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मस्जिदों में विराजमान हैं भगवान गणेश, धूम-धाम से होती है पूजा, हैरानी में डाल देगी पीछे की वजह

Ganpati Idol in Mosques: भारत के इस राज्य के गांवों में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की अनूठी परंपरा चल रही है। यहां के गांवों की मस्जिदों में पिछले 40 सालों से गणपति की मूर्ति स्थापित की जाती है और हिंदू-मुस्लिम एक साथ पूजा करते हैं। आपको यह बात हैरान करने वाली लग सकती है, लेकिन यह अनूठी मिसाल कई दशकों से चली आ रही है।

BY: Deepak • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), Ganpati Idol in Mosques: एक ओर जहां महाराष्ट्र की राजनीति में शुरू हुए औरंगजेब विवाद ने हिंदू और मुसलमानों के बीच की खाई को और गहरा करने का काम किया है। कई हिंदू संगठन खुल्दाबाद से सबसे क्रूर मुगल बादशाह औरंगजेब की कब्र को ध्वस्त करने की मांग कर रहे हैं, तो कई मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध किया है। वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में कुछ गांव ऐसे भी हैं जहां कई दशकों से हिंदू-मुस्लिम भाईचारे का संदेश दिया जा रहा है।

महाराष्ट्र के कोल्हापुर और सांगली के गांवों में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की अनूठी परंपरा चल रही है। यहां के गांवों की मस्जिदों में पिछले 40 सालों से गणपति की मूर्ति स्थापित की जाती है और हिंदू-मुस्लिम एक साथ पूजा करते हैं। आपको यह बात हैरान करने वाली लग सकती है, लेकिन यह अनूठी मिसाल कई दशकों से चली आ रही है।

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Ganpati Idol in Mosques

1961 में शुरू हुई प्रथा

महाराष्ट्र के सांगली जिले की वलवा तहसील में एक गांव है गोटखिंडी। इस गांव की मस्जिद में 1961 से गणपति की मूर्ति स्थापित की जाती रही है। खबरों के मुताबिक, 1961 में गांव के कुछ युवकों ने गणेश उत्सव के दौरान चौराहे पर गणेश की मूर्ति स्थापित करने का फैसला किया था। यह आयोजन बहुत ही छोटे स्तर पर आयोजित किया गया था और गणेश प्रतिमा को खुले आसमान के नीचे रखा गया था। कहा जाता है कि एक रात भारी बारिश हुई। इस दौरान एक मुस्लिम व्यक्ति निजाम पठान ने गणेश प्रतिमा को बारिश में भीगते हुए देखा और गणेश मंडल के लोगों को इसकी जानकारी दी।

इसके बाद निजाम पठान और अन्य ग्रामीणों ने मिलकर गणेश प्रतिमा को भीगने से बचाने के लिए पास की एक मस्जिद में रखने का फैसला किया। इसके बाद गणेश उत्सव के बाकी दिनों में मूर्ति को मस्जिद में रखा गया और लोगों ने यहां पूजा भी की।

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जब एक मुस्लिम व्यक्ति गणेश मंडल का अध्यक्ष बन गया

1961 में गणेश उत्सव के दुर्लभ उत्सव के बाद, 1986 तक यह परंपरा दोहराई नहीं गई। हालांकि, उसी साल कुछ युवाओं ने अपने गांव की इस ऐतिहासिक विरासत को फिर से दोहराने का फैसला किया। उसी साल युवाओं ने मिलकर गणेश मंडल नाम की एक समिति बनाई। इस समिति का अध्यक्ष एक मुस्लिम युवक इलाही पठान को बनाया गया। तब से हर साल इस गांव की मस्जिद में गणेश उत्सव मनाया जाता है। इस अनोखी परंपरा को देखकर आसपास के गांवों के मुसलमानों ने मस्जिद के अंदर गणेश प्रतिमा स्थापित करने के लिए हिंदुओं को आमंत्रित करना शुरू कर दिया।

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