India News (इंडिया न्यूज), Naga Sadhu: महाकुंभ का दूसरा अमृत स्नान नजदीक आ रहा है। इस स्नान में भी सबसे पहले नागा साधुओं को स्नान का मौका दिया जाएगा, उनके बाद उनके अखाड़े और अघोरी भी पवित्र नदी में डुबकी लगाएंगे। इसके बाद उनके भक्त संगम स्नान करेंगे। नागा साधु और अघोरी साधु दोनों ही शिव के उपासक हैं, लेकिन दोनों की पूजा पद्धति में बड़ा अंतर है, जो बहुत कम लोग जानते हैं। ऐसे में आइए नागा साधु और अघोरी की पूजा पद्धति को जानने और समझने की कोशिश करते हैं।
सबसे पहले जानते हैं कि नागा साधु और अघोरी साधु में क्या अंतर है। नागा साधुओं की उत्पत्ति का श्रेय आदि शंकराचार्य को जाता है। कहा जाता है कि जब आदि शंकराचार्य ने 4 मठों की स्थापना की तो उनकी रक्षा के लिए एक ऐसा समूह बनाया गया जो किसी से नहीं डरता था और किसी भी परिस्थिति में युद्ध कर सकता था। इसके बाद नागा साधुओं का एक समूह बना। जहां अघोरी साधुओं की उत्पत्ति गुरु भगवान दत्तात्रेय को माना जाता है, वहीं अघोरी भी नागाओं की तरह भगवान शिव की पूजा करते हैं, लेकिन वे मां काली की भी पूजा करते हैं। अघोरी कापालिक परंपरा का पालन करते हैं। अघोरियों को मृत्यु और जीवन दोनों से डर नहीं लगता।
Naga Sadhu: अघोर पूजा में होता है शव साधना
नागा साधु भगवान शिव के उपासक होते हैं, वे शिवलिंग पर भस्म, जल और बेलपत्र चढ़ाते हैं। नागाओं की पूजा में अग्नि और भस्म दोनों का ही महत्वपूर्ण स्थान है। इसके अलावा नागा साधु महाकुंभ के बाद तपस्या करने के लिए हिमालय, जंगलों, गुफाओं में चले जाते हैं और ध्यान और योग के जरिए भोले शंकर में लीन रहते हैं।
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दूसरी ओर, अघोरी शिव को मोक्ष का मार्ग मानते हैं। अघोरी साधु भी भगवान शिव के उपासक होते हैं और मां काली की भी पूजा करते हैं, लेकिन उनकी पूजा विधि नागा साधुओं जैसी नहीं बल्कि बिल्कुल अलग होती है। अघोरी 3 तरह की साधना करते हैं, जिसमें शव, शिव और दाह विधि शामिल है। शव साधना में अघोरी मांस और मदिरा चढ़ाकर पूजा करते हैं, शिव साधना में शव पर एक पैर पर खड़े होकर तपस्या करते हैं और दाह साधना में अघोरी श्मशान में हवन करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि वह तंत्र मंत्र का भी अभ्यास करते हैं।