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सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, कानून में भी हुआ प्रावधान, वावजूद इसके 'छपाक' हर साल 150 लड़कियों का छीन रहा पहचान

Ashish kumar Rai • LAST UPDATED : December 15, 2022, 4:57 pm IST

इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : करीब 7 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने देश में एसिड पीड़िताओं के दर्द को समझा था। जस्टिस मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच ने एसिड अटैक रोकने के लिए स्पष्ट आदेश जारी किए थे। शीर्ष अदालत की इस सख्ती का असर दिखाई तो दिया है। अब एसिड अटैक के मामले पहले से कम हुए हैं। साथ ही ऐसे मामलों में कार्रवाई के लिए अलग से कानून में प्रावधान भी हुआ है। इसके बावजूद अब भी हर साल 150 से ज्यादा लड़कियां किसी मनचले या सिरफिरे की कांच की बोतल में भरे एसिड की बूंदों के ‘छपाक’ का शिकार हो जाती हैं। देश की राजधानी दिल्ली के द्वारका में 12वीं कक्षा की छात्रा पर बुधवार को हुआ एसिड अटैक इसी की एक बानगी भर है।

सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे सख्त आदेश

सुप्रीम कोर्ट बेंच ने 10 अप्रैल, 2015 को अपने आदेश में देश के सभी राज्यों को एसिड की खुलेआम बिक्री पर सख्ती से रोक लगाने का आदेश दिया था। साथ ही एसिड अटैक का शिकार होने वाली लड़कियों को 3 लाख रुपये की तत्काल आर्थिक मदद देना, दवाइयों से लेकर सर्जरी और अस्पताल में अलग कमरे तक की सुविधा के साथ मुफ्त इलाज मुहैया कराना, भविष्य में उसे सारी सुविधाएं पाने के लिए एसिड अटैक सर्वाइवर सर्टिफिकेट जारी करना और दोषियों को सख्त सजा देने के लिए कानून में प्रावधान करने का आदेश दिया था।

हालत में कोई बदलाव नहीं

देश में पिछले 5 साल यानी साल 2017 से 2021 तक एसिड अटैक के 1070 मामले सामने आए हैं। इसके उलट साल 2014 से 2018 के बीच 1483 महिलाओं पर एसिड से हमला किया गया था। साल 2017 से 2021 के बीच एसिड अटैक के मामलों में हर साल कमी दर्ज की गई है। साल 2017 में जहां एसिड अटैक के 244 मामले सामने आए थे, वहीं 2021 में इनकी संख्या घटकर 176 रह गई। हालांकि इन पांच साल में 324 केस ऐसे भी रहे, जिनमें एसिड अटैक की कोशिश की गई, लेकिन हमलावर असफल हो गए।

40% मामले पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में

एसिड अटैक के सबसे ज्यादा 239 मामले पश्चिम बंगाल में दर्ज किए गए हैं, जबकि दूसरे नंबर पर 193 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश रहा है। इन दोनों राज्यों में देश के 40% एसिड अटैक केस दर्ज हुए हैं। देश के अन्य किसी भी राज्य में एसिड अटैक के 100 मामले दर्ज नहीं हुए हैं, बल्कि 50 और 100 के बीच मामले वाले भी दो ही राज्य ओडिशा (53 केस) और केरल (50 केस) रहे हैं। देश की राजधानी दिल्ली में पिछले 5 साल के दौरान एसिड अटैक के 46 मामले सामने आ चुके हैं।

कानून में भी हो चुका है प्रावधान

एसिड अटैक पीड़िताओं को न्याय दिलाने के लिए IPC की धारा 326 में एक प्रावधान जोड़ा गया था। अब ये मुकदमे IPC की धारा 326A और धारा 326B के तहत दर्ज होते हैं। पहले धारा 326 के तहत एसिड अटैक में दोषी साबित होने पर उम्र कैद या 10 साल की सजा का प्रावधान था, लेकिन नए संशोधन के बाद जानबूझकर एसिड हमले से पीड़ित को नुकसान पहुंचने पर अपराध गैरजमानती माना जाएगा। इसमें उम्रकैद के साथ ही जुर्माने का भी प्रावधान है। जुर्माने की रकम पीड़िता को मिलेगी। एसिड अटैक की कोशिश के लिए धारा 326B के तहत कार्रवाई होती है। इसमें एसिड अटैक असफल रहने पर भी आरोपी को पांच साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। यह भी गैरजमानती धारा है।

सजा नहीं मिलने से कानून का खौफ नहीं

एसिड अटैक के मामलों में अदालतों से सजा मिलने की दर बेहद कम रही है। इसके चलते हमलावरों के हौसले बुलंद रहे हैं और सख्त कानून के बावजूद ऐसे मामले सामने आते हैं। लोकसभा में इस साल सरकार ने मानसून सत्र के दौरान NCRB Data पेश किया था, जिसमें साल 2018 से 2020 के बीच एसिड अटैक के 386 दर्ज मामलों में महज 62 लोगों को ही अदालत से सजा मिली है।

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