी का बोलबाला है। पंचायतों में अपनी राजनीतिक हुनर साबित करने के बाद अब महिलाएं नगर निकायों में भी मजबूती से काबिज होकर सरीके से सरकार चला रही हैं। सूबे के 19 नगर निगमों में 16 महिला महापौर और 11 महिलाएं उप-महापौर हैं। पटना नगर निगम की महापौर और उप-महापौर दोनों महत्वपूर्ण पदों पर महिलाएं काबिज हैं। राजधानी का नगर शासन पूरी मुस्तैदी से दोनों महिलाएं चला रही हैं।
राज्य में ऐसी दर्जनभर से अधिक नगर निगम क्षेत्र हैं, जहां महापौर और उप-महापौर दोनों प्रमुख पदों पर महिलाओं का कब्जा है। इसमें आरा, बेगूसराय, बेतिया, बिहारशरीफ, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया और सासाराम शामिल हैं।
राज्य के नगर निकायों में इस बार 6 हजार 106 पार्षद विजीय हुए। इसमें 2 हजार 653 पुरुष और 3 हजार 453 महिला पार्षद शामिल हैं। सभी नगर निगमों में 922 वार्ड पार्षद जीतकर आए, जिसमें 385 पुरुष और 537 महिलाएं शामिल हैं। इसके अलावा 10 मुख्य पार्षद में 17 महिला और 2 पुरुष के अलावा 19 उप-मुख्य पार्षद में 11 महिला एवं 8 पुरुष शामिल हैं।
इसी तरह नगर परिषद में 2 हजार 549 वार्ड पार्षद जीतकर आए, जिसमें 1094 पुरुष एवं 1455 महिलाएं शामिल हैं। इसी तरह 88 मुख्य पर्षद में 51 महिलाएं और 37 पुरुष के अलावा 88 मुख्य पर्षद में 51 महिला एवं 37 पुरुष शामिल हैं।
कुछ ऐसी ही स्थिति नगर पंचायत में भी दिखती है। 2 हजार 125 वार्ड पार्षद में 1160 महिला और 965 पुरुष शामिल हैं। इसी तरह 148 उप-मुख्य पार्षद में 82 महिलाएं एवं 66 पुरुष शामिल हैं। मुख्य पार्षद के 148 पदों में 89 महिलाएं तथा 59 पुरुष काबिज हैं। इस तरह सभी नगर निकायों में बड़ी संख्या में महिलाओं की मौजूदगी दिख रही है।
गौरतलब है कि 2005 में राज्य में नीतीश कुमार की सरकार के सत्ता में आने के अगले वर्ष यानी 2006 में महिला दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री ने पंचायतों एवं सभी स्तर के नगर निकायों में 50 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की थी। इस तरह का ऐतिहासिक फैसला करने वाला बिहार देश का पहला राज्य बन गया। इसके साथ ही पंचायत स्तर पर हुए चुनाव में महिलाओं ने अपना दम दिखाया और नारी शक्ति की ताकत ग्रामीण राजनीति में भी मजबूती से उभरकर सामने आई। आरक्षण की इसी बानगी का असर नगर निकायों में भी दिखने लगा और महिलाओं की भूमिका प्रभावी तरीके से सामने आने लगी। इसका प्रभाव आज ऊपरी स्तर तक देखने को मिल रहा है और महिलाएं अब महापौर और उप-महापौर के ओहदे तक पहुंचने लगी हैं।
अगर महिलाओं की स्थिति पंचायत स्तर पर देखें, तो इसमें लगातार सुधार आया है। 2001 में महिला मुखिया की संख्या महज 0.92 प्रतिशत थी, जिसमें निरंतर बढ़ोतरी दर्ज की गई और 2021 में यह बढ़कर 52.23 प्रतिशत हो गई है। इसी तरह जिला परिषद स्तर पर महिलाओं की स्थिति पर नजर डालें, तो 2021 में यह प्रतिशत 10.72 प्रतिशत था। यानी कुल 529 जिला परिषद प्रमुखों में सिर्फ 54 महिला प्रमुख थी। इनकी संख्या 2021 में बढ़कर 65.79 प्रतिशत हो गई। 532 जिला पर्षद प्रमुख में महिला प्रमुखों की संख्या 350 हो गई। पंचायत में महिला आरक्षण की यह व्यवस्था महिला क्रांति का ऐतिहासिक घोतक बनकर उभरा है।
महिला सशक्तिकरण की इस बेमिशाल बानगी का यह मॉडल देश के लिए नजीर बनकर उभरा और कई राज्यों ने इसे अपनाना शुरू कर दिया। कई राज्यों ने बिहार के इस मॉडल को अपनाया और इसे अपने यहां लागू किया। ग्रामीण सरकार में महिलाओं की दावेदारी बढ़ने का असर अब सीधे तौर पर सक्रिय राजनीति में भी दिखने लगा है। इसका प्रभाव विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भी पड़ने लगा है और अब राजनैतिक दल बड़ी संख्या में महिलाओं को टिकट देने में तवज्जों देने लगी हैं।