India News (इंडिया न्यूज), Medical Tourism In Budget 2025: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपना आठवां बजट पेश किया। अपने बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री ने कृषि, उद्योग, स्वास्थ्य और शिक्षा पर कई बड़े ऐलान किए हैं। इस बीच निर्मला सीतारमण ने मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा देने की भी बात कही है। वित्त मंत्री ने कहा कि निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में भारत में मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा दिया जाएगा।
दरअसल, जब किसी देश में रहने वाले लोग मेडिकल सहायता यानी इलाज के लिए दूसरे देश की यात्रा करते हैं, तो उसे मेडिकल टूरिज्म कहते हैं। पिछले कुछ सालों में मेडिकल टूरिज्म का चलन तेजी से बढ़ा है। कई देशों में इसे एक उद्योग के तौर पर भी देखा जाता है। मेडिकल टूरिज्म में सिर्फ इलाज ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य सेवा से जुड़े कई दूसरे पहलू जैसे यात्रा, आवास और इलाज के बाद की देखभाल भी शामिल है।
Medical Tourism In Budget 2025
कई देशों में इलाज का खर्च विकसित देशों के मुकाबले काफी सस्ता है। भारत, थाईलैंड, मलेशिया और मैक्सिको जैसे देशों में इलाज का खर्च अमेरिका या यूरोप के मुकाबले काफी कम है। यही वजह है कि ज्यादातर लोग इलाज के लिए इन देशों में आते हैं। इसकी वजह यह भी है कि कई देशों में नई मेडिकल तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे मरीजों को बेहतर इलाज मिल रहा है।
केंद्र सरकार लंबे समय से विकसित देशों की तरह भारत में भी मेडिकल टूरिज्म को बढ़ाने के लिए काम कर रही है। सिंगापुर, साउथ कोरिया और जर्मनी की तरह भारत में भी विश्वस्तरीय अस्पताल और डॉक्टर हैं- जहां विदेशी मरीजों को बेहतरीन इलाज मिलता है।
सीडीसी की रिपोर्ट के अनुसार, मेडिकल टूरिज्म में सबसे ज्यादा लोग कॉस्मेटिक सर्जरी, फर्टिलिटी ट्रीटमेंट, डेंटल केयर, ऑर्गन और टिश्यू ट्रांसप्लांटेशन और कैंसर का इलाज करवाते हैं। अब आपको बताते हैं कि किन देशों से लोग भारत में इलाज करवाने आते हैं।
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भारत में तकनीकी रूप से सक्षम अस्पताल, कुशल डॉक्टर और लाखों प्रशिक्षित नर्स हैं। हर साल लाखों विदेशी नागरिक इलाज के लिए मेडिकल टूरिज्म वीजा पर भारत आते हैं। भारत में इराक, अफगानिस्तान, मालदीव, ओमान, केन्या, म्यांमार और श्रीलंका से मरीजों की संख्या ज्यादा है।पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में सबसे ज्यादा लोग बोन मैरो ट्रांसप्लांट, लिवर ट्रांसप्लांट, बाईपास सर्जरी और घुटने की सर्जरी करवाने आते हैं।
भारत में इलाज का खर्च यूरोप और अमेरिका से करीब 30 फीसदी कम है। चिकित्सा सुविधाओं के मामले में भारत को दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे सस्ता माना जाता है। अमेरिका के मुकाबले भारत में मृत्यु दर भी कम है।
एक अनुमान के मुताबिक, भारत में बांझपन के इलाज का खर्च यूरोप या दूसरे देशों के मुकाबले एक चौथाई है। आईवीएफ और एआरटी थेरेपी के कारण ज्यादातर लोग भारत में ही इलाज करवाना पसंद करते हैं। इसके अलावा भारत विदेश से आने वाले मरीजों को ई-मेडिकल वीजा जैसी सुविधाएं भी देता है।
भारत में आईवीएफ फर्टिलिटी ट्रीटमेंट 1.50 से 3.50 लाख रुपये में हो सकता है। वहीं, फर्टिलिटी वर्ल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक- अमेरिका में यह इलाज 18000 डॉलर से शुरू होकर 25000 डॉलर तक जा सकता है, यानी भारतीय करेंसी में आईवीएफ ट्रीटमेंट का खर्च 15 से 21 लाख रुपये हो सकता है। वहीं, भारत में लिवर ट्रांसप्लांट का खर्च 20 लाख तक आ सकता है। लंदन में लिवर ट्रांसप्लांट में 48 हजार यूरो यानी 43 साल का समय लग सकता है।
सरकारी नीति थिंक टैंक नीति आयोग के मुताबिक, भारत में विदेशी पर्यटकों से होने वाली आय का एक बड़ा हिस्सा मेडिकल टूरिज्म से आता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2018 में इलाज के लिए भारत आने वाले विदेशियों की संख्या में करीब 350 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। चिकित्सा पर्यटन की दृष्टि से भारत में लोग इलाज के लिए बेंगलुरु, चंडीगढ़, दिल्ली, गुरुग्राम, मुंबई, जयपुर, कोलकाता और तमिलनाडु जैसे स्थानों पर आते हैं।
भारत के पर्यटन विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020-21 में मेडिकल टूरिज्म में भारत 46 देशों में 10वें स्थान पर था। मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप, अमेरिका और दूसरे विकसित देशों से पढ़ाई करके स्वास्थ्य विशेषज्ञ भारत आते हैं। भारतीय अस्पतालों में ज्यादातर नर्सिंग स्टाफ भी अंग्रेजी में बात करते हैं, जिसे विदेशी मरीज समझ पाते हैं।
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