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Delhi Pollution Effects on Humans क्या वायु प्रदूषण की 'स्थाई चादर' लपेट चुका है दिल्ली

PUBLISHED BY: Amit Gupta • LAST UPDATED : December 8, 2021, 1:29 pm IST
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Delhi Pollution Effects on Humans क्या वायु प्रदूषण की 'स्थाई चादर' लपेट चुका है दिल्ली

Indian people walk on a street as heavy smogs covers New Delhi on November 8, 2017.
Delhi shut all primary schools on November 8 as pollution levels hit nearly 30 times the World Health Organization safe level, prompting doctors in the Indian capital to warn of a public health emergency. Dense grey smog shrouded the roads of the world’s most polluted capital, where many pedestrians and bikers wore masks or covered their mouths with handkerchiefs and scarves.
/ AFP PHOTO / DOMINIQUE FAGET (Photo credit should read DOMINIQUE FAGET/AFP/Getty Images)

Delhi Pollution Effects on Humans क्या वायु प्रदूषण की ‘स्थाई चादर’ लपेट चुका है दिल्ली

निर्मल रानी
अन्य विकासशील देशों की ही तरह भारत भी निरंतर वायु प्रदूषण (Air Pouuution) की चपेट में रहने वाले देशों की सूची में अपना नाम शामिल करा चुका है। ख़ास तौर पर दिल्ली व उसके आस पास का राष्ट्रीय राजधानी (NCR) क्षेत्र तो लगभग पूरा वर्ष और चौबीस घंटे घोर प्रदूषण की चपेट में रहने लगा है।
दिल्ली में हवाई जहाज़ से बाहर निकलते ही ऐसा महसूस होने लगता है कि आप किसी ज़हरीली गैस चैम्बर में प्रवेश कर चुके हैं। गत तीन दशकों से हालांकि एनसीआर में फैले इस प्रदूषण के लिये आँख मूँद कर हरियाणा-पंजाब के किसानों को ज़िम्मेदार ठहरा दिया जाता था। बताया जाता था कि फ़सल काटने के बाद खेतों में बची पराली को जलाने से फैलने वाला धुआंयुक्त प्रदूषण दिल्ली परिक्षेत्र को अपनी आग़ोश में लेता है।

वायु प्रदूषण बढ़ाने में पराली का योगदान 25-30%

केंद्र सरकार ने भी पूर्व में यही दावा था कि वायु प्रदूषण बढ़ाने में पराली (Pollution due to Parali) का योगदान 25-30% है। परन्तु पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय में इसी संबंध में चल रही एक सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार का ताज़ा दावा था कि प्रदूषण फैलाने में पराली का योगदान मात्र 10 प्रतिशत है। परन्तु साथ ही अपने लिखित हलफ़नामे में केंद्र ने यह दावा भी किया कि प्रदूषण में पराली का योगदान मात्र 4% ही है।

75 प्रतिशत वायु प्रदूषण उद्योग, धूल तथा  परिवहन जैसे तीन मुख्य कारण

देश की सर्वोच्च अदालत केंद्र के शपथ पत्र के अनुसार यह भी कह चुकी है  कि 75 प्रतिशत वायु प्रदूषण उद्योग, धूल तथा  परिवहन जैसे तीन मुख्य कारण के चलते है। जहां तक किसानों को प्रदूषण के लिये ज़िम्मेदार ठहराने का प्रश्न है तो इसे यूँ भी समझा जा सकता है कि किसान अपनी फ़सल का बचा हुआ कचरा अर्थात पराली आदि तो वर्ष में एक ही दो बार जलाते हैं जबकि दिल्ली का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तो लगभग पूरे वर्ष ही चौबीसों घंटे प्रदूषण की गिरफ़्त में रहता है?

एनसीआर की स्थिति विपरीत हो चुकी है

दिल्ली, फ़रीदाबाद, गुड़गांव, नोएडा, गाज़ियाबाद, सोनीपत आदि राजधानी के किसी भी निकटवर्ती क्षेत्र में चले जाइये, हर जगह वही गैस चैंबर जैसे हालात नज़र आते हैं। जहां आम लोग अपने मकानों के दरवाज़े व खिड़कियां इसलिये खोलते हैं ताकि ताज़ी व स्वच्छ हवा का घरों में प्रवेश हो सके वहीं एनसीआर की स्थिति ठीक इसके विपरीत हो चुकी है। घरों के दरवाज़े व खिड़कियां खुलते ही ज़हरीली, रसायन युक्त प्रदूषित हवा इन घरों में प्रवेश कर जाती है।

हज़ारों छोटे बड़े उद्योग अपनी चिमनियों से धुआं उगलते हैं

गगनचुंबी रिहाइशी फ़्लैट्स की किसी भी मंज़िल पर खिड़की-दरवाज़ा खुलते ही धुंआ युक्त गैस फ़्लैट्स के भीतर प्रवेश करती है। गोया राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का रहने वाला कोई भी व्यक्ति ताज़ी व प्रदूषण मुक्त हवा का भी मोहताज बनकर रह गया है। इन इलाक़ों में लाखों वाहन चौबीस घंटे सड़कों पर दौड़ते हैं।
हज़ारों छोटे बड़े उद्योग अपनी चिमनियों से धुआं उगलते हैं। एन सी आर क्षेत्र में बसने वाले लाखों कबाड़ी रोज़ाना सारा दिन और प्रायः रात भर लोहे-तांबे-पीतल की तार आदि निकालने हेतु टायरों तथा बिजली व फ़ोन के तारों आदि में आग लगाते रहते हैं।
सुनाई तो यह भी देता है कि पुलिस व प्रशासन की मिली भगत से कई जगह प्रदूषण फैलाने की खुली छूट दी जाती है। स्वछ भारत अभियान के अंतर्गत घरों से कूड़ा संग्रह करने की योजना के बावजूद अभी भी अनेक लोग यहाँ तक कि प्रायः स्वयं सफ़ाई कर्मी भी कूड़े की ढेरियां बनाकर उसे आग के हवाले कर देते हैं। एन सी आर क्षेत्र में पड़ने वाले ईंटों के भट्टे भी यहां का प्रदूषण बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं।

प्रदूषण फैलाने के असली ज़िम्मेदार

प्रतिदिन दिल्ली व हिण्डन एयरबेस से चढ़ने व उतरने वाले हज़ारों विमानों द्वारा दिन रात छोड़े जाने वाले ज़हरीले गैसयुक्त प्रदूषण की कोई चर्चा नहीं होती। अति विशिष्ट तथा विशिष्ट व्यक्तियों के क़ाफ़िले में आगे पीछे दौड़ने वाले वाहनों के प्रदूषण फैलाने का ज़िक्र कहीं नहीं सुनाई देता।
चार्टर्ड विमानों से प्रदूषण नहीं बल्कि शायद सुगन्धित स्वच्छ ऑक्सीजन का स्प्रे होता होगा तभी इसके प्रदूषण की चर्चा कभी नहीं सुनी गयी। प्रतिदिन लाखों नये वाहन सड़कों पर निकलकर प्रदूषण नहीं फैलाते बल्कि किसानों के दस वर्ष पुराने गिनती के ट्रैक्टर प्रदूषण फैलाने के असली ज़िम्मेदार हैं ?
पिछले दिनों देश के इतिहास में पहली बार दिल्ली को केवल वायु प्रदूषण के चलते लॉक डाउन का सामना करना पड़ा। सभी स्कूल कॉलेज बंद कर दिये गए थे। दिल्ली सरकार का सुझाव था कि दिल्ली में सप्ताह में दो दिन प्रदूषण लॉकडाउन लगाया जा सकता है। परन्तु अदालत का मत था कि अकेले दिल्ली को ही लॉक करने से कोई लाभ नहीं होगा।
दिल्ली के साथ-साथ नोएडा, फ़रीदाबाद, ग़ाज़ियाबाद, ग़ुरुग्राम और सोनीपत में भी इस नियम का पालन करना होगा। अदालत का मत था कि -‘ यह व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। एक बड़े इलाक़े को बिना किसी ठोस वजह के बंद नहीं किया जा सकता। इसलिए सरकारों को लॉक डाउन के अतिरिक्त भी कुछ अन्य वैकल्पिक उपायों पर भी सोचना होगा।’

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र वायु प्रदूषण की स्थाई चादर लपेट चुका है

मानव जनित प्रदूषण समस्या ने ही आज दिल्ली परिक्षेत्र की यह स्थिति कर दी है कि लोग कार पूल पर विचार करने लगे हैं। सरकार को इसी स्थिति से निपटने के लिये कभी कभी वाहनों हेतु सम विषम (ऑड-इवेन) की नीति लागू करनी पड़ती है।
कोरोना से रक्षा हेतु लगाया जाने वाला मास्क लगता है प्रदूषण के चलते अब इंसानी ज़रूरत का स्थान लेने वाला है। साँस की बीमारी,दमा,फेफड़े की प्रदूषण जनित तमाम बीमारियों में इज़ाफ़ा होता जा रहा है।
छोटे बच्चे और बुज़ुर्ग इसकी चपेट में कुछ ज़्यादा ही आ रहे हैं। निरंतर बढ़ते जा रहे शहरीकरण के चलते हरित क्षेत्र घटता जा रहा है जोकि मानव जीवन के लिये ऑक्सीजन देने व कॉर्बन डाई ऑक्साइड जैसी प्रदूषित गैस को ग्रहण करने का सबसे प्रमुख स्रोत है।
बहरहाल, पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय में  इस विषय पर हुई बहस व सरकार द्वारा रखे गये पक्ष के बाद किसानों को दिल्ली परिक्षेत्र का प्रदूषण बढ़ाने का ज़िम्मेदार ठहराने की साज़िश का तो पटाक्षेप ज़रूर हो गया है परन्तु इसके बाद अब यह सवाल और भी प्रबल हो चुका है कि क्या ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ‘ दिल्ली, वायु प्रदूषण की स्थाई चादर लपेट चुका है।

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