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लोकसभा चुनाव 2024, कांग्रेस जातीय राजनीति के भरोसे उम्मीद में

Itvnetwork Team • LAST UPDATED : April 7, 2024, 7:16 pm IST

India News (इंडिया न्यूज़), Loksabha 2024, अजीत मेंदोला: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को उम्मीद है कि राजग सरकार का हश्र इस बार 2004 की तरह होगा। उस समय साइनिंग इंडिया का राग गाया जा रहा था। इस बार 400 पार का नारा लगाया जा रहा है। परिणाम इसके एकदम उलट आयेंगे। कांग्रेस को लग रहा है धर्म का तोड़ जाति की ही राजनीति है। इसलिए इस बार राजग बहुमत के करीब नहीं पहुंच पाएगी। राहुल गांधी का यह तर्क समझ से परे है, क्योंकि इस बार कांग्रेस न तो आक्रामक प्रचार करते दिख रही है और ना ही घोषणा पत्र में कांग्रेस ने ऐसी बात की जिससे संदेश जाए कि मुकाबला बराबरी का हो रहा है। सब कुछ औपचारिक जैसा दिख रहा है।

कांग्रेस चाहती तो घोषणा पत्र में आज के हिसाब से कुछ ऐसी घोषणाएं कर सकती थी जिसकी चर्चा होती। पता नहीं कांग्रेस को क्यों लगता है आरक्षण की राजनीति कर चुनाव जीता जा सकता है। जातीय जनगणना कराएंगे, आरक्षण की सीमा समाप्त करेंगे ऐसी बातें हैं जैसे अभी 90 का दशक चल रहा हो। सबसे अहम बात आरक्षण की राजनीति ने बीजेपी को हिंदुत्व की राजनीति करने का मौका दिया। 90 के दशक में मंडल कार्ड नहीं खेला जाता तो कमंडल की राजनीति इतनी तेजी से आगे नहीं बढ़ती। आज बीजेपी अयोध्या के भरोसे ही 400 पार की उम्मीद लगा रही है। ऐसे में कांग्रेस का जातीय कार्ड कितना कारगर होगा समय बताएगा।

  • कांग्रेस की योजनाएं कारगर नहीं
  • कांग्रेस का पूरा बोझ गांधी परिवार पर
  • कांग्रेस में जीत की भूख दिखती ही नहीं है
  • मोदी का विरोध करने पर पूरी ताक़त

कांग्रेस की योजनाएं कारगर नहीं

कांग्रेस ने किसानों को लुभाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गारंटी देेने का वादा किया है। महिलाओं को नौकरी में 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जायेगा आदि ऐसी घोषणाएं जरूर की हैं, जो लुभाने वाली दिखती हैं। लेकिन इनसे जीत की गारंटी नहीं जा दी सकती। वह भी तब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महिलाओं को रिझाने के लिए बीते दस साल में कई कदम उठा चुके हैं।

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कांग्रेस ने विकास के नाम पर कोई ऐसी बात नहीं की जिसकी चर्चा हो सके।मतलब मूलभूत सुविधाओं के लिए कांग्रेस ऐसा नया क्या करेगी जिससे जनता आकर्षित हो। कांग्रेस इस बार के चुनाव को देश के लोकतंत्र और संविधान की रक्षा वाला बता रही है। इस बात को कांग्रेस बीते एक डेढ़ साल से बोलती आ रही है। लेकिन कांग्रेस का यह नारा पिछले साल के आखिर में हुए राज्यों के चुनाव में नहीं चला।

कांग्रेस का पूरा बोझ गांधी परिवार पर

पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने शुक्रवार को घोषणा पत्र जारी करते हुए एक अहम बात जरूर बोली।खड़गे ने कहा कि कांग्रेस की गारंटियों को जब तक घर-घर नहीं पहुंचाया जाएगा तब तक इसका कोई मतलब नहीं हैं।खड़गे ने कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं से यह बात कही। अब सवाल यही है कि कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता क्या ऐसा करेंगे। क्योंकि कांग्रेस की मुख्य समस्या यही है कि पार्टी में संगठन बहुत कमजोर हो चुका है। राज्यों में हालत चिंता जनक है। केंद्र का संगठन भी कम असर कारक हो गया है। ले-दे कर पूरा बोझ गांधी परिवार को ही उठाना पड़ता है। पार्टी की हालत ठीक नहीं होने पर पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को स्वास्थ्य ठीक न होने के बाद भी फ्रंट पर आना पड़ा। कमजोर संगठन के चलते पार्टी में नेताओं का अभाव हो गया है। कांग्रेस इंडिया गठबंधन के चक्कर में ऐसे उलझी कि वह खुद आक्रामक नहीं हो पाई। कांग्रेस की इस चुनाव में कोई दिशा ही नहीं दिख रही है।खुद विपक्ष का नेतृत्व कर कांग्रेस को जहां आक्रामक दिखना चाहिए था उल्टा घटक दलों के चक्कर में उलझ गई।

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कांग्रेस में जीत की भूख दिखती ही नहीं है

आम आदमी पार्टी जैसे दल के साथ कांग्रेस खड़ी हो गई। अजीब सा इंडी गठबंधन है। दिल्ली में साथ हैं पंजाब में खिलाफ हैं। केरल और पश्चिम बंगाल में भी यही स्थिति है। बिहार और महाराष्ट्र में घटक दल कांग्रेस को हैसियत बता रहे हैं। इन हालात के चलते नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। अच्छा होता कांग्रेस अपने दम पर केवल यूपीए को ही आगे करते हुए ताकत से चुनावी मैदान में उतरती तो आज स्थिति अलग होती। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत तक ने अपनी पार्टी की रणनीति को लेकर सवाल उठाए हैं। उन्होंने जैसे कहा कि कांग्रेस में जीत की भूख दिखती ही नहीं है। नेताओं के हाव भाव से लगता भी है कि चुनाव से डर रहे हैं। जहां बीजेपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर तमाम बड़े नेता दर्जनों रैली कर चुके हैं, कांग्रेस एक दम सुस्त दिख रही है। शुक्रवार को दिल्ली के बाद शनिवार को जयपुर में गांधी परिवार ने रैली से पहली बार पार्टी के लिए मोर्चा संभाला।

मोदी का विरोध करने पर पूरी ताक़त

दोनों कार्यक्रमों से यह तो तय हो गया कि कांग्रेस जातीय राजनीति को आगे कर रही है। जबकि कांग्रेस के पूर्व के किसी भी प्रधानमंत्री और नेता ने जाति की राजनीती नहीं की। इंदिरा गांधी का तो नारा ही था न जात पर न पात पर मोहर लगेगी हाथ पर। राहुल गांधी ठीक इसका उल्टा चल रहे हैं। कांग्रेस के पास कांग्रेस शासित राज्यों में चल रही या चलाई गई कई योजनाएं थी जो चर्चा में आ सकती थी। इनमें सबसे अहम थी पुरानी पेंशन योजना बहाली, राजस्थान और छत्तीसगढ में चलाई गई गोबर खरीदने की योजना, सस्ते खाने की थाली। जैसे राजस्थान में 8 रुपए की खाने की थाली दी जाती थी। 25 लाख तक फ्री इलाज की बात की गई है। लेकिन नेता अपने भाषण में अपनी योजनाओं से ज्यादा प्रधानमंत्री मोदी पर हमले पर फोकस रख रहे है, जो बीजेपी को रास आता है। कांग्रेस के पास मौका था ओपीएस और स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाओं को ज्यादा उठाने का, लेकिन वह मौका चूकते हुए दिख रही है।

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